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हिन्दी की अनूठी वैश्विक पहचान

आज, संपूर्ण भारतवर्ष “विश्व हिन्दी दिवस” की तैयारियों में जुटा हुआ है। गौरतलब है कि पूरी दुनिया में हिन्दी भाषा को बढ़ावा देने के उद्देश्य के साथ हर वर्ष 10 जनवरी को “विश्व हिन्दी दिवस” के रूप में मनाया जाता है। 

यह विशेष दिन हमें हिन्दी भाषा के महत्वों को नज़दीक से समझने और उसके वैश्विक उपलब्धियों और आयामों को एक अद्वितीय स्वरूप में उत्सव मनाने का अवसर देता है। हिन्दी केवल एक भाषा नहीं है, बल्कि यह हमारे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों का एक अभिन्न अंग है। विश्व हिन्दी दिवस हमें हिन्दी के प्रति अपने समर्पण को बढ़ाने का एक महान अवसर प्रदान करता है। गौरतलब है कि विदेश मंत्रालय द्वारा 1975 के बाद “विश्व हिन्दी दिवस” का आयोजन दुनिया के कई देशों में हो चुका है और यह अब तक अपने उद्देश्यों में बेहद सफल रही है।

यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि आज हिन्दी पूरे विश्व में अपना पैर पसारती जा रही है। अनेकानेक देशों में देशों में हिन्दी अच्छी तरह बोली जा रही है और कई देशों की संपर्क भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो चुकी है, जो हमारे लिए गर्व का विषय है। 

हालांकि, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी की यात्रा अत्यंत कठिन रही है। राजनीतिक कारणों के कारण हमारी प्यारी हिन्दी, राष्ट्रभाषा का दर्ज़ा हासिल नहीं कर पायी। 

लेकिन, बीते 9 वर्षों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की अगुवाई में हिन्दी ने वैश्विक स्तर पर एक नई ऊँचाई को हासिल किया है। आज के समय में हिन्दी का दायरा 132 से भी अधिक देशों में फैला हुआ है और संयुक्त राष्ट्र महासभा ने जब से अपने कार्यों और अनिवार्य संदेशों को हिन्दी में प्रेषित करने की घोषणा की, हम हिन्दी भाषियों के आत्मविश्वास ने एक नया आसमान छूना शुरू कर दिया।

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आज के समय में हिन्दी को सामान्य जनामानस के अलावा, सरकारी विभागों, मण्डलों और समितियों में भी बढ़ावा देने के लिए गृह मंत्रालय के अंतर्गत राजभाषा विभाग द्वारा अथक प्रयास किये जा रहे हैं और इन प्रयासों के लिए मैं मोदी-शाह के साथ ही, भारतीय जनता पार्टी के सभी साथियों को धन्यवाद प्रेषित करता हूँ। यदि आपने हिन्दी की चिन्ता न की होती। हिन्दी समेत सभी भारतीय भाषाओं को हमारे विचार-विमर्श का हिस्सा न बनाया होता। इसे हमारे गर्व और स्वाभिमान से न जोड़ा होता, तो शायद आज हिन्दी उस स्थिति में न होती, जहाँ आज है। 

साथ ही, यहाँ मैं विश्व हिन्दी परिषद के महासचिव के तौर पर अपने सभी सहयोगियों और साझेदारों के प्रति भी अपनी कृतज्ञता व्यक्त करना चाहूंगा, जिन्होंने देश-दुनिया में हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए हिन्दी के संरक्षकों और संवर्धकों को एक बेहतरीन साझा मंच प्रदान करने का काम किया है।

बहरहाल, भारत प्राचीन काल से ही विविध भाषाओं का देश रहा है और आज हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं। ‘हिन्दी’ ने हमारे इस लोकतांत्रिक व्यवस्था को एक-सूत्र में पिरोने का महान कार्य किया है। इसने हमारे विविध क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों के अलावा, कई वैश्विक भाषाओं के साथ घुल-मिल कर पूरे विश्व में अपनी एक अनूठी पहचान बनाई है। 

हिन्दी ने हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भी एक ‘संवाद भाषा’  के तौर पर समाज को पुनर्जागृत करने में एक उल्लेखनीय भूमिका निभायी। इतिहास साक्षी है कि हमारे देश में ‘स्वराज’ प्राप्ति और ‘स्वभाषा’ के आन्दोलन एकसाथ चले। 

हालांकि, हिन्दी के प्रति सम्मान और इसके प्रसार को बढ़ावा कुछ लोगों को रास नहीं आता है। उन्हें लगता है कि हम आधुनिकता केवल अंग्रेज़ियत से हासिल कर सकते हैं। लेकिन, हमें यह समझना होगा कि किसी भी समाज में मौलिक और सृजनात्‍मक अभिव्‍यक्‍ति को केवल और केवल अपनी भाषा के माध्यम से ही विकसित किया जा सकता है। यह एक शाश्वत सत्य है कि हमारी अपनी मातृभाषा में भी हमारी उन्नति का मूल छिपा हुआ है। 

हमारी भाषाएँ, हमारी बोलियाँ, हमारी अमूल्य विरासत हैं। यदि हमें आगे बढ़ना है, तो इसे हमें साथ लेकर चलना ही होगा। इसी संकल्प के साथ बीते 9 वर्षों के दौरान भारत सरकार ने हिन्दी समेत सभी भारतीय भाषाओं के वैश्विक प्रचार-प्रसार के लिए आधुनिक तकनीक के माध्यम से सार्वजनिक, प्रशासन, शिक्षा और वैज्ञानिक प्रयोग के अनुकूल उपयोगी बनाने का प्रयास किया है। 

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हमें इस वास्तविकता को समझना होगा कि आज जब हमने स्वंय को वर्ष 2047 तक एक वैश्विक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए ‘पंच प्रण’ का संकल्प लिया है, तो ऐसे में यह निश्चित है कि हिन्दी हमारे पारंपरिक ज्ञान, ऐतिहासिक मूल्यों और आधुनिक प्रगति के बीच, एक महान सेतु की भूमिका निभाएगी। 

इसलिए हमें हिन्दी भाषा को अपनी पूरी शक्ति के साथ प्रचारित और प्रसारित करने की आवश्यकता है। यह देखना सुखद है कि हर वर्ष हिन्दी दिवस का आयोजन वैश्विक स्तर पर घटित हो रहा है। साथ-साथ यह समय की महती मांग भी है कि हम विश्व के जन-जन तक हिन्दी को प्रचारित और प्रसारित करने के लिए एक आंदोलन के रूप में हिंदी दिवस को एकजुट होकर सफल बनाएं। हमें हिन्दी दिवस पर विश्व के वैसे सभी देशों में विविध प्रकार के आयोजनों को शामिल करना होगा, जहाँ भारतवंशी जहां अधिकाधिक हैं।

साथ ही, हमें आज लॉर्ड मैकाले द्वारा भारत पर थोपी गई उस शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त करने की भी आवश्यकता है, जो सामाजिक और सांस्कृतिक विरासतों को सदियों से धूल-धूसरित कर रहे हैं। 

इसके लिए हमें एकजुट होकर हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं के उत्थान और विकास के लिए एक जन-आंदोलन को अंज़ाम देते हुए, अंग्रेज़ियत से मुक्त पाने की कोशिश करने होगी। क्योंकि, एक विदेशी भाषा को अंगीकार कर हम चाहें जितनी भी आर्थिक प्रगति कर लें, लेकिन सांस्कृतिक आत्मनिर्भरता हमें अपनी भाषाओं से ही हासिल हो सकती है।

– डॉ. विपिन कुमार (लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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