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महावीर जयंती के अवसर पर सूर्यदत्ता ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट की ओर से मोहन धारिया को मरणोपरांत ‘अहिंसारत्न विश्व पुरस्कार -२०२१’ से सम्मानित किया गया

मोहन धारिया का जीवन बलिदान समर्पण का प्रतीक : प्रा. डॉ. संजय चोरडिया

सूर्यदत्ता ग्रुप ऑफ इन्स्टिट्यूट की और से मोहन धारिया को मरणोत्तर ‘अहिंसारत्न विश्व पुरस्कार-२०२१’ प्रदान

पुणे: “भारत के माजी केंद्रीय मंत्री और वनराई के संस्थापक पद्मविभूषण मोहन धारिया उनका जीवन बलिदान समर्पण और निस्वार्थ भावना का प्रतीक है. कौन से भी पद की अपेक्षा न रखते हुए उन्होंने समाज और पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण काम किया है. ऐसे व्यक्ति को २५००वे भगवान महावीर जयंती के अवसर पर २५ अप्रैल २०२१ को पहला मरणोपरांत अहिंसारत्न पुरस्कार प्रदान करते हुए मन भर गया है,” ऐसी भावना सूर्यदत्ता ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट के संस्थापक अध्यक्ष प्रा. डॉ. संजय चोरडिया ने व्यक्त की.

भगवान महावीर जयंती के दिन सूर्यदत्ता ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट की ओर से मोहन धारिया को पहला ‘अहिंसारत्न विश्व पुरस्कार-२०२१’ (मरणोपरांत) प्रदान किया गया. वनराई के अध्यक्ष रविंद्र धारिया ने यह पुरस्कार स्वीकारा. इस वक्त सूर्यदत्ता के कार्यकारी संचालक प्रा. अक्षित कुशल, धारिया परिवारातील माधवी धारिया, सागर धारिया, निनादा कश्यप, रश्मी धारिया आदि उपस्थित थे. जिन्होंने महावीर जी की जीवन शैली को आचरण में रखते हुए अहिंसा सत्य निस्वार्थ भावना से काम काम किया ऐसे लोगों को महावीर जयंती के अवसर पर हर साल अहिंसारत्न पुरस्कार दिया जाएगा ऐसे प्रा. डॉ. संजय चोरडिया ने बताया.

प्रा.डॉ. संजय चोरडिया ने कहा, “मोहन धारिया के जीवन को देखते हुए, अन्ना ने भगवान महावीर द्वारा दी गई अहिंसा, सत्य की शिक्षाओं का अभ्यास किया. महावीर की शिक्षाओं और मूल्यों के प्रति सम्मान उनकी विचारधारा, जीवन में दिखाई देती है. गांवों में पर्यावरण संरक्षण के लिए आंदोलन का नेतृत्व किया. उन्हें किसानों और ग्रामीण लोगों का बहुमूल्य सहयोग मिला. राजनेताओं, समाजशास्त्रियों और जीवन के सभी क्षेत्रों के गणमान्य लोगों के साथ उनके करीबी संबंध थे. उनका जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा था. यदि हर कोई अन्ना की तरह महावीर के मूल्यों का पालन करता है, तो दुनिया शांति और समानता के रास्ते पर चलेगी. सब स्वस्थ और खुशहाल रहेंगे.”

“मेरी मां रतनबाई और पिता बंसीलाल चोरडिया दोनों ने जीवनभर जैन धर्म, मूल्यों और नैतिकता का सख्ती से पालन किया. पिता बंसीलाल ने नाना पेठ के साधना सदन में मूल्यों को सिखाकर हजारों छात्रों को मूल्य आधारित जीवन जीने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने इसके लिए कई चीजें छोड़ दीं. जूते नहीं पहने, दिन में केवल दो बार खाना खाना, खाना बर्बाद नहीं करना, सुबह जल्दी उठना, वह वारकारी-संथारा की नियमित रूप से सेवा करने जैसी चीजें करते थे.

रवींद्र धारिया ने कहा, “मैं अपने पिता मोहन धारिया को भगवान महावीर के नाम पर यह पहला पुरस्कार देने के लिए सूर्यदत्ता परिवार को धन्यवाद देता हूं. अन्ना ने महावीर द्वारा दी गई शिक्षाओं के साथ वास्तविक दुनिया में काम किया. वही कार्य आगे ले जाने के लिए हम सभी कड़ी मेहनत कर रहे हैं.”

‘बन्सीरत्न इन्स्टिट्यूट ऑफ व्हेजिटेरियन क्यूलिनरी आर्टस् अँड रिसर्च’की स्थापना
माता-पिता की प्रेरणा से 22 साल पहले सूर्यदत्ता एजुकेशन फाउंडेशन की स्थापना की गई थी। सभी शाकाहारी छात्रों को होटल प्रबंधन के क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त करने और एक स्थायी व्यवसाय या रोजगार का निर्माण करने में सक्षम बनाने के लिए सूर्यदत्ता की ओर से महावीर जयंती के अवसर पर ‘बन्सीरत्न इन्स्टिट्यूट ऑफ व्हेजिटेरियन क्यूलिनरी आर्टस् अँड रिसर्च’की स्थापना कर रहे है. लंडन अकॅडमी ऑफ प्रोफेशनल ट्रेनिंग के सहयोग से उनका पाठ्यक्रम जल्द ही दुनिया भर के शाकाहारी खाद्य पदार्थों का अध्ययन करके तैयार किया जाएगा. संस्थान देश के कुछ शाकाहारी संस्थानों में से एक होगा.

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