संवाद

मोहन भागवत का बौद्धिक साहस डॉ. वेदप्रताप वैदिक

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सर्वोच्च प्रमुख श्री मोहन भागवत ने तीन राष्ट्रीय मुद्दों पर बहुत ही तर्कसंगत विचार प्रस्तुत किए हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सर्वोच्च प्रमुख श्री मोहन भागवत ने तीन राष्ट्रीय मुद्दों पर बहुत ही तर्कसंगत विचार प्रस्तुत किए हैं। ये मुद्दे हैं- काशी और मथुरा के मंदिर, समान आचार संहिता और शरणार्थी कानून। इन तीनों मुद्दों को लेकर संघ और भाजपा पर आरोप लगाया जाता है कि उनकी दृष्टि अत्यंत संकीर्ण, सांप्रदायिक और समाज-विरोधी है लेकिन इन तीनों मुद्दों पर पहले जो भी कुछ लिखा और कहा जाता रहा हो, वर्तमान सर संघचालक ने एक ऐसा दृष्टिकोण पेश किया है, जो पुरानी धारणाओं को रद्द करता है। कुछ समय पहले विज्ञान भवन में भाषण देते हुए मोहनजी ने कहा था कि जो भारत में पैदा हुआ और जो भी भारत का नागरिक है, वह हिंदू है। हिंदू होने और भारतीय होने में कोई फर्क नहीं है। यही बात मैंने दस साल पहले मेरी पुस्तक ‘भाजपा, हिंदुत्व और मुसलमान’ में विस्तार से कही थी। ‘हिंदू’ शब्द संस्कृत और प्राकृत का नहीं है। यह शब्द किसी वेद, किसी दर्शन ग्रंथ या किसी उपनिषद में कहीं नहीं है। इसका सीधा-सादा अर्थ यह है कि जो सिंधु नदी के पार रहते हैं, वे सब हिंदू हैं। चीन में भी प्रत्येक भारतीय को ‘इन्दुरैन’ कहा जाता है। हिंदू या इंदू शब्द हमें विदेशियों का दिया हुआ है। जब इन विदेशियों ने भारत पर हमला बोला तो उन्होंने हमारे पूजा-केंद्रों को तोड़ा, औरतों के साथ बलात्कार किया और हमारी संपत्ति लूटकर अपने देश ले गए। उन्होंने कई मंदिर तोड़े तो मस्जिदें भी तोड़ीं। अफगानिस्तान में तो मस्जिदों के साथ-साथ दरगाहें भी तोड़ी गईं। यूरोप में गिरजाघर तोड़े गए। मजहब की आड़ में यह सब सत्ता का खेल रहा। अयोध्या में राम मंदिर फिर से बन रहा है। इसे मुसलमानों ने भी स्वीकार किया है। अब काशी और मथुरा की मस्जिदें तुड़वाने पर संघ उत्साहित नहीं है, हालांकि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने इस मुद्दे पर आंदोलन चलाने का प्रस्ताव पारित किया है। इस मुद्दे पर और समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर भी मोहनजी की राय है कि सर्वसम्मति के बिना इसे लागू करना उचित नहीं होगा, क्योंकि इसके कई प्रावधानों पर मुसलमानों और ईसाइयों के साथ-साथ हिंदुओं को भी आपत्ति हो सकती है। इसी प्रकार पड़ौसी देशों से आनेवाले मुसलमान शरणार्थियों के बारे में संघ का विचार भी बहुत ही उदार है। उसका कहना है कि जो भी पीड़ित है, उसे किसी भेद-भाव के बिना शरण दी जानी चाहिए। आशा है, मोदी सरकार संघ के इस रवैए को ध्यान में रखकर अपने कानून में जरुरी संशोधन करेगी। उक्त तीनों मुद्दों पर संघ ने जो राय व्यक्त की है, वह उसे सचमुच ‘राष्ट्रीय संघ’ की हैसियत प्रदान करता है, किसी सांप्रदायिक संगठन की नहीं। इसीलिए सर संघचालक मोहन भागवत बधाई के पात्र हैं। उनका बौद्धिक साहस सराहनीय है।

Show More

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button