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चुनौतीपूर्ण बिहार में भाजपा के लिए अवसर

2024 के लोकसभा चुनावों को लेकर देश की राजनीतिक सरगर्मी काफी बढ़ गई है और इसे लेकर सभी दलों ने अपने चुनावी प्रचार को गति दे दी है। भारत के राजनीतिक परिदृश्य में बिहार का प्राचीन काल से ही एक अद्वितीय महत्व रहा है, जो वर्तमान समय में भी बरकरार है। बिहार में कुल 40 लोकसभा सीटें हैं और यही कारण है कि किसी भी दल के लिए बिहार में बहुमत हासिल करना उतना ही अपरिहार्य हो जाता है, जितना कि उत्तर प्रदेश। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केन्द्रीय गृहमंत्री एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह और जेपी नड्डा की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी ने भी बिहार में अपने प्रयासों को बेहद तीव्र कर दिया है। भाजपा ने बिहार को अपनी प्राथमिकता सूची में सदैव सर्वोपरि रखा है और ऐसे समय में जब बिहार का भविष्य बेहद अंधकारमय नज़र आ रहा है, तो यहाँ के लोगों का एक सही फ़ैसला उन्हें कई संकटों से ऊबार सकता है। वह कैसे, इसका उल्लेख मैं बाद में करूंगा। उससे पहले मैं यहाँ अमित शाह के मुजफ्फपुर दौरे के प्रति आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा। 

कालांतर में, मुजफ्फपुर कांग्रेस और समाजवादियों का गढ़ रहा है। लेकिन, भाजपा ने उनके इस गढ़ को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया है और बीते दो लोकसभा चुनावों में पार्टी को यहाँ शानदार जीत मिली है। ऐसे में, अमित शाह की रणनीति अगले चुनाव में भी अपनी जीत सुनिश्चित करने की है। इससे पूरे देश में भाजपा को लेकर एक नया संदेश जाएगा। 

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गौरतलब है कि मुजफ्फरपुर संसदीय सीट पर 1952 से लेकर 2009 तक कांग्रेस और जनता दल (यूनाइटेड) का दबदबा रहा और यहाँ 1977 से लेकर 2004 तक जॉर्ज फर्नांडिस ने कुल पाँच बार लगातार जीत हासिल की। वहीं, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने अजय निषाद ने यहाँ से शानदार जीत हासिल की। 

हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए यहाँ से जीत हासिल करना आसान नहीं होगा, क्योंकि बिहार में अब भाजपा को जदयू के बगैर अपनी लड़ाई लड़नी है।

यह कोई छिपाने वाली बात नहीं है कि बिहार में जात-पात की राजनीति का बोलबाला है और कुछ समय पहले जातिगत गणना के आँकड़ों को ज़ारी कर राजद और जदयू ने भाजपा के सामने एक चुनौती खड़ी कर दी है। लेकिन, अब बिहार की जनता काफी जागरूक हो चुकी है। उन्हें सही और गलत के बीच का अंतर समझ में आता है। उन्हें इस प्रकार की ओछी राजनीति से बरगलाया नहीं जा सकता है। हमें पूर्ण विश्वास है कि वे जातिवाद से ऊपर उठकर, राष्ट्रहित की राजनीति को स्वीकार करेंगे। 

विशेषज्ञों की नज़र में नीतीश कुमार भले ही सोशल इंजीनयरिंग के माहिर हों। लेकिन, केवल अपना हित साधने के लिए उन्होंने बीते एक दशक में जिस प्रकार से जनता के विश्वास और उनके हितों को तार-तार किया है, उसका ख़ामियाज़ा उन्हें भुगतना ही होगा। 

नीतीश अपने निरंतर बिखरते सामाजिक आधार को समेटन की जितनी भी कोशिश कर लें, वे इसमें सफल कभी नहीं हो पाएँगे। आज बिहार गरीबी और बेरोजगारी की भीषण समस्या से जूझ रहा है। यहाँ के युवा एक न्यूनतम आय के लिए भी दूसरों राज्यों की ओर रुख करने के लिए बेबस हैं। लेकिन, इसकी चिन्ता यहाँ न नीतीश को है और न ही उनके राजद और कांग्रेस जैसे सहयोगियों को।

बिहार में हम पहले ही एक बार गुंडाराज और चरम अराजकता का माहौल देख चुके हैं और नीतीश कुमार आज उन्हीं शक्तियों को साथ देते घूम रहे हैं। यह देखना वास्तव में दुःखद और पीड़ादायक है। यदि बिहार उस दलदल में एक बार और फंसा, तो शायद हम इससे कभी ऊबर ही न पाएँ।

बहरहाल, बिहार आरंभ से ही संघर्ष की भूमि रहा है। यहाँ की धरा से समाज और राजनीति की दिशा निर्धारित होती है। इसकी बानगी हमें बुद्ध और सम्राट अशोक से लेकर, राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन और जेपी आंदोलन तक में देखने को मिलती है। भाजपा और उसके समस्त सहयोगियों को उसी आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ना होगा। साथ ही, यहाँ आवश्यकता बिहार की जनता को अपनी राजनीतिक परिपक्वता एक बार फिर से साबित करने की है। उन्हें इस धारणा को तोड़ना होगा कि बिहारी जनता चुनाव के लिए मतदान नहीं करती, बल्कि जाति के लिए मतदान करती है।

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यदि भाजपा ने बिहार में अपना बहुमत हासिल कर लिया, तो उसके लिए कई नये संभावनाओं के द्वार खुलेंगे और भारत की राजनीति में उनके चिरस्थायी प्रभाव को और अधिक मज़बूती मिलेगी। 

प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में देश में विकास और उन्नति की एक नई अलख जगी है। हमारा समाज विकास के लिए लालायित नज़र आता है। वे पूर्ववर्ती सरकारों की तरह शिथिल होने के बज़ाय, कुछ कर गुज़रने की चाहत रखते हैं। और, बिहार का समाज भी इससे अछूता नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी जन-कल्याणकारी नीतियों से देश के अन्य राज्यों की तरह, बिहार में भी शासन और जनता के बीच की दूरियों को पूरी तरह से मिटा दिया है। 

मोदी विरोधी लोगों को पिछड़ों, अति पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों को जाति और समुदाय के नाम पर जितना भी बाँटने का प्रयास कर लें। लेकिन वे किसी भी समुदाय के गरीबों की विकास की आकांक्षाओं को कभी नहीं मार पाएंगे और यही भाजपा के लिए सबसे बड़ा अवसर है। 

भाजपा ने बिहार में विकास, एकजुटता, लोकतंंत्र व धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक न्याय जैसे मूल्यों को बढ़ावा देने का जो प्रयास शुरू किया है, वे उस पथ पर यूं ही निरंतर बने रहें। इसका सार्थक परिणाम उन्हें अवश्य मिलेगा। 

– डॉ. विपिन कुमार (लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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