स्वास्थ्य

वरीय यक्ष्मा पर्यवेक्षक शिवरंजन के प्रयास से दो हजार मरीज हुए ठीक

-17 साल से टीबी मरीजों को ठीक कराने में निभा रहे महत्वपूर्ण भूमिका
-सदर अस्पताल में वरीय यक्ष्मा पर्यवेक्षक के रूप में करते हैं अपनी ड्यूटी

बांका, 20 जून –

2025 तक टीबी उन्मूलन की ओर जिला बढ़ रहा है तो उसमें कई लोग अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभा रहे हैं। डॉक्टर से लेकर एक-एक स्वास्थ्यकर्मी जिला को टीबी से मुक्त बनाने में लगे हुए हैं। जिला यक्ष्मा केंद्र में वरीय यक्ष्मा पर्यवेक्षक के तौर पर तैनात शिवरंजन कुमार भी उनमें से एक हैं। दिसबंर 2005 से अपनी सेवा दे रहे हैं। जिले के टीबी मरीजों के लिए शिवरंजन किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं। तभी तो लगभग 17 सालों में दो हजार से अधिक मरीजों को टीबी जैसी बीमारी से मुक्ति दिलाने में अपनी अहम भूमिका निभा चुके हैं। टीबी मरीजों पर लगातार निगरानी रख रहे हैं। जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ. उमेश नंदन प्रसाद सिन्हा कहते हैं कि टीबी को लेकर विभाग सतर्क है। 2025 तक इसे हर हाल में खत्म करना है। इसे लेकर हर कोई बेहतर काम कर रहा है। वरीय सक्ष्मा पर्यवेक्षक शिवरंजन कुमार भी उनमें से प्रमुख हैं। मरीजों पर वह लगातार निगरानी रख रहे हैं। मरीज बीच में दवा नहीं छोड़े, इसे लेकर चौकस रहते हैं। इसका परिणाम भी मिल रहे हैं। बड़ी तेजी से टीबी के मरीज ठीक हो रहे हैं। 
जिले के तीन प्रखंडों के मरीजों की इनपर है जिम्मेदारीः जिले में तीन यक्ष्मा पर्यवेक्षक हैं। तीनों में जिले के सभी प्रखंड बंटे हुए हैं। इनके जिम्मे तीन प्रखंड हैं। बांका सदर, रजौन और धोरैया। इन तीनों प्रखंडों में 250 से ज्यादा टीबी मरीज अभी हैं। इन सभी मरीजों की निगरानी करते हैं। सभी पर कड़ी नजर रखते हैं कि कहीं कोई दवा बीच में न छोड़ दे। बीच में दवा छोड़ना खतरनाक हो सकता है। शिवरंजन कहते हैं कि मरीजों की निगरानी के दौरान इस बात को लेकर हमलोग काफी अलर्ट रहते हैं। अगर मरीज बीच में दवा छोड़ देते हैं तो उन्हें एमडीआर टीबी होने का खतरा हो जाता है। अगर मरीज एमडीआर टीबी की चपेट में आ जाए तो उसे ठीक होने में ज्यादा समय लग जाता है। टीबी के सामान्य मरीज अगर नियमित तौर पर दवा लेते रहें तो छह महीने तक में ठीक हो जाते हैं। किसी को इससे कम समय भी लगता है और किसी को अधिक।
राशि दिलाने में भी निभाते हैं महत्वपूर्ण भूमिकाः सरकार टीबी मरीजों को न सिर्फ मुफ्त जांच और इलाज की  सुविधा देती है, बल्कि उसे पौष्टक आहार लेने के लिए पांच सौ रुपये की राशि भी प्रतिमाह देती है, जब तक कि वह ठीक न हो जाए। इसे दिलाने में शिवरंजन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शिवरंजन कहते हैं कि बहुत सारे मरीज ग्रामीण क्षेत्र के होते हैं। उन्हें बहुत जानकारी नहीं होती है। ऐसे में हमलोगों का फर्ज बनता है कि उन्हें समुचित सरकारी सुविधा मिले। टीबी की बीमारी में पौष्टिक आहार बहुत महत्व रखता है। गरीब लोगों को पैसा मिल जाने से वह नियमित तौर पर पौष्टिक आहार ले पाते हैं। इससे उन्हें जल्द स्वस्थ होने में मदद मिलती है।

Show More

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button