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मनियर थाने से हटा दिए गए हैं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के लगाए गए बोर्ड

-सजय तिवारी,बलिया

बलिया-

मनियर थाने से हटा दिए गए हैं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के लगाए गए बोर्ड। बोर्ड हटाने से आम लोगों को नहीं मिल रही है अपने अधिकारों की जानकारी, जिसके चलते करते हैं पुलिस मनमानी।

 आखिर मानवाधिकार की रक्षा कौन करेगा? संविधान से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सारी कोशिशें बेकार साबित हो रही है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि थाने पर पूछताछ के दौरान आने वाली समस्त महिलाओं से अभद्र, अश्लील भाषा का प्रयोग नहीं किया जाएगा और न ही उनसे कोई अभद्र अश्लील  प्रश्न पूछा जाएगा। खासतौर से बलात्कार से पीड़ित महिला से। क्योंकि वह पहले से ही मानसिक व शारीरिक वेदना से पीड़ित है।

बलात्कार पीड़ित महिला का बयान उसके किसी नजदीकी रिश्तेदार की उपस्थिति में लिया जाएगा और उसकी रिपोर्ट महिला पुलिस ही लिखेगी।

 किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी होती है तो उसके परिचित को टेलीफोन से या लिखित रूप से उसकी सूचना दी जाएगी। थाने पर लाए गए ब्यक्ति से मारपीट व अमानवीय व्यवहार नहीं किया जाएगा। गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की हर हाल में 24 घंटे के अंदर चालान किया जाएगा। अगर किसी के यहां से कोई सामान बरामद होता है  तो उसकी लिखित रसीद उस व्यक्ति को दी जाएगी
 लेकिन मानवाधिकार के लिखे बोर्ड न होने से आरोपित या आम आदमी को अपने अधिकारों के बारे में जानकारी नहीं हो पाती। आम आदमी तो दूर बहुतेरे पुलिसकर्मियों को भी नहीं पता है कि मानवाधिकार किस चिड़िया का नाम है? या सुप्रीम कोर्ट का क्या आदेश है? नहीं तो थाने पर लोगों के साथ पुलिस अभद्र भाषा का प्रयोग नहीं करती। नहीं उनके साथ मारपीट करती। वाहन चेकिंग के दौरान लोगों पर लाठियां नहीं बरसाती। न ही पुलिस  पीड़ित से पैसे की मांग करती और न ही लोगों को  सड़क पर उतरना पड़ता।

 मानवाधिकार का हनन करते हुए पुलिस दमनकारी नीति अपनाती है जिसके  कारण लोगों को कानून अपने हाथ में लेना पड़ता और सड़क पर उतरना पड़ता है। काश हर थानों पर मानवाधिकार के बोर्ड लगे होते और और आम आदमी सहित पुलिस कर्मियों को भी मानवाधिकार का पाठ पढ़ाया जाता और इसका प्रचार प्रसार किया जाता तो सब लोग अपने अधिकार का उपयोग करते।

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