प्रधानमंत्री मोदी ने बजट के ज़रिये लिखी विकसित भारत की पटकथा
बीते दिनों संसद में अंतरिम बजट 2024-25 को पेश किया गया था। ध्यातव्य है कि यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूसरे शासनकाल के अंतिम बजट था। इस बजट में भारत के समर्ग, सर्वव्यापी और सर्व-समावेशी विकास के साथ आज़ादी के अमृतकाल यानी वर्ष 2047 तक ‘विकसित भारत’ के लक्ष्यों पर बल दिया गया है।
आज हम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कुशल नेतृत्व में शांति, सुरक्षा और समावेशी विकास जैसे मानव जीवन के समस्त आयामों में एक नई गति के साथ आगे बढ़ रहे हैं, जो पूरे विश्व के लिए एक महान उदाहरण है। विशेष रूप से, हमने कोरोना महामारी के बाद अपनी प्राचीन संस्कृति और परंपरा से मानव कल्याण की जो एक नई रूपरेखा निर्धारित की है, उससे पूरे विश्व में भारत की एक अद्वितीय साख बन गई है।
यह कोई छिपाने वाली बात नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शी सोच और नीतियों के सहारे भारत ने एक दशक के अल्प समय में ही वैश्विक व्यवस्था में अपना सर्वोच्च स्थान हासिल किया है और हमें पूर्ण विश्वास है कि हम वर्ष 2047 तक अपने ‘विकसित भारत’ के संकल्प को अवश्य हासिल करेंगे।
लिहाजा, अगर इस वित्तीय वर्ष के बजट को देखें तो इसमें पूंजीगत व्यय में 11.1% की वृद्धि की घोषणा की गई। बता दें कि अब पूंजीगत व्यय को बढ़ाते हुए, 11,11,111 करोड़ रुपए कर दिया गया है, जो सकल घरेलू उत्पाद का 3.4% है। इस बजट में सरकार द्वारा स्टार्टअप के लिए कर छूट की अवधि को 1 वर्ष के लिए बढ़ाते हुए, कॉर्पोरेट टैक्स में 22 प्रतिशत की कमी की गई है। इसके अलावा, बजट में बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए 11 प्रतिशत और रक्षा के लिए 11.1% प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की गई है। कुल मिलाकर, इस वर्ष का अंतरिम बजट बेहद संतुलित है और यह आज़ादी के अमृतकाल में स्वयं को एक नई महाशक्ति के रूप में स्थापित करने के हमारे संकल्पों को मज़बूती प्रदान करने वाला है।
गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का अनुमान है कि भारत 2023-24 में अपने 6.3% विकास दर को हासिल कर लेगा। साथ ही, इस वैश्विक संस्थान ने उम्मीद जताई है कि भारत वर्ष 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
हमारे देश में एक दौर ऐसा भी था, जब सरकार की इच्छाशक्ति की कमी और भ्रष्टाचार के कारण चारों ओर अंधेरा छाया था। लेकिन, 2014 में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही, हमारे देश की तस्वीर और तक़दीर, दोनों बदलने लगी। उनकी अगुवाई में हमने आतंकवाद और नक्सलवाद जैसे चिन्ताजनक मुद्दों पर तो काबू पा ही लिया। साथ ही, हमने गरीबी, शिक्षा, परिवहन जैसे सभी सामाजिक मुद्दों की दिशा में भी उल्लेखनीय सफलता अर्जित की।
बीते दिनों, नीति आयोग द्वारा राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक की एक प्रगति समीक्षा रिपोर्ट भी ज़ारी की गई। इस रिपोर्ट में यह बात सामने आई कि देश में 25 करोड़ से भी अधिक लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले हैं और इसका दर अब केवल 11.28 रह गया है। इस सूचकांक के स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर जैसे कई महत्वपूर्ण आयाम हैं। निश्चित रूप से, ये आँकड़े एक नये भारत की गाथा को उजागर करते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के साथ मिल कर, आज़ादी के बाद से ही बेहद संवेदनशील रहे पूर्वोत्तर के राज्यों को भी भारत के विकास के ‘प्रवेश द्वार’ के रूप में एक अनूठी पहचान दिलाई।
यह भाजपा की निष्ठा और कर्तव्यपरायणता का ही परिणाम है कि आज हम अपने शत्रुओं के अलावा, हर प्राकृतिक आपदा का स्वयं सामना करने में पूरी तरह से समर्थ हैं। इसकी बानगी हमने कोरोना वैश्विक महामारी के दौरान भी देखी। इस दौरान हमने अपने प्राचीन व्यवहारों और पद्धतियों से पूरे विश्व को उम्मीद की एक नई किरण दिखाई।
प्रधानमंत्री मोदी ने हमें सदैव यह सीख दी है कि हम अपने संस्कृति और परंपरा को संरक्षित और संवर्धित कर, ही मानव जीवन की श्रेष्ठता को हासिल कर सकते हैं। एक ऐसे दौर में, जब एक प्राकृतिक महामारी के बाद पूरा विश्व युद्ध की विभीषिका झेल रहा था, तो हमने दुनिया को दया करूणा, प्रेम, शांति, सहिष्णुता, क्षमाशीलता का पाठ सीखाया।
हमने दुनिया को कठिन परिस्थितियों में योग और आयुर्वेद जैसे अपने प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों के माध्यम से शारीरिक और मानसिक व्याधियों से दूर रहने में मदद की। इन आयामों को बढ़ावा देने के लिए केन्द्रीय आयुष मंत्री सर्बानंद सोनोवाल और आयुष मंत्रालय के सचिव राजेश कोटेचा भी बधाई के पात्र हैं।
बहरहाल, वर्ष 2014 से 2024 तक, भारत ने जिस गति के साथ विश्व की पाँच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में अपनी जगह बनाई है। उसके लिए भारतीय अर्थव्यवस्था को संगठित करना, सप्लाई चेन नीति सुधार, डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा, एफडीआई पर अतिरिक्त ध्यान, सेवारत कर्मचारियों के लिए सरकारी बचत योजना जैसे कई बड़े अन्य बदलाव उल्लेखनीय हैं, जिनका यहाँ विस्तारपूर्वक व्याख्या करना संभव नहीं है।
अंत में, मैं यही कहना चाहूंगा कि भारत ने बीते एक दशक में कठिन से कठिन परिस्थितियों के दौरान भी अपने हितों की रक्षा करते हुए, पूरे विश्व के सामने “वसुधैव कुटुंबकम” की जिस भावना को चरितार्थ किया है, हमें आने वाले समय में उस पहचान को इसी संकल्प और भाव के साथ बढ़ावा देने के लिए संघर्षरत रहना होगा। क्योंकि, हमें यही सामर्थ्य हमें विश्वपटल पर स्वयं को विकसित राष्ट्र के तौर पर स्थापित करने में मददगार साबित होने वाला है।