संवादसंस्कृति

अनंत सागर-अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

आज पाठशाला में हम बात करेंगे णमोकार मंत्र की

आज पाठशाला में हम बात करेंगे णमोकार मंत्र की

अनंत सागर
6 जून, 2020, शनिवार, उदयपुर
पाठशाला
(छठवां भाग)
अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज
“णमोकार मंत्र’
बच्चों आज पाठशाला में हम बात करेंगे णमोकार मंत्र की
णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूण।

णमोकार मंत्र जैन धर्म मूल मंत्र हैं। यह मंत्र अनादि निधन है। इसका पहली बार लिपिबद्ध आचार्य पुष्पदन्त-भूतबली में षट्खण्डागम में मंगलाचरण के रूप में किया था। यह मन्त्र प्राकृत भाषा में लिखा गया है। इस मन्त्र में पंच परमेष्ठि अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु परमेष्ठि को नमस्कार किया गया। जो परम पद में स्थित है उसे परमेष्ठि कहते हैं। णमोकार मंत्र में 58 मात्राऐं, 35 अक्षर, 30 व्यंजन, 34 स्वर 5 सामन्य पद, 11 विशेष पद हैं। णमोकार मंत्र 84 लाख मंत्रों का जन्मदाता है। णमोकार मंत्र को 18432 प्रकार से बोल व लिख सकते हैं। णमोकार मंत्र में सम्पूर्ण द्वादशांग का सार है। महामंत्र, बीज मंत्र, अनादि मंत्र, नमस्कार मंत्र, नवकार मंत्र, मूल मंत्र, पंच मंगल, अपराजित मंत्र, मंत्रराज, पंचपरमेष्ठी मंत्र, पंच पद मंत्र, शाश्वत मंत्र, अनादि निधन मंत्र, सर्वविघ्ननाशक मंत्र, सनातन मंत्र व मंगल सूत्र आदि नाम णमोकार मंत्र के पर्यायवाची नाम है। णमोकार मंत्र का जाप सोते हुये, जागते हुए, ठहरते हुये, मार्ग मे चलते हुये, घर में चलते हुये, घूमते हुये, क्लेश दशा में मद-अवस्था, क्रोध आदि कषाय अवस्था में वन-गिरि और समुद्रों में अवतरण करते हुए करना चाहिए। णमोकार मंत्र सब पापों का नाश करने वाला है और सब मंगलों में पहला मंगल है। णमोकार मंत्र का ध्यान, पवित्र या अपवित्र दोनों अवस्थाओं में किया जा सकता है।तिर्यंच पशु-पक्षी, जो मांसाहारी, क्रूरू हैं जैसे सर्प, सिन्हादि, जीवन में सहस्त्रों प्रकार के पाप करते हैं। ये अनेक प्राणीयों की हिंसा करते हैं, मांसाहारी होते हैं तथा इनमें क्रोध, मान, माया और लोभ कषायों की तीव्रता होती है, फिर भी अंतिम समय में किसी दयालु द्वारा णमोकार मंत्र का श्रवण करने मात्र से उस निंघ तिर्यंच पर्याय का त्याग कर स्वर्ग में देव गति को प्राप्त होते हैं।
णमोकार मंत्र के प्रभाव से बैल भी देव बन गया था। तो चलो कहा सुनते है।
भरत क्षेत्र की अयोध्या नगरी में राजा राम व लक्ष्मण राज्य करते थें।उस समय की बात है, महेन्द्र उद्यान में सकलभूषण केवली मुनिराज का आगमन हुआ। अब यह बात राजा राम को पता चली तो वह अपने परिवार व मित्रों के साथ सकलभूषण केवली के दर्शन करने निकले। उद्यान में जाकर कर मुनिराज को नमस्कार कर उनकी पूजा व वन्दना कर मुनिराज के मुखार्विन्द से उपदेश सुना। उसके बाद विभीषण ने मुनिराज से पूछा के सुग्रीव का राम के साथ किस कारण से इतना स्नेही व वात्सल्य बना?? तब केवली बोले इस भरत क्षेत्र में श्रेष्ठपुर नामक नगर में छत्रछाय नाम का राजा राज्य करता था। उसकी पत्नी का नाम श्रीदत्ता था। इसी नगर में पद्मरुचि नाम का सेठ रहता था। वह धर्मात्मा व सम्यग्दृष्टि था। वह एक दिन मन्दिर से पूजा व आराधना कर आ रहा था तो उसने रास्ते में देखा की दो बैल आपस में लड़ रहे थे।जिसमें एक बैल नीचे गिर गया वह मरणोन्मुख अवस्था में था। उस समय पद्मरुचि सेठ में बैल के कान में पंचनमस्कार मंत्र सुनाया।सेठ के मुहँ से मंत्र सुनते वह बैल मरण को प्राप्त हो गया। अंतिम समय में धर्म व णमोकार मंत्र का साथ मिलने के प्रभाव से वह बैल मर कर राजा छत्रछाय के यहाँ रानी श्रीदत्ता के गर्भ से लड़के के रुप में जन्मा। जिसका नामकरण वृषभध्वज रखा गया।जैसे जैसे समय निकलता गया वह बड़ा हुआ अनुक्रम से वह राजपद को प्राप्त हुआ। एक दिन वह हाथी की सवारी कर नगर का परिभ्रमण कर रहा था। कि वह उस स्थान पर पहुँच गया जहाँ पर वह पुर भव में बैल की पर्याय में मरण को प्राप्त हुआ था।उस स्थान को देख कर उसे पूर्व भव की सारी बात का स्मरण आ गया। राजा वृषभध्वज ने यह जानने के लिए की किस व्यक्ति ने बैल को णमोकार मंत्र सुनाया था। उसी स्थान के सामने बैल को णमोकार मंत्र देते हुए सेठ की एक प्रतिमा बनवाई। तथा वहाँ पर एक विद्वान व्यक्ति को रखा, उसे कहा गया की आप यहाँ पर इस बात का ध्यान रखें की कौन व्यक्ति इस प्रतिमा को देखकर आर्श्चय में पड़ता है??उस व्यक्ति को सम्मान के साथ राज भवन लेकर आए। एक दिन पद्मरुचि सेठ उसी स्थान पर गया। वह प्रतिमा को देखकर आर्श्चय में पड़ गया। यह देख नियुक्त किए विद्वान उसे राज भवन ले गये।वहाँ पर राजा वृषभध्वज ने पद्मरुचि सेठ से पूछा कि आप उस प्रतिमा को देख कर आर्श्चय में क्यों पड़ गए थे?? सेठ ने भी वही पूर्व भव की सारी बात दी। तब राजा ने सेठ से कहा वह भूतपूर्व बैल में ही हुँ। कालांतर में वह राजा तो सुग्रीव हुआ और वह सेठ राम बने। इसी के कारण सुग्रीव राम का स्नेही बना हुआ है। इस कहानी से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि णमोकार मंत्र के प्रभाव से एक तिर्यंच बैल ने भी देव व मनुष्य पर्याय में घुमकर उत्तम सुख को प्राप्त किया। जिस कारण हमें भी णमोकार मन्त्र का पाठ व जाप प्रति समय करते रहना चाहिए।

 

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