स्वास्थ्य

कालाजार को लेकर बीसीएम, सीएचओ एवं वीबीडीएस का हुआ उन्मुखीकरण

• कार्यशाला में सामाजिक जागरूकता के महत्त्व पर दिया गया बल
• कालाजार के लक्षणों एवं बचाव के उपाय के बारे में जानकारी होना जरुरी- डॉ. विनय कुमार शर्मा
पटना-

. “स्वास्थ्य विभाग अपने स्तर से कालाजार उन्मूलन के लिए कई प्रयास कर रहा है. सामुदायिक स्तर पर जनमानस में कालाजार के बारे में जागरूकता फैलाकर इस रोग से मुक्ति पा सकते हैं. विभाग नियमित अंतराल पर कालाजार प्रभावित क्षेत्रों में कीटनाशक का छिड्काव करता है. हमें लोगों को समझाने की जरुरत है कि छोटी छोटी सावधानियां रखकर हम इस रोग से सुरक्षित रह सकते हैं और यह तभी संभव है जब सामुदायिक स्तर पर लोग जागरूक हों”, उक्त बातें पटना स्थित एक निजी होटल में कालाजार पर जिला के सभी बीसीएम, सीएचओ एवं वीबीडीएस के उन्मुखीकरण कार्यशाला में राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी, वेक्टर बोर्न डिजीज डॉ. विनय कुमार शर्मा ने कही.
जानकारी ही है सुरक्षा:
प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए जिला मलेरिया पदाधिकारी डॉ. सुभाष चंद्र प्रसाद ने कहा कि सरकार की योजना, कालाजार बीमारी की पहचान, रोकथाम एवं उपचार की सुविधा के बारे में लोगों को जागरूक करने की जरुरत है. सबसे जरुरी है जनमानस लक्षणों की पहचान कर अविलंब चिकित्सीय सलाह एवं सहायता प्राप्त करें. स्वास्थ्यकर्मी अपने स्तर से प्रयास कर रहे हैं लेकिन अभी और काम करने की जरुरत है.
अन्तर्विभागीय सहयोग से कालाजार उन्मूलन में मिलेगा सहयोग:
प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए पीसीआई के राज्य कार्यक्रम प्रबंधक अशोक सोनी ने बताया कि कालाजार उन्मूलन के प्रयासों में शिक्षा विभाग, पंचायती राज विभाग, जीविका, राशन डीलर और महादलित विकास विभाग को जोड़ना होगा ताकि हम राज्य के अंतिम व्यक्ति तक अपना संदेश पहुंचा सकें. अन्तर्विभागीय सहयोग से कालाजार उन्मूलन अभियान में सहायता मिलेगी और लोग जागरूक होंगे.
कार्यशाला में राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी, फ़ाइलेरिया डॉ. विनय कुमार शर्मा, जिला मलेरिया पदाधिकारी डॉ. सुभाष चंद्र प्रसाद, पीसीआई के राज्य कार्यक्रम प्रबंधक अशोक सोनी, वीबीडीसीओ पंकज कुमार, कल्याणी कुमारी, सीफार के राज्य कार्यक्रम प्रबंधक रणविजय कुमार एवं सत्य प्रकाश आरएमसी पीसीआई उपस्थित थे.
जाने कालाजार को:
पीकेडीएल यानि त्वचा का कालाजार एक ऐसी स्थिति है, जब एलडी बॉडी नामक परजीवी त्वचा कोशिकाओं पर आक्रमण कर उन्हें संक्रमित कर देता है और वहीं रहते हुए विकसित होकर त्वचा पर घाव के रूप में उभरने लगता है. इस स्थिति में कालाजार से ग्रसित कुछ रोगियों में इस बीमारी के ठीक होने के बाद त्वचा पर सफेद धब्बे या छोटी-छोटी गांठें बन जाती हैं. त्वचा सम्बन्धी लीश्मेनियेसिस रोग एक संक्रामक बीमारी है, जो मादा फ्लेबोटोमिन सैंडफ्लाइज प्रजाति की बालू मक्खी के काटने से फैलती है. बालू मक्खी कम रोशनी और नमी वाले स्थानों जैसे मिट्टी की दीवारों की दरारों, चूहे के बिलों तथा नम मिट्टी में रहती है

Show More

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button