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किसानो के सच्चे नेता थे मुखिया जी-डॉ विपिन कुमार

अपने जीवन भर किसानो के हित के लड़ाई लड़ी।

हिंदुस्तान हॉटलाइन के मुख्य सम्पादक डॉ बिपिन कुमार ने महान किसान नेता स्वर्गीय ब्रह्मेश्वर मुखीया जी के आठवीं पुण्यतिथि के सुअवसर पर श्रधांजलि  देते हुए कहा कि मुखीया जी अपने जीवन भर किसानो के हित के लड़ाई लड़ी।भारत की आत्मा गाँव में वास करती है,और मुखीया जी  गाँव में रहने वाले किसानो की हक़ हुकूक की सदैव लड़ाई कर भारत की आत्मा को ताक़त प्रदान किया।

मुखीया जी सही मायने में देखा जाय तो किसानो के नेता थे,चाहे वो किसान किसी जाति  का हो।लेकिन कुछ लोगों ने जान बूझकर एक जाति विशेष का नेता साबित करने का प्रयास किया।पेश है मुखीया जी के सम्बंध में   वरिष्ठ पत्रकार श्री देवकुमार  पुखराज जी का विशेष आलेख,जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से मुखीया जी के बारे में लिखा है।
मुखिया जी पर लिखते बोलते समय हमलोग एक बड़ी भूल कर बैठते हैं और उनको रणवीर सेना का संस्थापक लिखते हैं। हकीकत यह है कि मुखिया जी ने अपने साथियों संग मिलकर रणवीर किसान महासंघ का गठन किया था। उद्देश्य था किसानों को संगठित कर भाकपा माले लिबरेशन के आतंक से खेती-किसानी को मुक्त कराना। जब नक्सली हिंसा के प्रतिरोध स्वरुप दक्षिण भोजपुर के गांवों में कुछ हिंसक वारदातें होने लगीं और सरथुआं में नरसंहार हुआ तो माले के नेताओं ने साजिश के तहत किसान संगठन को सेना का नाम देकर रणवीर सेना कहना-लिखना शुरू किया। तबतक मुखिया जी सहित किसानों का उद्देश्य कोई निजी सेना बनाने का नहीं था। वे किसान संगठन के बैनर तले ही लड़ाई लड़ना चाहते थे। लेकिन माले के लोगों और तब की मीडिया ने किसानों की इस लड़ाई को निजी सेना कहकर प्रचारित करना शुरू किया और इसपर जातीय रंग लगाने की कोशिश भी की, ताकि बाकी जाति के किसानों को इससे दूर किया जा सके। नक्सली इस मकसद में एक हद तक कामयाब भी रहे। सरथुआं नरसंहार के बाद रणवीर किसान महासंघ को जब सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया तब रणवीर सेना ही नाम सुर्खियों में रहने लगा। किसान संघटन से जुड़े लोगों को यहीं नाम ताकत औऱ वीरता का पर्याय लगने लगा। नतीजा हुआ कि सबकी जुबान पर आ जाने के चलते धीरे-धीरे रणवीर सेना नाम ही असली नाम हो गया। हकीकत यही है कि रणवीर सेना नामकरण भाकपा माले लिबरेशन ने किया था। याद रहना चाहिए कि सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाने के बाद जब रणवीर किसान महासंघ की गतिविधियों पर रोक लग गयी तो मुखियाजी ने राष्ट्रवादी किसान महासंघ नाम से संगठन की शुरुआत की। इसका अखिल भारतीय स्वरुप देने के लिए पूरा नाम अखिल भारतीय राष्ट्रवादी किसान महासंघ रखा गया। इसका विधिवत संविधान प्रकाशित हुआ। पदाधिकारी बने और संगठन का सोसाईटी एक्ट के तहत विधिवत रजिस्ट्रेशन भी हुआ। संगठन का राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री रंगबहादुर सिंह को चुना गया था जो जगदीशपुर के ईचरी नामक गांव के एक संभ्रांत किसान थे। बाद में मुखियाजी ने आरा लोकसभा क्षेत्र से इऩको प्रत्याशी बनाकर चुनाव मैदान में भी उतारा था। रंगबहादुर बाबू राजपूत जाति से आते थे, बेहद सज्जन पुरुष थे। आरा के मदनजी का हाता स्थित उनका मकान दो चुनावों तक कार्यालय रहा, जहां से चुनावी कार्यक्रमों का संचालन होता था। अब रंगबहादुर सिंह जी इस दुनिया में नहीं हैं। ईचरी वो गांव था, जहां के पांच राजपूत किसानों की भाकपा माले के नक्सलियों ने हत्या कर दी थी जब वे लोग जगदीशपुर में राममंदिर के लिए शिलापूजन कार्यक्रम में भाग लेने के बाद टैक्टर से वापस गांव लौट रहे थे। तब उस हत्याकांड में श्रीभगवान सिंह कुशवाहा को नामजद अभियुक्त बनाया गया था, जो आगे चलकर जगदीशपुर से विधायक बने और बिहार सरकार में मंत्री भी रहे। अभी भगवान सिंह कुशवाहा नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू में हैं।

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