संस्कृति

भारतीयता के महान उपासक स्वामी रामदेव

इन दिनों स्वामी रामदेव अख़बारों की सुर्खियों में छाए हुए हैं। दरअसल, कई मीडिया घराने एक ख़बर चला रहे हैं कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने उन पर ‘झूठे’ और ‘भ्रामक’ विज्ञापनों को लेकर फटकार लगाई है। लेकिन, इस मामले में स्वामी रामदेव ने अपने रुख़ को स्पष्ट करते हुए कहा कि पतंजलि के विरुद्ध बीते कुछ वर्षों से दुष्प्रचार का एक बड़ा खेल चल रहा है। 

इस मामले में उन्होंने कहा कि वे योग और आयुर्वेद को लेकर कोई गलत प्रचार नहीं करते हैं। यदि वह ऐसे किसी भी मामले में दोषी पाए जाते हैं, तो न्यायालय उन पर 1000 करोड़ रुपये का ज़ुर्माना लगाए और मौत की सज़ा सुनाए। वे इसके लिए पूरी तरह से तैयार हैं। 

ऐसे में, मेरा व्यक्तिगत मत है कि स्वामी रामदेव ने पतंजलि के माध्यम से निश्चित रूप से दुनिया को एक नया रास्ता दिखाया है। उन्होंने अपने ज्ञान और अनुशासन से लोगों के जीवन को बेहतर बनाने का काम किया है और इसके प्रति हमें उन्हें अपनी कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए। उन्होंने अपने प्रयासों से योग और आयुर्वेद को जो वैश्विक ऊँचाई दी है। शायद हम कभी केवल उसकी कल्पना करते थे। हमें उनकी आवाज़ सुननी चाहिए। हमें उनके विचारों और संकल्पों को यथार्थ की कसौटी पर कसने का प्रयत्न करना चाहिए।

हमें यह समझना होगा कि योग और आयुर्वेद में अनगिनत असाध्य बीमारियों का निदान है और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान शैशव काल में है। 

यदि हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हमारे योग और आयुर्वेद के विधाओं और व्यवहारों को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने के लिए अथक प्रयास किया है, तो उस प्रयास को सफल बनाने में स्वामी रामदेव ने जो भूमिका निभाई है। वह वास्तव में सराहनीय है। यह उनके ही प्रयासों का परिणाम है कि आज पतंजलि पूरे विश्व में सर्वाधिक आयुर्वेदिक दवाओं का निर्माण कर रहा है। योग घर-घर का हिस्सा बन रहा है। 

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स्वामी रामदेव वास्तव में प्रकृति और संस्कृति के एक महान उपासक हैं। उन्होंने भारतीय समाज की स्थितियों को बदलने के लिए लोगों को “युग के लिए योग और आयुर्वेद” का मंत्र दिया। उन्होंने आत्मनिर्भरता के लिए इन तत्वों को अनिवार्य माना है और उनकी यह व्यवहारिकता कृषि से लेकर जीवन के संपूर्ण आयामों में परिलक्षित होती है। कर्म को धर्म मानने वाला यह योद्धा हमारी सनातन संस्कृति को अभूतपूर्व तरीके से बढ़ाने का कार्य कर रहा है।

स्वामी रामदेव ने अपनी व्यवहारिकता से हमें यह बोध कराया है कि ‘योग’ शब्द में विश्व के सभी सत्य निहित हैं। हमें उस सत्य को समझने और अपने जीवन में आत्मसात करने की आवश्यकता है। यदि हमने उस सत्य को समग्रता से नहीं समझा तो, शायद हम उस सत्य को समझने से पूर्णतः वंचित रह जाएँगे। 

हमें योग के वैयक्तिक और वैश्विक सत्यों को उजागर करने की दिशा में तिरुमलई कृष्णामाचार्य, स्वामी शिवानंद, स्वामी विवेकानंद, परमहंस योगनंद जैसे समस्त योग गुरुओं की शिक्षाओं को समझने की आवश्यकता है। यदि हमने इस क्षेत्र के प्रामाणिक और उत्तरदायी शिखर पुरुषों को लेकर गम्भीरता पूर्वक विचार कर लिया, तो हमें अपने जीवन की श्रेष्ठता को हासिल करने से कोई नहीं रोक सकता है। वह जो अपने देश और समाज के लिए कर रहे हैं, उसमें मानव जाति के कल्याण का संदेश निहित है। 

जब हम योग के वैयक्तिक, पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक और आध्यात्मिक लाभों और सत्यों का पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी के साथ मूल्यांकन करना शुरू कर देंगे, तो हमें समष्टि के योगी होने में अभूतपूर्व गौरव, सौभाग्य और लाभ की अनुभूति होगी। क्योंकि, योग मानवीय चेतना का मूल स्वभाव‘ ‘स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते’’ (गीता) और अन्तिम लक्ष्य-ध्येय-गन्तव्य और जीवन की पूर्णता ही है।

मानव जाति, प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ रचना है। हमारे ब्रह्मांड में सम्पूर्ण ज्ञान, संवेदना, सामर्थ्य, पुरुषार्थ, सुख, शान्ति और आनन्द सन्निहित हैं, हमारे जीवन में उसका पूर्ण प्रकटीकरण और जागरण केवल योग विद्या और योगाभ्यास से ही संभव है। 

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आज जब पूरे विश्व में हिंसा, अपराध, आतंकवाद, युद्ध, नशा, भ्रष्टाचार, विचारधाराओं का चरम संघर्ष, अन्याय, अमानवीय असमानता, स्वार्थपरता, अहंकार और अकर्मण्यता अपने चरम पर है और पूरे मानव जाति के सामने अस्तित्व का संकट छाया हुआ है, तो मेरे विचार में इसका एक ही हल है – योग विद्या यानी अध्यात्मिक विद्या का समग्र बोध, योग का नियमित अभ्यास और योगमय दिव्य श्रेष्ठ आचरण।

हमारी परंपराओं और संस्कृति में एकत्व सह-अस्तित्व एवं विश्व बन्धुत्व की एक अनूठी भावना का वास है। हम कर्म, ज्ञान, भक्ति, तप और स्वाध्याय के महान उपासक हैं। व्रत, दीक्षा और श्रद्धा में अपनी आस्था रखते हैं। स्वामी रामदेव ने हमारी इन आस्थाओं को पुनर्जागृत करने के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया है। उन्होंने हमें सीख दी कि प्रार्थना, पुरुषार्थ एवं परमार्थ ये योग के मूलभूत सिद्धान्त हैं। इसके विपरीत अज्ञान, अश्रद्धा और अकर्मण्यता जैसे तत्व योग और आध्यात्म के सबसे बड़े बाधक हैं। 

हम यम, नियम, आसन, प्राणायाम और ध्यान के संतुलित, नियमित और सही अभ्यास से ज्ञान-विज्ञान, कला-कौशल, श्रद्धा-भक्ति-प्रेम-करुणा और वात्सल्य की सर्वोत्तम परिणीति को हासिल कर सकते हैं। यदि हमने अखंड पुरुषार्थ, परमार्थ, साधना, सेवा और निष्काम कर्म को प्रकाशमान कर लिया, तो हम एक सच्चे योगी, पूर्ण निरोगी और संपूर्ण मानव जाति के लिए उपयोगी बन जाते हैं। 

योग के दैनिक अभ्यास से हमारे जीवन के सभी अभ्यास श्रेष्ठ, परिष्कृत और दिव्य हो जाते हैं। अतः नियमित योग अभ्यास ही एक स्वस्थ, समृद्ध, सफल और सुखी आदर्श जीवन का आधार है। हमें मानना होगा कि एक योगी की दृष्टि बेहद ऊँची, शुद्ध, सात्विक और  श्रेष्ठ होती है और स्वामी रामदेव ने अपनी दूरदृष्टि, आचरण की शुद्धता, श्रेष्ठता, पवित्रता और दिव्यता से जीवन के अंतिम लक्ष्य को पा लिया है। आवश्यकता है संपूर्ण विश्व द्वारा उनका अनुसरण किया जाए।

– डॉ. विपिन कुमार (लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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