समावेशी और शांतिपूर्ण भविष्य के लिए सनातन संस्कृति
भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई में भारत ने बीते 9 वर्षों के दौरान पूरे विश्व के समक्ष भौतिक और आध्यात्मिक विकास के मामले में एक नया उदाहरण पेश किया है और इस उपलब्धि को सुनिश्चित करने में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे शीर्षस्थ नेताओं का बेहद महत्वपूर्ण योगदान है।
इन नेताओं की कार्यशैली ने हमारे समाज की आर्थिक और राजनीतिक उन्नति के साथ-साथ हमारे सांस्कृतिक विकास को भी सुनिश्चित किया। उन्होंने हमारे धार्मिक और आध्यात्मिक संदेशों को जन-जन तक पहुँचाने के लिए जो प्रयास किये, उसे हमारे साधु-संतों का भी आशीर्वाद मिल रहा है।
यह एक ऐसा पहलू है, जिसे स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने निजी हितों को साधने के लिए पूरी तरह से कुचल कर रख दिया था। हमारी अपनी प्राचीन संस्कृति और ज्ञान व्यवस्था का कोई महत्व नहीं रह गया था।
लेकिन, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की अगुवाई में भारत सरकार ने हमारी सनातन संस्कृति से जुड़े व्यवहारों को संरक्षित और संवर्धित करने के लिए अथक प्रयास किया है और इसी का परिणाम है कि आज जब मानवता के सामने प्राकृतिक और मानव जनित आपदाओं के कारण अस्तित्व का संकट छाया हुआ है, तो पूरी दुनिया हमारी ओर एक उम्मीद की नज़र से देख रही है।
हमने बीते एक दशक में योग, आयुर्वेद, मंदिर निर्माण, आदि जैसे कई पहलुओं के माध्यम से भारत की सनातन संस्कृति और धर्म को पुनर्स्थापित करने के मामले में एक महान उपलब्धि को हासिल किया है, जो हमें स्वयं को ‘विश्व गुरु’ के रूप में स्थापित करने की दिशा में पहला कदम है।
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हमारी सनातन संस्कृति में समाज को एकजुट करने और आगे बढ़ाने की एक अभूतपूर्व क्षमता है। यह हमें विविध पृष्ठभूमियों और दृष्टिकोणों को समझने योग्य बनाने में पूर्णतः समर्थ है। हमारी हजारों वर्षों की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत, न केवल हमारे देश बल्कि, पूरी मानव जाति के विकास और विविधीकरण के लिए महत्वपूर्ण संपत्ति है। आज पूरा विश्व यह स्वीकार भी कर रहा है कि सनातन धर्म के जीवन आदर्शों और मूल्यों में ही वैश्विक शांति और कल्याण का संदेश निहित है।
हमने प्राचीन काल से ही मानव जाति को सत्य, अहिंसा, सहिष्णुता, सद्भाव का जो संदेश दिया है। आज उन संदेशों को हमें अपने जीवन के हर पहलू में आत्मसात करने की आवश्यकता है। आज हर भारतवासी को सनातन धर्म के नियमों और सिद्धांतों को पूर्णतः अपनाना होगा। हमें वेदों, उपनिषदों और गीता में वैज्ञानिक, प्रबंधन और जीवन कौशल से संबंधित सभी ज्ञान का अध्ययन करना होगा और पूरी एकजुटता के साथ आगे बढ़ना होगा।
हमें अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के बजाय मानवता और राष्ट्रहित के पहलुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है। कालांतर में आदि शंकराचार्य और स्वामी विवेकानंद जैसे महात्माओं ने सनातन और वैदिक सिद्धांतों के आधार पर व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के निर्माण के लिए जो मार्ग निर्धारित किया था, आधुनिक काल में कुछ वैसा ही कार्य प्रधानमंत्री मोदी के शासन काल में किया जा रहा है और उनके इन प्रयासों को भाजपा-आरएसएस का पूरा समर्थन हासिल हो रहा है।
इस संदर्भ में, हमें यह ज्ञात होना महत्वपूर्ण है कि हमें अपने लक्ष्यों की प्राप्ति केवल धार्मिक और आध्यात्मिक अनुष्ठानों से हासिल नहीं होगी, बल्कि हमें सनातन और वैदिक सिद्धांतों के माध्यम से “हिंदुत्व” के लिए कार्य करना होगा। हमें इसके माध्यम से समस्त सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक समस्याओं के निदान का मार्ग ढूंढ़ना होगा। हमें सनातन प्रणालियों से मानव मस्तिष्क को प्रशिक्षित करना होगा, जिससे सार्वभौमिक चेतना का मार्गदर्शन हो।
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हमने अपनी सनातन परम्परा के लक्ष्य को कहीं पीछे छोड़ दिया है। आज हम गहरी अज्ञानता और भौतिक चेतना में दबे हुए हैं। हमें अपनी परंपराओं और प्रथाओं को सहजता और स्पष्टता के साथ पुनर्जीवित करना होगा। हम एक भारतवंशी के तौर पर अपने महान पूर्वजों और ऋषियों की विरासत को संभालने और समझने में यूं विफल नहीं हो सकते हैं।
हम एक करुणामय, समावेशी और शांतिपूर्ण भविष्य के निर्माण के लिए संस्कृति की शक्ति का उपयोग ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ के मंत्र के साथ करना होगा, जिसे हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कई वैश्विक मंचों पर बारंबार दोहरा चुके हैं।
हम अपने प्राचीन काल के किसी भी ज्ञान या परंपरा को अपने व्यक्तिगत अनुभव या महत्व से जोड़कर बेहद आसानी से समझ सकते हैं। यह हमारे भावी पीढ़ियों को भी अपनी मिट्टी से जोड़ने में अत्यंत मददगार साबित होगा।
वहीं, सनातन धर्म के आलोचकों को समझना होगा कि इसे हमारे जीवन दर्शन और व्यवहार से कभी पृथक नहीं किया जा सकता है। हमारा मार्ग कठिन है, लेकिन असंभव नहीं है। हम अपने धैर्य, साहस और सामंजस्य से सनातन संस्कृति का उद्धार कर सकते हैं। यही हमारी मातृभूमि की सबसे बड़ी सेवा होगी। यदि हम धार्मिक और आध्यात्मिक आधार पर एक इकाई के रूप में एकजुट होते हैं, तो हिन्दू धर्म में जातीय और आर्थिक विभाजन का कोई मुद्दा नहीं रहेगा। हम समानता और समरसता में विश्वास करेंगे। हमारे सामने कोई भी भारत विरोधी शक्ति टिक नहीं पाएगी। हम हर बुरी शक्ति का प्रत्युत्तर दृढ़ता से देने में सक्षम होंगे। हमें हमेशा याद रखना होगा कि एकीकृत हिंदू समाज सदैव एक बेहतर राष्ट्र और विश्व का मार्ग प्रशस्त करेंगे। इससे अन्य धर्मों के अनुयायियों को आगे बढ़ने में उल्लेखनीय रूप से मदद मिलेगी।
– डॉ. विपिन कुमार (लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)
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