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यादों में वीरेन्द्र काका-वरिष्ठ पत्रकार श्री देवकुमार पुखराज की विशेष रिपोर्ट

भाजपा वाले वीरेन्द्र काका नहीं रहे।

 

भाजपा वाले वीरेन्द्र काका नहीं रहे। कल शाम अचानक से सियाराम सिंह जी से पता चला। सियाराम जी अभी बैंगलोर में रहते हैं। भारत में कंप्यूटर जगत के पहली पीढ़ी के इंजीनियर। देश के अलावे दुनिया के कई देशों में काम कर चुके हैं। कंप्यूटर के जितने जानकार संघ विचारधारा के प्रति उतने ही निष्ठावान। वीरेन्द्र बाबू को लेकर उनके मन में आदर औऱ श्रद्धा का भाव गजब का था। जब वीरेन्द्र बाबू ने पिछले साल उम्र का शतक लगाया तो सियाराम सिंह जी की इच्क्षा थी कि आरा में एक बढ़िया समारोह कर उनका अभिनंदन किया जाए। उसमें प्रदेश स्तरीय नेता रहें, पुरानी कार्यकर्ता रहें और खासतौर पर माननीय केएन गोविंदाचार्य जी को बुलाया जाए। इस निमित्त कई तैयारियां हो चुकी थीं। नेताओं के कार्यक्रम मिलने लगे थे। अनुरोध पत्र मैंने ही तैयार किया था। लेकिन कोरोना ने उस योजना पर पानी फेर दिया। मानों नियती को वीरेन्द्र बाबू का सम्मान मंजूर नहीं था। भगवान ने कहा कि ऐसे कार्यकर्ता का धरती पर नहीं स्वर्ग में सम्मान होना चाहिए। फिर भी सियाराम भाई लगातार वीरेन्द्र सिंह जी के संपर्क में रहे। ये जो तस्वीर लगायी है यह भी उनके वेंगलुरु आवास की है , जहां वीरेन्द्र बाबू कुछ साल पहले गये थे। अंतिम समय में भी उनको बचाने के लिए उन्होंने बेंगलुरु बैठे-बैठे बहुत काम किया, लेकिन वीरेन्द्र काका अलविदा बोल अंतिम यात्रा पर निकल गये। चुपके से।
मैं मानता हूं कि वीरेन्द्र सिंह जी भाजपा की उस पीढ़ी के संभवतः अंतिम पुरुष थे जो कार्यकर्ताओं से मिलने, उनका कुशल क्षेम पूछने और पार्टी में सक्रिय करने के लिए घर-घर जाते रहते थे। पैदल। बिना किसी सवारी के। कोई बाइक,स्कूटर वाला परिचित मिल गया तो पीछे बैठ गये, वरना पैदल ही शहर नापते रहते थे। राह चलते सबसे प्रणाम-सलाम करते। किसी भी परिचित से इतना जरुर पूछ लेते- का हो , ठीक बा नूं। ऐसे ही घूमते टहलते कई बार मेरे आवास पर भी धमक जाते, तब मैं मदनजी के हाता में डॉ. ईशा के सामने वाली गली में रहा करता था। संघ और विद्यार्थी परिषद की गतिविधियों में सक्रिय था। आए दिन वीरेन्द्र बाबू वीरकुंवर सिंह पार्क में लगने वाली संघ की महावीर प्रभात शाखा में आ जाते। घूम-फिरकर वहीं बात। बीजेपी से जुड़िये। हम लोगों से भी बहुत प्यार से कहते- ‘’कभी कभार भाजपा के कार्यक्रम में आ जाया करिये। अच्छा रहेगा। आप लोग सक्रिय रहते हैं’’। हमारे संघ के कालीमोहन सिंह जी मजाक में कहते रहते थे- वीरेन्द्र बाबू संघ के स्वयंसेवकों को ही भाजपा में ले जाने की कोशिश करते रहते हैं। वे बाहरी लोगों को बीजेपी से जोड़ने का प्रयास नहीं करते। कालीमोहन जी की बात से भी प्रमाणित होता है कि वीरेन्द्र बाबू कैसी भाजपा चाहते थे। उनके मन में यही भाव रहता होगा कि वैचारिक स्तर पर मजबूत युवा ही भाजपा से जुड़ें, तभी वो संघ के स्वयंसेवकों से पार्टी कार्यक्रमों में आने की अपेक्षा-आग्रह रखते थे। कहने का आशय यह कि उनकी वैचारिक निष्ठा अटूट थी। कार्यकर्ता भाव दृढ़ था। ऐसे कर्मयोगी, सरल, सहज और जीवनदानी कार्यकर्ताओं के बल पर ही बीजेपी और संघ परिवार खड़ा हुआ, मजबूत बना औऱ सत्ता के शिखर पर शोभायमान हुआ। मेरा मानना है कि वीरेन्द्र चाचा अंतिम ऐसे नेता थे, जिनके लिए पार्टी और उसकी विचारधारा ही सबकुछ था। अब वे स्थूल रुप में अपने बीच नहीं हैं। पर भोजपुर में संघ, जनसंघ से लेकर बीजेपी के इतिहास-विकास पर जब भी चर्चा होगी। तब वीरेन्द्र बाबू अनायास ही सहज रुप में स्मृतियों में ताजा हो जाएंगे। ऐसे कार्यकर्ता मरते कहां हैं. वे तो बीजेपी की ऊंची इमारत में वैसे नींव के पत्थर हैं. जो सदियों तक स्थिर, अडिग रहेंगे। उनकी ही शरीर के रक्त-मज्जा औऱ अस्थियों पर इस केसरिया पार्टी का भवन दमकता-चमकता रहेगा। ऐसे कुशल संगठनकर्ता, वैचारिक निष्ठा से ओतप्रोत कर्मयोगी, सेवाभावी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता को अपनी ह्दयांजलि देता हूं, यह कहते हुए कि वीरेन्द्र काका स्वर्ग में भी जाकर वहां बीजेपी का ही प्रचार करेंगे औऱ देवताओं से कहेंगे कि पार्टी के कार्यक्रमों में आय़ा-जाया करिये। उनकी पावन स्मृतियों को कोटिशः नमन ।

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