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भारत में चुनावी परिदृश्य और वैश्विक घटनाक्रम

भारत में 2024 के आम सभा चुनावों से पहले पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। “सत्ता का सेमीफाइनल” माने जा रहे इन चुनावों में नरेन्द्र मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी की स्थिति बेहद मज़बूत नज़र आ रही है। वहीं, विपक्ष के राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, सोनिया गांधी जैसे बड़े चेहरे ही उनकी सबसे बड़ी कमज़ोरी दिखाई दे रही है। 

बीते 9 वर्षों के दौरान देश के हर राज्य में भाजपा ने अपनी पकड़ को मज़बूत बनाने के लिए, भारत को एकसूत्र में पिरोने के लिए अथक प्रयास किया है और देश की जनता ने उनके इन प्रयासों के प्रति अपने मताधिकार से अपनी स्वीकार्यता भी ज़ाहिर की है। ऐसे में, जब मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम जैसे सभी चुनावी राज्य उनके लिए महत्वपूर्ण हैं। परन्तु, वे मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे हिन्दी भाषी राज्यों पर निश्चित रूप से विशेष नज़र रखेंगे। 

यदि आप वर्तमान समय में कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे राज्यों के चुनावी प्रचारों का अवलोकन करें, तो पाएंगे कि यहाँ की जनता कांग्रेस से पूरी तरह से निराश दिख रही है। उनका कानून व्यवस्था और सरकार के दावों पर कोई भरोसा नहीं है और वे सत्ता परिवर्तन चाहते हैं।

वहीं, मोदी और शाह की अगुवाई में भाजपा सरकार ने 2014 के बाद पूरे देश का कायापलट कर दिया है। भारतवासियों में विकास और उन्नति की एक नई अलख जगी है। पहले जहाँ चारों तरफ निराशा और अँधकार छाया हुआ था, आज वहाँ रोशनी जगमगा रही है। ऐसे में चाहे मध्य प्रदेश हो या मिजोरम, देश के हर कोने की आबादी उस बदलाव का सीधा हिस्सा बनना चाहती है, विशेष रूप से हमारे समाज के युवा।

ऐसे ऐतिहासिक और अविस्मरणीय दौर में जब भारत स्वयं को एक बार फिर से “विश्व गुरु” के रूप में स्थापित करने की ओर अग्रसर है, तो हम आग़ामी लोकसभा चुनाव के साथ ही, इन पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों के दौरान भी विदेशी हस्तक्षेप की संभावनाओं को कतई खारिज़ नहीं कर सकते हैं।

हालांकि, भारत की लचर बाह्य और आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए मोदी और शाह ने जिस नीति को अपनाया है और पश्चिमी देशों के सामने झुकने से सीधा इंकार किया है, उसको देखते हुए हमारे किसी भी मामले में विदेशी हस्तक्षेप करना आसान नहीं रह गया है।

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इसके बावजूद हमें इस बात के प्रति हमेशा सजग और सतर्क रहना होगा कि वे हमारी राष्ट्रीय एकता, अखंडता और सुरक्षा को नुकसान पहुँचाने के लिए कोई न कोई प्रयास अवश्य करेंगे और पूरी संभावना है कि उन्हें हमारे देश से कोई अप्रत्यक्ष राजनीतिक लाभ भी हासिल हो सकता है।

क्योंकि, ऐसे समय में जब देश में चुनावी प्रचार अपने चरम पर है और कांग्रेस स्वयं को इन चुनावों में भाजपा के मुख्य प्रतिद्वंदी के रूप में पेश कर रही है, तो राहुल गांधी जैसे पार्टी के शीर्ष नेता का बीते दिनों उज्बेकिस्तान की यात्रा करना कई गंभीर सवालों को जन्म देता है। इस प्रकार की यात्राओं को हम केवल एक संयोग नहीं मान सकते हैं। उनकी यह यात्रा कई आशंकाओं को व्यक्त करती है।

कई मीडिया रिपोर्टों से यह बात सामने आई है कि राहुल गांधी ने अपनी इस यात्रा के दौरान अमेरिका की एक ऐसी अधिकारी से भेंट की, जो पूरी दुनिया में राजनीतिक अस्थिरता और संकट पैदा करने वाली एक व्यवस्था का अंग हैं। राहुल गांधी की ये गतिविधि हमें वास्तव में हतप्रभ करती है। आख़िर वे सत्ता में वापस आने के लिए इतना नीचे कैसे गिर सकते हैं? यदि उन्हें जनमत हासिल करना है, तो वे इस प्रकार की देश विरोधी शक्तियों से हाथ मिलाने के बज़ाय जनता के बीच जाएँ।

बहरहाल, देश की सुरक्षा और अखंडता को सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार ने बीते कुछ महीनों के दौरान काफी कूटनीतिक सख़्ती दिखाई है। 

लेकिन, कश्मीर में टारगेट किलिंग, कतर में भारतीय नौसेना के 8 पूर्व अधिकारियों को मौत की सज़ा सुनाना और मालदीव में सत्ता परिवर्तन के ठीक बाद भारत के सैनिकों को हटाने जैसी कुछ घटनाएँ हमें यह संकेत देती है कि कोई ऐसी बड़ी शक्ति है, जो प्रधानमंत्री मोदी को दबाव में लाने के लिए इन छोटे देशों की मदद ले रही है।

यहाँ तक कि पूर्वोत्तर भारत में ईसाई मिशनरियों की देशविरोधी गतिविधियों के लिए बांग्लादेश में उनकी पसंद की सरकार होना आवश्यक है। इस तर्क से बांग्लादेश की वर्तमान राजनीतिक अस्थिरता का अनुमान लगाना ज़्यादा मुश्किल काम नहीं है। 

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वहीं, दूसरी ओर, नेपाल की सरकार पर भी चीन और अमेरिका जैसे देश भारी दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि वे उनकी ज़मीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर सकें। हम इन गतिविधियों की अनदेखी कतई नहीं कर सकते हैं। भारत सरकार को इन शक्तियों को अपनी पूरी तत्परता और दृढ़ता के साथ उदासीन करना होगा। उन बड़ी शक्तियों को याद दिलाना होगा कि भारत में दखलअंदाज़ी करना पहले जितना आसान नहीं है। यह एक नया भारत है, जो अपने दुश्मनों को घर में घुस कर मारता है। 

यहाँ मेरा देशवासियों से भी अपील है कि वे इस नये भारत में नैराश्य और आशंका का भाव व्यक्त करने वाली शक्तियों का सामना अपने आत्मविश्वास से करें। वे प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व पर अपना विश्वास बनाएँ रखें। उनके विश्वास से बढ़ कर कुछ नहीं है। इस विश्वास से हम पूरी दुनिया का सामना कर सकते हैं। आगे बढ़ सकते हैं।

– डॉ. विपिन कुमार (लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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