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हिन्दी को लेकर हो एक वैश्विक जन-आंदोलन

मातृभाषा किसी भी राष्ट्र में विचार-विनिमय के सरलतम एवं सर्वोत्कृष्ट साधन के रूप में अपनी भूमिका निभाती है। यह हमारे सामाजिक संबंधों का पर्याय है और इसके बिना हमारा मूल्यांकन संभव ही नहीं है। यह सीधे किसी भी राष्ट्र के पहचान और स्वाभिमान से जुड़ा हुआ है। एक राष्ट्र के तौर पर हमारे लिए हिन्दी का महत्व कुछ ऐसा ही है।

हिन्दी एक ऐसी भाषा है, जो न केवल  हमारे देश के आधे से ज़्यादा भू-भाग को जोड़ती है, बल्कि यह पूरे विश्व में फैले भारतवंसियों को भी एकसूत्र में पिरोने का काम करती है। हिन्दी के इन्हीं महत्वों और उपलब्धियों को देखते हुए, हम हम वर्ष 10 जनवरी को “विश्व हिन्दी दिवस” के रूप में मनाते हैं, जिसका आयोजन विदेश मंत्रालय द्वारा किया जाता है। 

हिन्दी केवल एक भाषा नहीं है, बल्कि यह हमारे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों का एक अभिन्न अंग है। विश्व हिन्दी दिवस हमें हिन्दी के प्रति अपने समर्पण को बढ़ाने का एक महान अवसर प्रदान करता है। 

आज हिन्दी भाषा का सशक्तिकरण भारतीय समाज के सभी वर्गों को समृद्धि और विकास की दिशा में एक उल्लेखनीय भूमिका अदा कर रहा है।

यहाँ मैं महात्मा गांधी द्वारा 1917 में दिए गए उद्धरण को याद दिलाना चाहूंगा, जब उन्होंने कहा, “भारतीय भाषाओं में केवल हिन्दी ही एक भाषा है, जिसे हम राष्ट्रभाषा के रूप में अपना सकते हैं। क्योंकि यह अधिकांश भारतीयों द्वारा बोली जाती है; यह समस्त भारत में आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक सम्पर्क माध्यम के रूप में प्रयोग के लिए सक्षम है और इसे समस्त देशवासियों के लिए सीखना आवश्यक है।”

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हालांकि, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी की यात्रा अत्यंत कठिन रही है। राजनीतिक कारणों के कारण हमारी प्यारी हिन्दी, राष्ट्रभाषा का दर्ज़ा हासिल नहीं कर पायी। 

आज जब हम पर हर तरफ अंग्रेज़ियत हावी है, तो हमें याद रखने की आवश्यकता है कि कोई भी भाषा सिर्फ विचारों की अभिव्यक्ति है। यह हमारी क्षमता को परिलक्षित नहीं करती है। यह संवाद का एक ऐसा माध्यम है, जिसके ज़रिये मानव जाति ने सर्वोच्चता को हासिल किया है, तो आज हमारे सामने सवाल है कि हम अपनी ही भाषा, अपनी ही बोली को लेकर इतनी कुंठित क्यों हैं? हमें इस मानसिकता से बाहर निकलना होगा और हमारी जो क्षमता है उसमें निखार लाना होगा। 

बीते 9 वर्षों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की अगुवाई में हिन्दी ने वैश्विक स्तर पर एक नई ऊँचाई को हासिल किया है। आज के समय में हिन्दी का दायरा 132 से भी अधिक देशों में फैला हुआ है और संयुक्त राष्ट्र महासभा ने जब से अपने कार्यों और अनिवार्य संदेशों को हिन्दी में प्रेषित करने की घोषणा की, हम हिन्दी भाषियों के आत्मविश्वास ने एक नया आसमान छूना शुरू कर दिया।

आँकड़ों की मानें, तो आज वैश्विक स्तर पर हिन्दीभाषियों की संख्या मंदारिन (चीनी ) के बाद दूसरे स्थान पर है। हालांकि,  वैश्विक हिंदी शोध संस्थान, देहरादून के महानिदेशक डॉक्टर जयंती प्रसाद नौटियाल ने “शोध  अध्ययन- 2021” में इसे पहला स्थान दिया है और उनका यह शोध केंद्रीय हिंदी निदेशालय, भारत सरकार,आगरा  द्वारा नियुक्त भाषा विशेषज्ञों द्वारा पूर्णतः प्रमाणित है।

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आज के समय में हिन्दी को सामान्य जनामानस के अलावा, सरकारी विभागों, मण्डलों और समितियों में भी बढ़ावा देने के लिए गृह मंत्रालय के अंतर्गत राजभाषा विभाग द्वारा अथक प्रयास किये जा रहे हैं और इन प्रयासों के लिए मैं मोदी-शाह के साथ ही, भारतीय जनता पार्टी के सभी साथियों को धन्यवाद प्रेषित करता हूँ। यदि आपने हिन्दी की चिन्ता न की होती। हिन्दी समेत सभी भारतीय भाषाओं को हमारे विचार-विमर्श का हिस्सा न बनाया होता। इसे हमारे गर्व और स्वाभिमान से न जोड़ा होता, तो शायद आज हिन्दी उस स्थिति में न होती, जहाँ आज है। 

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बहरहाल, भारत प्राचीन काल से ही विविध भाषाओं का देश रहा है और आज हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं। ‘हिन्दी’ ने हमारे इस लोकतांत्रिक व्यवस्था को एक-सूत्र में पिरोने का महान कार्य किया है। इसने हमारे विविध क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों के अलावा, कई वैश्विक भाषाओं के साथ घुल-मिल कर पूरे विश्व में अपनी एक अनूठी पहचान बनाई है। 

हिन्दी ने हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भी एक ‘संवाद भाषा’  के तौर पर समाज को पुनर्जागृत करने में एक उल्लेखनीय भूमिका निभायी। इतिहास साक्षी है कि हमारे देश में ‘स्वराज’ प्राप्ति और ‘स्वभाषा’ के आन्दोलन एकसाथ चले। 

हालांकि, हिन्दी के प्रति सम्मान और इसके प्रसार को बढ़ावा कुछ लोगों को रास नहीं आता है। उन्हें लगता है कि हम आधुनिकता केवल अंग्रेज़ियत से हासिल कर सकते हैं। लेकिन, हमें यह समझना होगा कि किसी भी समाज में मौलिक और सृजनात्‍मक अभिव्‍यक्‍ति को केवल और केवल अपनी भाषा के माध्यम से ही विकसित किया जा सकता है। यह एक शाश्वत सत्य है कि हमारी अपनी मातृभाषा में भी हमारी उन्नति का मूल छिपा हुआ है। 

हमारी भाषाएँ, हमारी बोलियाँ, हमारी अमूल्य विरासत हैं। यदि हमें आगे बढ़ना है, तो इसे हमें साथ लेकर चलना ही होगा। इसी संकल्प के साथ बीते 9 वर्षों के दौरान भारत सरकार ने हिन्दी समेत सभी भारतीय भाषाओं के वैश्विक प्रचार-प्रसार के लिए आधुनिक तकनीक के माध्यम से सार्वजनिक, प्रशासन, शिक्षा और वैज्ञानिक प्रयोग के अनुकूल उपयोगी बनाने का प्रयास किया है। 

हमें इस वास्तविकता को समझना होगा कि आज जब हमने स्वंय को वर्ष 2047 तक एक वैश्विक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए ‘पंच प्रण’ का संकल्प लिया है, तो ऐसे में यह निश्चित है कि हिन्दी हमारे पारंपरिक ज्ञान, ऐतिहासिक मूल्यों और आधुनिक प्रगति के बीच, एक महान सेतु की भूमिका निभाएगी। 

इसलिए हमें हिन्दी भाषा को अपनी पूरी शक्ति के साथ प्रचारित और प्रसारित करने की आवश्यकता है। यह देखना सुखद है कि हर वर्ष हिन्दी दिवस का आयोजन वैश्विक स्तर पर घटित हो रहा है। साथ-साथ यह समय की महती मांग भी है कि हम विश्व के जन-जन तक हिन्दी को प्रचारित और प्रसारित करने के लिए एक आंदोलन के रूप में हिंदी दिवस को एकजुट होकर सफल बनाएं। हमें हिन्दी दिवस पर विश्व के वैसे सभी देशों में विविध प्रकार के आयोजनों को शामिल करना होगा, जहाँ भारतवंशी जहाँ अधिकाधिक हैं।

– डॉ. विपिन कुमार (लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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