विविध

यूएई की धरती से पूरी दुनिया को मानवता का संदेश दिया पीएम मोदी ने 

 -प्रकाश चंद्र शर्मा

 कुछ महीने पहले नई दिल्ली में जी20 के सफल आयोजन ने वसुधैव कुटुम्बकम् के सामर्थ्य को एक बार फिर देखा और समझा। नई दिल्ली घोषणा पत्र में नए भारत के कूटनीतिक चपलता के आगे कई विकसित देश चुपचाप देखने को बाध्य हुए। अपने साथ दूसरों की चिंता करने और उसे आगे करने की ईच्छा और उसे साकार करने का सामर्थ्य भी भारत ने उस समय दिखाया, जब दक्षिण अफ्रीका को इसमें शामिल कराया। पूरी दुनिया के नए जीयो-पॉलिटिक्स में भारत की बढ़ती धाक को हर कोई देख और समझ रहा है।   22 जनवरी को जब अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रभु श्रीराम की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा की और उससे पहले 11 दिनों तक यम नियमों का पालन करते हुए देश के कई प्रसिद्ध मंदिरों की प्रदक्षिणा की, तो सनातन की शक्ति को पूरी दुनिया ने देखा। हर भारतीय इस बात को समझते आ रहे हैं कि सनातन एक संस्कृति है, जो समेकित विकास के साथ सदा नूतनता को अपने में धारण करती आ रही है। यही संस्कार अनेकता में एकता का रंग खिलाती है हमारे देश में।खाड़ी देश की उनकी संक्षिप्त दो दिवसीय यात्रा का केंद्र बिंदु बीएपीएस मंदिर का उद्घाटन है, जो संयुक्त अरब अमीरात में उद्घाटन होने वाला दूसरा बड़ा हिंदू मंदिर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अबू धाबी में बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था (बीएपीएस) मंदिर का उद्घाटन किया। नरेंद्र मोदी हिंदू मंदिर में आयोजित वैश्विक आरती में हिस्सा लिया। ये वैश्विक आरती दुनियाभर में बीएपीएस के 1500 मंदिरों में एक साथ आरती हुई। खास बात यह भी है कि आबू धाबी सरकार ने जीवन प्रयत्न इस मंदिर को मुफ़्त बिजली व पानी देने की घोषणा की है।यूएई में सनातन का डंका बजा है। मध्य एशिया खासकर एक मुस्लिम देश में सनातन धर्म का मंदिर बनना, कई मायनों में अलग है। प्रतिभा और नवाचार के मामले में भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच संबंधों पर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि दोनों देशों ने समुदाय और संस्कृति के मामले में जो हासिल किया है वह दुनिया के लिए एक मॉडल है। भारत और यूएई के बीच सदियों पुराने संबंध हैं और हम उन्हें और मजबूत करना चाहते हैं। ‘अहलान मोदी’ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि हमारा रिश्ता प्रतिभा, नवाचार और संस्कृति का है। अतीत में, हमने हर दिशा में अपने संबंधों को फिर से सक्रिय किया है। दोनों देश एक साथ चले हैं और आगे बढ़े हैं। साथ मिलकर आगे बढ़े। आज यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है। आज यूएई सातवां सबसे बड़ा निवेशक है। दोनों देश ईज ऑफ लिविंग और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में काफी सहयोग कर रहे हैं।इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी 13 जनवरी को अबु धाबी पहुंचे थे। यहां उन्होंने राष्ट्रपति जायद अल नाह्यान से मुलाकात की। इस दौरान दोनों नेताओं की बैठक हुई और कई मसलों पर समझौते भी हुए। 13 फरवरी को ही मोदी ने भारतीय समुदाय को भी संबोधित किया था। करीब 65 हजार भारतीयों को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा- राष्ट्रपति नाह्यान ने मंदिर के प्रस्ताव पर बगैर एक पल भी गंवाए हां कह दिया था। उन्होंने मुझसे यहां तक कह दिया था कि जिस जमीन पर आप लकीर खींच देंगे, मैं वो आपको दे दूंगा। दोनों देशों का रिश्ता हजारों साल पुराना है। हमारी इच्छा है कि समय के साथ यह और मजबूत हो। उन्होंने आगे कहा कि आज, भारत को उसकी मेगा बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और एक जीवंत पर्यटन स्थल के रूप में पहचाना जा रहा है।  भारत को एक बड़ी खेल शक्ति के रूप में पहचाना जा रहा है। यह सुनकर आपको गर्व होगा। आप भारत में डिजिटल क्रांति को जानते हैं। दुनिया भर में डिजिटल इंडिया की सराहना हो रही है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि यूएई के लोगों को भी इसका लाभ मिले, हम सब कुछ कर रहे हैं। हमने यूएई के साथ रुपे कार्ड पैक साझा किया…यूपीआई जल्द ही यूएई में शुरू होने वाला है। इसका नाम ‘जीवन’ रखा गया है। इससे यूएई और भारतीय खातों के बीच निर्बाध भुगतान संभव होगा।दुबई में बने इस पहले हिन्‍दू मंदिर का निर्माण अपने आप में खास है। मंदिर के निर्माण में विश्‍व के कई प्रमुख दूसरे धर्मों के लोगों ने सहयोग किया गया है। इस तरह यह मंदिर न केवल हिन्‍दू धर्म का प्रतीक है , बल्कि विश्‍व के अलग-अलग धर्मों की आपसी सद्भावना और सहयोग का द्योतक भी है। बीएपीएस हिंदू मंदिर पत्थरों से बना मिडिल-ईस्ट का पहला पारंपरिक हिंदू मंदिर है। अबू मुरीखाह जिले में स्थित यह शानदार संरचना भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच स्थायी दोस्ती का प्रमाण है। उल्लेखनीय है कि साल 2015 में, अबू धाबी के क्राउन प्रिंस और संयुक्त अरब अमीरात सशस्त्र बलों के उप सर्वोच्च कमांडर शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान ने मंदिर के निर्माण के लिए 13.5 एकड़ जमीन दान की थी। यूएई सरकार ने जनवरी 2019 में 13.5 एकड़ अतिरिक्त भूमि आवंटित की, जिससे मंदिर के लिए कुल 27 एकड़ भूमि उपहार में दी गई। इस तरह मंदिर की जमीन मुस्लिमों द्वारा दी गई। वहीं, मंदिर के प्रमुख आर्कीटेक्‍ट क्रिश्चियन हैं, प्रोजेक्‍ट मैनेजर सिख धर्म से हैं, कंस्‍र्ट्रक्‍शन कांट्रैक्‍टर पारसी हैं, स्‍ट्रक्‍चर इंजीनियर बुद्धिस्‍ट हैं, निर्माण हिन्‍दुओं ने कराया है और खास बात यह है कि चीफ कंसल्‍टेंट इथीईस्‍ट (किसी धर्म को न मानने वाले) हैं। इस तरह मंदिर विश्‍वभर के कई धर्मों दृ संस्‍कृति की एकता और सद्भावना का प्रतीत है।अबू धाबी के पास स्थित ये मंदिर ना केवल इस देश में अपनी तरह का पहला मंदिर है, बल्कि पश्चिम एशिया में सबसे बड़ा हिंदू मंदिर भी है। इसके शिल्पकार हैं महंत स्वामी महाराज (स्वामी केशवजीवनदासजी) हैं। ये बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था के छठे और वर्तमान आध्यात्मिक गुरु हैं। महंत स्वामी महाराज का जन्म 13 सितंबर 1933 को मध्य प्रदेश के जबलपुर में हुआ था। इनकी माता का नाम दहिबेन और पिता का नाम मणिभाई नारायणभाई पटेल था. महंत स्वामी महाराज अपने छात्र जीवन में मेधावी छात्र थे। उनकी शुरुआती पढ़ाई जबलपुर में ही हुई। वहीं उन्होंने अपनी 12वीं की पढ़ाई जबलपुर के क्राइस्ट चर्च बॉयज सीनियर सेकेंडरी स्कूल से की थी। पढ़ाई के बाद, महंत स्वामी महाराज अपने मूल शहर गुजरात के आणंद आ गए। यहां उन्होंने कृषि महाविद्यालय में एडमिशन लिया और अपनी पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई के दौरान ही महंत स्वामी महाराज जी की मुलाकात ब्रह्मस्वरूप शास्त्रीजी महाराज के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी योगीजी महाराज से हुई। बाद में इन्होंने ही महंत स्वामी महाराज को आध्यात्म का रास्ता दिखाया। महत्वपूर्ण बात यह है कि वर्ष 1997 में प्रमुख स्वामी महाराज ने अबू धाबी में एक मंदिर बनाने का सपना देखा था। जो अब 26 साल बाद आकार ले रहा है। इस मंदिर की आधारशिला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2015 में रखी थी। 11 फरवरी 2018 को दुबई के ओपेरा हाउस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अनावरण किया गया. ईश्वरचरण स्वामी और ब्रह्मविहारी स्वामी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 27 दिसंबर को अबू धाबी मंदिर का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किया था। ब्रह्मविहारी स्वामी के अनुसार, “मूल रूप से, पूरा मंदिर एक ही समदलिय मंदिर है। खजुराहो जैसे मंदिर के अनुसार पिछले 700 वर्षों से इस शैली में कोई मंदिर नहीं बनाया गया है। मण्डोवर इसका शिखर बन जाता है। दूसरे, इसके सात शिखर हैं और यदि आप इसके स्वरूप को देखें तो यह ऑलमोस्ट पिरामिडिकल यानी रोम्बिक आकार का है। हिंदू मूर्तिकला और शास्त्रों के अनुसार इस मंदिर का मानदंड अन्य मंदिरों के समान ही है।  असल में, यह नए भारत की पहचान है। वर्तमान दशक में भारत और यूएई के बढ़ते संबंधों की निशानी है। यह अनायास नहीं है जी20 के सम्मेलन समाप्ति के बाद भी यूएई के सुल्तान भारत में कुछ दिन रूकते हैं। दोनों देशों के बीच साझेदारी बढ़ती है। कारोबार को नया पंख लगता है। और अब, 13 और 14 फरवरी, 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के यूएई के दौरे को पूरी दुनिया अपलक निगाहों से निहार रही है।  पढ़ाई के बाद, महंत स्वामी महाराज अपने मूल शहर गुजरात के आणंद आ गए। यहां उन्होंने कृषि महाविद्यालय में एडमिशन लिया और अपनी पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई के दौरान ही महंत स्वामी महाराज जी की मुलाकात ब्रह्मस्वरूप शास्त्रीजी महाराज के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी योगीजी महाराज से हुई। बाद में इन्होंने ही महंत स्वामी महाराज को आध्यात्म का रास्ता दिखाया। महत्वपूर्ण बात यह है कि वर्ष 1997 में प्रमुख स्वामी महाराज ने अबू धाबी में एक मंदिर बनाने का सपना देखा था। जो अब 26 साल बाद आकार ले रहा है। इस मंदिर की आधारशिला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2015 में रखी थी। 11 फरवरी 2018 को दुबई के ओपेरा हाउस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अनावरण किया गया. ईश्वरचरण स्वामी और ब्रह्मविहारी स्वामी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 27 दिसंबर को अबू धाबी मंदिर का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किया था। ब्रह्मविहारी स्वामी के अनुसार, “मूल रूप से, पूरा मंदिर एक ही समदलिय मंदिर है। खजुराहो जैसे मंदिर के अनुसार पिछले 700 वर्षों से इस शैली में कोई मंदिर नहीं बनाया गया है। मण्डोवर इसका शिखर बन जाता है। दूसरे, इसके सात शिखर हैं और यदि आप इसके स्वरूप को देखें तो यह ऑलमोस्ट पिरामिडिकल यानी रोम्बिक आकार का है। हिंदू मूर्तिकला और शास्त्रों के अनुसार इस मंदिर का मानदंड अन्य मंदिरों के समान ही है।  असल में, यह नए भारत की पहचान है। वर्तमान दशक में भारत और यूएई के बढ़ते संबंधों की निशानी है। यह अनायास नहीं है जी20 के सम्मेलन समाप्ति के बाद भी यूएई के सुल्तान भारत में कुछ दिन रूकते हैं। दोनों देशों के बीच साझेदारी बढ़ती है। कारोबार को नया पंख लगता है। और अब, 13 और 14 फरवरी, 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के यूएई के दौरे को पूरी दुनिया अपलक निगाहों से निहार रही है।   (लेखक सेंटर फॉर सिविलाइज़ेशन स्टडीज़ के उपाध्यक्ष है)

Show More

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button