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‘श्री अन्न’ से निरोग भारत का निर्माण

नई दिल्ली स्थित गांधी दर्शन के सत्याग्रह मंडप में हाल ही में “ये दिवाली मिलेट्स वाली” विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में ट्रस्ट के अध्यक्ष और पूर्व सांसद आर. के. सिन्हा, पूरे देश में मिलेट मैन के नाम से लोकप्रिय डॉ. खादर वली, संस्कृति मंत्रालय के सचिव गोविंद मोहन जैसे कई गणमान्यों ने हिस्सा लिया।

इस अवसर पर भारत में मोटे अनाज के क्षेत्र में संभावनाओं, निरोग जीवन के लिए मोटे अनाजों के महत्वों और उसे बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बीते 9 वर्षों में किये जा रहे प्रयासों को लेकर बल दिया गया। 

गौरतलब है कि मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में मोटे अनाज के उत्पादन और उपभोग को बढ़ावा देने के लिए देशवासियों को काफी प्रेरित किया है और उनका यह प्रयास आज एक नए वैश्विक आयामों को छू रहा है।

पहले किसान केवल धान और गेहूँ जैसे पारंपरिक खेती पर ध्यान देते थे। लेकिन जलवायु परिवर्तन से संबंधित चुनौतियों ने उन खेती पद्धतियों को काफी प्रभावित किया। ऐसे में हमें अपने उन कृषि विधाओं को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता थी, जो हजारों वर्षों से हमारी विरासत थी।

प्रधानमंत्री मोदी ने ‘श्री अन्न’ योजना के अंतर्गत हमारी उन आकांक्षाओं को पूरी करने की ओर एक सशक्त कदम बढ़ाया। इस योजना के अंतर्गत देश में ज्वार, बाजरा, रागी, सांवा, कंगनी, चीना, कोदो, कुटकी, कुट्टू जैसे मोटे अनाजों को बढ़ावा देने पर ध्यान केन्द्रित किया गया। 

ध्यातव्य है कि ये अनाज न केवल जलवायु के प्रति सहिष्णु होते हैं, बल्कि इन पर तीव्रता के साथ बदल रहे जलवायु का कोई असर भी नहीं होता है।

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इन अनाजों को उपजाने के लिए किसानों को अपेक्षाकृत कम बिजली और पानी की आवश्यकता होती है। इससे किसानों को एक अतिरिक्त लाभ मिलता है।

मोटे अनाज में प्रोटीन, डायट्री फाइबर, कैल्शियम, आयरन, मैंगनीज़, फॉस्फोरस, पोटैशियम और विटामिन बी जैसे पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। ऐसी स्थिति में, जब आज पूरे विश्व में कुपोषण की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है, तो हमें मोटे अनाज से इस भीषण समस्या से राहत पाने में काफी मदद मिल सकती है।

प्रधानमंत्री मोदी का पूरा ज़ोर भारत को मोटे अनाजों का वैश्विक केन्द्र बनाने पर है। इससे हमारे कृषि उत्पादों के निर्यात में एक उल्लेखनीय वृद्धि होगी और आयात में निर्भरता कम होगी। इसका सीधा असर हमारे किसानों की जीवनशैली पर होगा, हमारे देश की अर्थव्यवस्था पर होगा।

इस दिशा में, संयुक्त राष्ट्र ने भी भारत के प्रस्ताव पर साल 2023 को “अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष” के रूप में घोषित किया है। इस प्रयास के लिए प्रधानमंत्री मोदी के साथ कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर भी बधाई के पात्र हैं। 

यदि मोटे अनाजों की वैश्विक उत्पादन की बात करें, तो इसे एशिया के साथ कई अफ्रीकी देशों में भी बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। इसे पश्चिमी देश के लोग ‘गरीबों का अनाज’ कहते हैं। लेकिन, आपको यह जानकर हैरानी होगी कि बीते वर्ष पूरे विश्व में मोटे अनाज की खपत 90 मिलियन मीट्रिक टन से भी अधिक थी। इससे स्पष्ट है कि मोटे अनाज के प्रति वैश्विक समुदायों की धारणा बेहद तेज़ी के साथ बदल रही है और भारत ने इसके उत्पादन से लेकर प्रोत्साहन तक में सबसे अग्रणी भूमिका को अदा किया है। 

मोटा अनाज, निश्चित रूप से हमारी संस्कृति और परंपरा से जुड़ा हुआ है। लेकिन, कालांतर में पश्चिमी देशों के प्रभाव में आ कर हम अपनी परंपराओं को भूलने लगे। हमने अपने परिधानों और बोली से लेकर खाने के तरीके तक को बदल लिया। 

मेरा मानना है कि यह केवल एक दिखावा है। कथित आधुनिकता के नाम पर हम अपनी परंपराओं और संस्कृतियों को पीछे नहीं छोड़ सकते हैं। यदि हमें हाथ से खाना अच्छा लगता है, तो हम छुरी और कांटे से क्यों खाएँ? यदि हम घर में बना खाना हमारे सेहत को सुधार सकता है, तो फिर हम जंक फूड खा कर अपनी सेहत का नुकसान क्यों करें? यह केवल एक खोखलेपन का प्रमाण है। इस विषय में हमें विमर्श करने की आवश्यकता है।

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यह न केवल हमें निरोग बनाएगा, बल्कि हमारे देश के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक उत्थान में भी हमारे योगदान को सुनिश्चित करेगा।

प्रधानमंत्री मोदी ने मोटे अनाजों को वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय बनाने के लिए केवल भाषण नहीं दिए हैं। उन्होंने इसे वास्तविक रूप देने के लिए नीतियों को भी ज़मीनी स्तर पर क्रियान्वित किया है। यही कारण है कि हम इस दिशा में सबसे आगे हैं और पूरी दुनिया को इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं।

इन प्रयासों से हमारी पोषण, खाद्य सुरक्षा, किसानों के कल्याण जैसी कई चुनौतियाँ भी आसान हो रही हैं। ध्यातव्य है कि आज पूरी दुनिया में मोटे अनाज के उत्पादन में 41 प्रतिशत भागीदार भारत की है। आज देश में इस दिशा में करीब 200 से भी अधिक स्टार्टअप्स काम कर रहे हैं। इनमें से कोई स्टार्ट अप्स मोटे अनाज से कुकीज बना रहे हैं, तो कोई पैन केक और डोसा भी बना रहे हैं। कुछ ऐसे स्टार्ट अप्स हैं जो मोटे अनाज से एनर्जी बार्स और मोटा अनाज ब्रेकफास्ट बना रहे हैं।

हालांकि, अभी केवल शुरुआत हुई है। हमें इस दिशा में एक लंबी यात्रा तय करनी है। हमें अपने भोजन, संस्कृति और परंपरा को पहचानने की आवश्यकता है। हमें किसानों, उपभोक्ताओं और प्रकृति के समग्र लाभ के लिए इसे एक जन-आंदोलन का रूप देने की आवश्यकता है और हम इसमें ज़रूर सफल होंगे। यह मेरा पूर्ण विश्वास है।

डॉ. विपिन कुमार (लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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