धर्म-अध्यात्म (7 pm)

धूम-धाम से मनाई जा रही गुरु नानक देव जी की 554वीं जयंती

आज पूरे देश में गुरु नानक की 551वीं जयंती मनाई जा रही है। बता दें कि गुरु नानक देव सिखों के पहले गुरु हैं और लोग उन्हें ‘बाबा नानक’ और ‘नानकशाह’ जैसे अन्य नामों से भी संबोधित करते हैं। 

उनका जन्म 1469 के कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा के दिन पंजाब के रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी गाँव में हुआ। इस जगह का नाम आगे चलकर ‘ननकाना’ पड़ गया। 

नानक के पिता का नाम कालू और माता का नाम तृप्ता था। उनके पिता खत्री जाति एवं बेदी वंश के थे। वे खेती और पटवारी का काम किया करते थे। 

नानक देव जी का आंतरिक ज्ञान छोटी अवस्था से ही प्रकट होने लगा था। ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि कबीर के समक्ष और सिकन्दर लोदी, बाबर, हुमायूँ के समकालीन थे। 

बता दें कि उनकी 16 वर्ष की अवस्था में सुलखनी देवी के साथ विवाह हुआ। उनके दो बेटे थे, जिनका नाम श्रीचन्द और श्री लक्ष्मीचन्द था। 

नानक जी ने ही गुरु ग्रंथ साहिब की आधारशिला रखी। गृहस्थ जीवन दर्शन को अमूर्त रूप देने वाले गुरु नानक देव ने इस सांसारिक जीवन से वर्ष 1539 में करतारपुर, पंजाब में मोक्ष प्राप्त किया। नानक उन पहुँचे हुए संतों में से थे जो केवल सत्य के सम्मुख ही नतमस्तक होते हैंl उन्होंने परमात्मा के वास्तविक तत्त्व को समझ लिया थाl इसी कारण वे किसी बाह्य अंधविश्वास में नहीं पड़ते थे। नानक के जन्म को प्रकाशपर्व या प्रकाश उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

उन्होंने  हमारे देश की राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक स्थितियों को सुधारने के लिए अथक प्रयास किया। उन्होंने सती प्रथा, बलि प्रथा, मूर्ति–पूजा, पर्दा प्रथा को अस्वीकृत करने के साथ ही, जबरन धर्मांतरण के विरुद्ध एक मज़बूत लड़ाई लड़ी।

उनका विचार था कि सभी मनुष्य एक समान हैं। कोई छोटा-बड़ा नहीं है, सभी अपने अनुरूप जीवन जीना चाहिए । उन्होंने मनुष्य की एकता पर जोर दिया क्योंकि एकता में बहुत शक्ति होती है।  मानव कल्याण, शांति के अग्रदूत गुरु नानद देव जी की जयंती के अवसर पर समस्त देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएँ।

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