स्वास्थ्य

मौसम में हो रहा है बदलाव, खुद के साथ नवजात का भी रखें ख्याल

-नवजात को डायरिया, निमोनिया से बचाने के लिए नियमित स्तनपान कराएं
-जन्म के पहले घंटे के भीतर कराएं स्तनपान, बनेगा बच्चे के जीवन का वरदान

बांका, 5 नवंबर-

मौसम में बदलाव हो रहा है। बारिश का मौसम लगभग समाप्त हो चुका है और सर्दी के मौसम भी दस्तक देने लगा है। ऐसे मौसम में स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना बहुत जरूरी है। ऐसे मौसम में खुद के साथ अपने शिशुओं के भी पोषण का खास ख्याल रखा जाना जरूरी है। शिशुओं के मुख्य पोषण में स्तनपान शामिल है। बच्चे के सम्पूर्ण शारीरिक और मानसिक विकास के लिए मां का दूध जरूरी है। मां के दूध के अलावा छह माह तक के बच्चे को ऊपर से पानी देने की भी जरूरत नहीं होती है। स्तनपान कराने से बच्चे में भावनात्मक लगाव पैदा होता है और उसे यह सुरक्षा का बोध भी कराता । शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी डॉ. सुनील कुमार चौधरी कहते हैं कि ठंड की शुरुआत में बहुत संभलकर रहने की जरूरत है। खुद तो रहे ही, साथ में नवजात का भी खास ध्यान रखें। उसे गर्म कपड़े पहनाएं। साथ ही उसके पोषण का ही ख्याल रखें। छह माह तक शिशु को केवल स्तनपान कराने से दस्त और निमोनिया के खतरे में काफी कमी लायी जा सकती है।
स्तनपान कराने में ममता कर रहीं सहयोग: डॉ. चौधरी कहते हैं कि डायरिया व निमोनिया से बचाव के लिए स्तनपान बहुत अधिक कारगर है। मां के दूध की महत्ता को समझते हुए स्वास्थ्य विभाग की ओर से भी यह सुनिश्चित कराया जा रहा है कि जन्म के तुरंत बाद बच्चे को मां की छाती पर रखकर स्तानपान की शुरुआत लेबर रूम के अंदर ही करायी जाए। इसके अलावा मां को स्तनपान की स्थिति (पोजीशन), बच्चे का स्तन से जुड़ाव और मां के दूध निकालने की विधि को समझाने में भी ममता द्वारा पूरा सहयोग किया जाता है, ताकि कोई भी बच्चा अमृत समान मां के दूध से वंचित न रह जाये।
प्रतिरोधक क्षमता में होगी बढ़ोतरीः उन्होंने बताया कि यदि बच्चे को जन्म के पहले घंटे के अंदर मां का पहला पीला गाढ़ा दूध पिलाया जाये तो ऐसे बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। बच्चे को छह माह तक लगातार केवल मां का दूध दिया जाना चाहिए और उसके साथ किसी अन्य पदार्थ जैसे पानी, घुट्टी, शहद, गाय अथवा भैंस का दूध नहीं देना चाहिए, क्योंकि वह बच्चे के सम्पूर्ण मानसिक एवं शारीरिक विकास के लिए सम्पूर्ण आहार के रूप में काम करता है। बच्चे को हर डेढ़ से दो घंटे में भूख लगती है। इसलिए बच्चे को जितना अधिक बार संभव हो सके मां का दूध पिलाते रहना चाहिए। मां का शुरुआती दूध थोड़ा कम होता है, लेकिन वह बच्चे के लिए पूर्ण होता है। अधिकतर महिलाएं यह सोचती हैं कि उनका दूध बच्चे के लिए पूरा नहीं पड़ रहा और वह बाहरी दूध देना शुरू कर देती जो कि एक भ्रांति के सिवाय और कुछ नहीं है। मां के दूध में भरपूर पानी और पोषक तत्व होते हैं, इसलिए बच्चे को बाहर का कुछ देने की जरूरत नहीं होती।

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