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डोनेट फॉर देश’ घपले में माकन-मोहन प्रकाश और खड़गे की चुप्पी से उठे सवाल?


राहुल की यात्रा के पहले मिलिंद ने छोड़ी कांग्रेस, कई नेताओं की पार्टी छोड़ने की संभावना


रितेश सिन्हा।


मिलिंद देवड़ा ने सूर्य के उत्तरायण के होते ही कांग्रेस पार्टी से आखिरकार नाता तोड़ लिया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की अनदेखी से नाराज चल रहे मिलिंद देवड़ा ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दिया और शिवसेना शिदे गुट को ज्वाइन कर लिया। आपको बता दें कि खड़गे और मोहन प्रकाश दोनों की उनके सूबे के प्रभारी रहे हैं और दोनों ने मिलकर उनका आर्थिक शोषण किया। खड़गे 2014 से ही महाराष्ट्र को अपने हिसाब से हांकते रहे हैं, जब वे बतौर स्क्रिनिंग कमिटी के चेयरमैन हुए थे। खड़गे और मोहन प्रकाश की जोड़ी ने सूबे के तीन नेताओं को जमकर तंग किया। इनमें कांग्रेस के दिग्गज दलित नेता, तत्कालीन केंद्र में सबसे ताकतवर रहे मंत्री सुशील कुमार शिंदे, जाने-माने कामगार नेता और पूर्व सांसद नरेश पुगलिया और दिवंगत मुरली देवड़ा के पुत्र मिलिंद देवड़ा के नाम षामिल हैं। शिंदे और पुगलिया ने खड़गे-मोहन प्रकाश से अपमानित होने के बाद भी पार्टी न छोड़ने का हौसला दिखाया है।
राहुल के अब तक के विदेशी दौरे और पिछली भारत जोड़ो यात्रा भारी-भरकम खर्च का इंतजाम करने वाले मिलिंद देवड़ा को पार्टी छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया। कांग्रेस अध्यक्ष बनने के साथ ही पार्टी के कोष पर निगाह गड़ाए खड़गे ने पहला वार गांधी परिवार के करीबी पवन कुमार बंसल पर किया। उनको अपमानित कर केंद्रीय कार्यालय छोड़ने पर मजबूर कर दिया। बंसल पार्टी के बतौर कोष को बेहतर तरीके से अंजाम दे रहे थे। उनके बार नया कोषाध्यक्ष अपने करीबी अजय माकन को बनाते हुए छत्तीसगढ़ स्क्रिनिंग का चेयरमैन बना दिया जहां टिकटों में लंबा खेल खेलते हुए पैसे की जमकर कमाई के कई नेताओं पर संगीन आरोप लगे। सुरक्षित माने जाने वाली सरकार को प्रदेश से बेदखल करवाने में बड़ी भूमिका रही। मिलिंद देवड़ा विगत एक दषक से कांग्रेस के लिए फंड जुटा रहे थे जिनको पवन बंसल के बाद उपयुक्त दावेदार माना जा रहा था।
माकन के कोषाध्यक्ष के तौर पर फेल होने के बाद टीम राहुल के दवाब में देवड़ा को सह-कोषाध्यक्ष बनाया और सिंगला को जोड़कर उनकी भूमिका को खाली पैसे लाओ और घर जाओ तक सीमित कर दिया गया। महाराष्ट्र की राजनीति में देवड़ा को जीरो करने का हरसंभव प्रयास किया गया। आपको बता दें कि पार्टी अध्यक्ष खड़गे ने पिछले महीने 18 दिसंबर को चंदा जुटाने के लिए ’डोनेट फॉर देश’ अभियान शुरू किया था। जानबूझ कर इस अभियान के लिए वेबसाइट का यूआरएल बुक नहीं कराया गया था। देश भर के कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने जमकर पार्टी को चंदा भेजा, लेकिन खेल ये था कि जो भी डोनेट फॉर देश सर्च करता था, उसको सर्च इंजन भाजपा समर्थित मीडिया संस्थान की वेबसाइट पर पहुंचाता था। चंदा खड़गे-माकन मांगे रहे थे, लेकिन दानकर्ता का पैसा ये सर्च इंजन भाजपा की वेबसाइट पर पहुंचा रहा था।
लंबे-चौड़े डोनेषन के बाद जब टीम राहुल ने चंदे के बारे में माकन से पूछताछ की तब तक कई सौ करोड़ के वारे-न्यारे हो चुके थे। इसे कोई चूक नहीं माना जा सकता। ये एक षड्यंत्र था जिस पर खड़गे की कांग्रेस से कोई बोल-चाल तक नहीं कर पा रहा। माकन केंद्रीय कार्यालय तो जरूर आते हैं, लेकिन उनका कारोबार घर से चलता है। माकन एआईसीसी के महत्वपूर्ण पद पर काबिज हैं और देवड़ा को पार्टी छोड़नी पड़ी है।
खेल की शुरूआत राहुल गांधी की ’भारत न्याय यात्रा’ से पहले एक विशेष पैम्फलेट जारी करने के दिन पता चलता है जब पैंफलेट में ’डोनेट फॉर देश’ वेबसाइट के क्यूआर कोड और यूआरएल का भी उल्लेख किया गया था ये दोनों गलत थे। ये बड़ा घोटाला खड़गे की कांग्रेस में उनसे जोड़कर देखा जा रहा है। मिलिंद देवड़ा का इस्तीफा उसकी एक कड़ी है। मिलिंद देवड़ा ने मुंबई व अन्य प्रांतों से अपने संपर्कों के जरिए करोड़ों का चंदा पार्टी को दिया था। मिलिंद के इस्तीफे के बाद केवल ड्राइंग रूम पालिटिक्स करने वाले जयराम रमेश सरीखे नेता ने अपने ट्विटर हैंडल पर देवड़ा पर कड़ी टिपण्णी कर दी, मगर कांग्रेस के चंदा घोटाले पर अब तक अंजान बने हुए हैं।
जयराम ये बताने से भी कतरा रहे हैं कि खड़गे और मोहन प्रकाश मिलकर दक्षिण मुंबई की संसदीय क्षेत्र को उद्धव की झोली में लगभग डाल चुके हैं, जहां से देवड़ा परिवार विगत 50 सालों से राजनीति कर रहा है। दरअसल खड़गे की कोशिश खांटी कांग्रेसियों को ठिकाने लगाने की रही है। खड़गे की कांग्रेस में खांटी कांग्रेसियों की कोई जगह नहीं है। वे तो दिवंगत अहमद की राजनीति पदचिन्हों पर चलकर उनसे अधिक कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने में तूले हैं। खड़गे की कांग्रेस में महाराष्ट्र, बिहार, यूपी, झारखंड में गैर-कांग्रेसी पृष्ठभूमि से आए नेता प्रदेश अध्यक्षों की कमान है। वहीं सीट शेयरिंग में कहने को पांच लोगों की कमिटी है मगर सारा खेल खड़गे के जरिए मोहन प्रकाश के हाथों तय हो रहा है। मिलिंद के इस्तीफे के बाद अब यह देखना दिलचस्प होगा कि किस कांग्रेसी परिवार की अगली बारी आती है जो पार्टी को मंझदार में छोड़कर दूसरी पार्टी का दामन थामेगा।

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