स्वास्थ्य

महिला सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए फैलाई गयी ‘उम्मीद की रौशनी’

• 16 दिवसीय अभियान के अंतर्गत सहयोगी संस्था ने कार्यक्रम का किया आयोजन
• महिला एवं किशोरियों ने हाथ में कैंडल लेकर दिया सन्देश

पटना:

मंगलवार को 16 दिवसीय अभियान के अंतर्गत महिला हिंसा के खिलाफ़ सहयोगी संस्था द्वारा क्रिया के सहयोग से “उम्मीद की रौशनी कार्यक्रम” का आयोजन किया गया. इस दौरान दानापुर प्रखंड में रूपसपुर पुल पर महिलाओं एवं किशोरियों ने शांतिपूर्ण तरीके से महिला हिंसा के खिलाफ़ मजबूत सन्देश दिया. महिला तथा किशोरीयों ने हाथ में कैंडल लेकर विभिन्न स्लोगन के जरिए महिला सुरक्षा का सन्देश दिया. जिसमें ‘ये रात हमारी है, ये शहर हमारा है’, ‘दिन सवेरा रात अंधेरा, हर पल हो सुरक्षा हक हमारा’ एवं ‘घर हो या शहर के रास्ते, सुरक्षा हो सबके वास्ते’ जैसे स्लोगन शामिल थे.

महिलाओं को मिले एक सुरक्षित माहौल:
सहयोगी संस्था की निदेशिका रजनी ने बताया कि वर्तमान परिदृश्य में महिलाओं की सुरक्षा की चुनौतियाँ बढ़ी है. यह काफ़ी चिंता का विषय है कि अकेली महिला के साथ छेड़-छाड़ एवं बदसलूकी की घटनाएँ बढ़ी है. महिला को एक सुरक्षित माहौल प्रदान करने की सबकी जिम्मेदारी है. महिला सुरक्षा सुनिश्चित करना कानून व्यवस्था को मजबूत करने तक सीमिति नहीं हो सकता. इसमें सभी लोगों की नैतिक ज़िम्मेदारी भी शामिल है. महिला सुरक्षा सही मायने में तभी संभव है जब एक अकेली महिला रात को बेख़ौफ़ सुनसान रास्तों पर चल सके. महिला के पहनावे एवं श्रृंगार को कारण बताकर यौन हिंसा को परिभाषित करने का प्रयास न करे. इसके लिए महिला की परिभाषा को बदलने की भी जरूरत है. हमारी बुनियादी शिक्षा प्रणाली में महिला के अधिकार को शामिल करने की अनिवार्यता है. इससे महिला सुरक्षा को बहाल करने के लिए किसी कानून हस्तक्षेप की जरूरत नहीं होगी.

महिला हिंसा किसी अभिशाप से कम नहीं:
रजनी ने बताया कि महिलाओं के साथ किसी भी प्रकार की हिंसा किसी अभिशाप से कम नहीं है. महिला का उत्थान परिवार एवं समाज का उत्थान है. महिला हिंसा जैसी संवदेनशील मुद्दे के प्रति अभी भी समाज में जागरूकता का आभाव दिखता है. महिला हिंसा को शरीरिक हिंसा तक सीमित रखा जाता है. जबकि महिला हिंसा मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी की जाती है. एक पुरुष महिला को मानसिक स्तर पर भी कई तरह के जख्म देते हैं. ये ऐसी पीड़ा होती है जो एक महिला के व्यक्तिगत निर्माण को संकुचित भी करती है. इसके लिए जरुरी है कि प्रत्येक पुरुष महिला के प्रति पहले संवेदनशील हों. वह यह जरुर गौर करें कि क्या उनका व्यवहार एक महिला के साथ उचित है या नहीं. पुरुष की जागरूकता से ही महिला हिंसा को खत्म किया जा सकता है. महिलाओं को अधिकार दिलाने के लिए पुरुष के साथ महिलाओं की भी जागरूकता उतनी ही जरुरी है. महिला को तब तक सभी अधिकार नहीं मिल सकते, जबतक एक महिला अपने अधिकारों के प्रति सजग होकर उसे हासिल करने का प्रयास नहीं करेंगी.

समाज को साथ आना होगा

समाज सेवी कंचन बाला ने कहा कि महिलाओं की सहभागिता बढ़ाने की बात होती रही है और उनकी भागीदारी बढ़ी भी है लेकिन इसमें आशातीत सफलता नहीं मिली है। जबतक समाज महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल बनाने के लिए आगे नहीं आता है व्यक्तिगत और सरकारी प्रयास से महिलाओं की सहभागिता सुनिश्चित नहीं हो सकती। सुरक्षा के नाम पर हीं महिलाओं को कई अवसर से वंचित होना पड़ता है।

इस दौरान समाज सेवी भारती, सहयोगी से उन्नति, रूबी, प्रियंका, सपना, रौनक, ऋतु, मनोज, प्रियंका उषा श्रीवास्तव, धर्मेन्द्र, किशन, मनोज, रिंकी के साथ 100 से अधिक महिलाएं एवं लड़कियां शामिल हुईं.

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