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भारत में एक नई हरित क्रांति की आहट

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह हाल ही में नई दिल्ली में “उन्नत बीजों के उत्पादन एवं वितरण” के विषय को लेकर एक संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने कृषि एवं सहकारी क्षेत्र में रोजगार को बढ़ावा देने, आयातित बीजों पर किसानों की निर्भरता को कम करने और ग्रामीण अर्थतंत्र को अधिक सशक्त और सक्षम बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बीते 9 वर्षों के दौरान किये किये प्रयासों पर बल दिया। इस दौरान उन्होंने कहा कि खाद्य सुरक्षा और किसानों की आय को बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार प्रमाणित और वैज्ञानिक रूप से तैयार बीजों को आने वाले समय में एक नई गति देगी।

निश्चित रूप से, सरकार द्वारा बीजों के संरक्षण, संवर्धन और अनुसंधान को बढ़ावा देने के पीछे सरकार का उद्देश्य केवल लाभ कमाना नहीं, बल्कि बीजों की पैदावार के मामले में भारत को वैश्विक बराबरी पर लाना है। हमारी भागीदारी को बढ़ाना है। ध्यातव्य है कि वर्तमान समय में भारत में लगभग 465 लाख क्विंटल बीजोंं की आवश्यकता है, जिसमें 165 लाख क्विंटल सरकारी स्तर से उत्पादित होता है। 

वहीं, भारत के घरेलू बीज बाजार का वैश्विक बाजार में हिस्सा केवल 4.5 प्रतिशत है। ऐसे में, हमें इस स्तर को बढ़ावा देने के लिए युद्ध स्तर पर कार्य करना होगा और अगले 5 वर्षों के दौरान सहकारी संस्थाओं के माध्यम से इस क्षेत्र में आगे बढ़ने की योजना को लेकर अमित शाह अपनी रणनीति स्पष्ट कर चुके हैं। भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड जैसी समितियों का गठन इसी तथ्य का एक प्रमाण है। इस प्रयास में इफको, कृभको, नेफेड, एनडीडीबी और एनसीडीसी जैसी संस्थाओं का योगदान भी निश्चित रूप से उल्लेखनीय रहेगा। 

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निःसंदेह भारत विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है और हमारे यहाँ जिस समुचित कृषि व्यवस्था की शुरुआत हुई, वह आज भी बना हुआ है। हमारी कृषि पद्धतियाँ, हमारे द्वारा संरक्षित बीज अपने गुणों और शारीरिक पोषण के कारण समूचे विश्व में सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं और कालांतर में हमारी इन व्यवस्थाओं का कई देशों ने नकल किया है। आज जब मानव जाति जलवायु परिवर्तन से संबंधित उपजी चुनौतियों के कारण अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है, तो ऐसे में हमें अपनी उन पद्धतियों को, अपनी पुरातन व्यवहारों को पुनर्जीवित करने की शीघ्र आवश्यकता है। हमारा यह प्रयास भारत को पूरी दुनिया के सामने स्वयं को ‘विश्व गुरु’ के रूप में स्थापित करने का द्वार भी खोलेगा। यह निश्चित है। 

बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की अगुवाई में हमने एक दशक से भी कम समय में एक उल्लेखनीय प्रगति की है। हमारी इन प्रयासों में छोटे किसानों, नई तकनीकों के समावेशन, महिलाओं और युवाओं की संपूर्ण भागीदारी से लेकर जलवायु परिवर्तन तक की चिन्ताएँ समाहित हैं। 

उनके इन प्रयासों से हमने पूरी दुनिया में श्रीअन्न का एक इतना बड़ा बाजार खड़ा किया है, जहाँ हम अपना एक संपूर्ण वर्चस्व स्थापित कर सकते हैं। 

यहाँ मैं भारतीय कृषि के उत्थान को समर्पित भारत सरकार द्वारा किये गये एक और प्रयास का उल्लेख करना चाहूँगा। दरअसल, बीते दिनों केन्द्रीय मंत्री अमित शाह ने गुजरात के गांधीधाम में इफको के लिक्विड नैनो डीएपी प्लांट का उद्धाटन किया। 

गौरतलब है कि यह पूरे विश्व में अपनी तरह का पहला प्रयास है और इसमेंइफको के मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. उदय शंकर अवस्थी की भूमिका भी बेहद महत्वपूर्ण रही। इस प्रयास से हमारे किसान बंधुओं को उत्पादन से कोई समझौता किये बिना प्राकृतिक खेती को अपनाने की एक नई प्रेरणा मिलेगी। 

आप इस प्रयास की व्यापकता को इस प्रकार से समझ सकते हैं कि आज के समय में डीएपी के एक बैग का वजन करीब 50 किलो होता है। लेकिन, यदि किसान नैनों डीएपी या नैनो यूरिया अपनाते हैं, तो उन्हें अपने खेतों में केवल आधा लीटर इस्तेमाल करने की आवश्यकता होगी। और, इससे किसानों के उपज में भी कोई कमी नहीं आने वाली है।

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गौरतलब है कि लिक्विड नैनो डीएपी प्लांट में प्रतिदिन 2 लाख बोतलें बनाई जा सकती हैं। इस प्रयास से हमारी धरती माता संरक्षित होगी, उसमें कोई जहर नहीं जाएगा। हमारे जल भंडार दूषित नहीं होंगे। प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में किये जा रहे ये प्रयास भारत में दूसरी हरित क्रांति की आहट है और इस हरित क्रांति का आधार प्राकृतिक खेती होने वाला है। 

यदि आप भारतीय कृषि व्यवस्था की गहराई से अवलोकन करें, तो इसमें काफी स्थिरता आई है, विशेष रूप से कोरोना कालखंड के बाद। यह बदलाव प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की दूरदर्शी सोच, कर्तव्यनिष्ठा और मौलिकता की वजह से आई है। 

पहले केवल यह कहा जाता था कि भारत एक कृषि प्रधानमंत्र देश है और भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ खेती है। लेकिन, 70 वर्षों तक देश में किसानों की क्या स्थिति रही, यह कोई छिपाने वाली बात नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी के शासन काल में किसानों को लेकर नारेबाज़ी करने के बजाय समग्र नीतियों को बनाने और उन नीतियों को सतही स्तर पर क्रियान्वित करने में ऐतिहासिक रूप से कार्य हुआ है। यही कारण है कि आज हमारे देश के पढ़े-लिखे लोग भी अपनी अच्छी-अच्छी नौकरियाँ छोड़ कर भी खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं, जिसे आज से कुछ वर्ष पहले तक बेहद हीन दृष्टि के साथ देखा जाता था। 

हालांकि, यह केवल एक शुरुआत है। हमें किसानों के जीवन में एक नई सुख और समृद्धि लाने के लिए अभी एक लंबा सफ़र तय करना है। यह केवल सरकार के प्रयासों से संभव नहीं होगा। इसके लिए 140 करोड़ देशवासियों को एकजुट हो कर, अपना सामर्थ्य दिखाना होगा। यदि हमने अपने किसान बंधुओं को यूं ही केन्द्र में रख कर अपना कदम आगे बढ़ाना ज़ारी रखा, तो यह निश्चित है कि हम वर्ष 2047 तक पूरे विश्व के समक्ष एक नई वैश्विक महाशक्ति के रूप में खड़े होंगे, जिसका सपना हमें प्रधानमंत्री मोदी ने दिखाया।

– डॉ. विपिन कुमार (लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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