गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती दिवस के अवसर पर सूर्यदत्ता ग्रुप ऑफ इन्स्टिट्यूट में मान्यवरों के हातो अभिवादन
पुणे : साहित्य, संगीत, तत्वज्ञान, नाटक, कविता जैसे जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूनेवाले, एशिया और भारत में साहित्य का पहला नोबेल पुरस्कार जिनको मिला ऐसे विश्व प्रसिद्ध व्यक्तित्व गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती के अवसर पर, सूर्यदत्ता ग्रुप ऑफ इन्स्टिटयूट में गणमान्य लोगों के हाथों से अभिवादन किया गया.
‘सूर्यदत्ता’ के संस्थापक अध्यक्ष प्रा. डॉ. संजय चोरडिया, समूह संचालक प्रा. डॉ. शैलेश कासंडे, सावित्रीबाई फुले पुणे विद्यापीठ के वाणिज्य शाखा के डीन प्रा. डॉ. पराग काळकर, महाराष्ट्र एज्युकेशन सोसायटी के गरवारे महाविद्यालय के उपप्राचार्य प्रा. डॉ. भारत व्हनकाटे, अखिल भारतीय मराठा शिक्षण परिषद के शाहू महाविद्यालय में के प्राध्यापक डॉ. धोंडिभाऊ बोरकर आदी मान्यवर उपस्थित थे.
प्रा. डॉ. संजय चोरडिया के हाथों गुरुदेव रवींद्रनाथ टागोर के प्रतिमा की पूजा की गई. उसके बाद, मिली बॅनर्जी ने रवींद्रनाथ टैगोर के संपूर्ण जीवन और साहित्य का परिचय करवाया और रवींद्रनाथ टैगोर और महाराष्ट्र पर अपने विचार प्रस्तुत किए. रवींद्रनाथ टैगोर पर का मराठी संत साहित्य, मराठी लेखकों और कवियों पर रवींद्रनाथ टैगोर का प्रभाव इस पर सुनील धनगर ने अपने विचार साझा किये.
प्रा. डॉ. संजय चोरडिया ने कहा, “रवींद्रनाथ टागोर एक आदर्श व्यक्तित्व हैं. उनकी पत्नी मृणालिनी, पुत्र समीन्द्रनाथ, बेटी मधुरिलता और बेला के साथ उनके जीवन का व्यक्तिगत नुकसान उन्हें विश्व स्तर के कवि, विचारक, शिक्षक, समाजशास्त्रज्ञ, तत्वज्ञानी बनने से नहीं रोक सका. उनके व्यक्तिगत दुःख उनके साहित्य में अक्सर प्रतिबिंबित होते थे.”
“टैगोर एक संवेदनशील व्यक्तित्व थे. इसीलिए उन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में सर की उपाधि लेने से इनकार करने का साहस किया. लॉर्ड कर्जन ने बंगाल विभाजन के विरोध के रूप में सामाजिक और सांप्रदायिक सद्भाव का प्रचार किया. रवींद्रनाथ टैगोर एक असाधारण व्यक्तित्व हैं, जो मानव जाति के लिए एक ही बार हुए. हम सभी इस महान व्यक्तित्व के जीवन कार्य और साहित्य से सीखने का संकल्प करें,” ऐसा भी डॉ. संजय चोरडिया ने कहा.