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विश्व हिंदी परिषद द्वारा सम्मानित हुई डा. मानसी द्विवेदी

विश्व हिंदी परिषद द्वारा आयोजित काव्योत्सव कार्यक्रम में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिये सम्मान प्रदान किया गया

गायन के क्षेत्र में तेजी से उभरती प्रतिभा डा. मानसी द्विवेदी  को विश्व हिन्दी परिषद द्वारा विश्व हिन्दी सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया है । ज्ञात हो कि डॉ विपिन कुमार के नेतृत्व में कार्य कर रही देश की अग्रणी हिन्दी साहित्य सेवी संस्था- विश्व हिन्दी परिषद द्वारा अपने फेसबुक पेज के माध्यम से काव्योत्सव कार्यक्रम चलाया जा रहा है । इस कार्यक्रम में देश के चुनिंदा और महत्त्वपूर्ण कवियों और कलाकारों को काव्य पाठ और गायन सहित अपनी विभिन्न कलाओं के प्रर्दशन के लिए आमंत्रित किया जाता है । विगत 10 मई   , 2020 को को डा. मानसी द्विवेदी को  एक कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया था । इसमें डा. मानसी द्विवेदी ने अपनी  रचनाओं का बेहतरीन और यादगार काव्य पाठ किया था ।  इस कार्यक्रम को देश – विदेश में लगभग सैतालिस  हज़ार ( 47,000) लोगों ने देखा था । विश्व हिन्दी परिषद ने उनकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की सराहना की है और उन्हें विश्व हिन्दी सेवा सम्मान से सम्मानित किया है ।

साहित्य में सोती हूँ, साहित्य में जगती हूँ: मानसी
दल बन चुके हैं, कुछ मठाधीश भी हैं, चाटुकारिता चरम पर है ।
कवयित्री डा. मानसी द्विवेदी से विशेष बातचीत:-

लखनऊ। पेशे से शिक्षिका डा. मानसी द्विवेदी किसी परिचय की मोहताज नहीं।33 वर्ष की अवस्था में मानसी की उपलब्धियों पर आश्चर्य होता है जितना कुशल मंच संचालन उतनी ही कुशल सामाजिकता उतने ही सुंदर संस्कार ।सात वर्ष का बेटा “हनु ” धाराप्रवाह शिवतांडव पढ़ता है। हिंदी साहित्यजगत में वह डा. मानसी द्विवेदी के नाम से भारत ही नहीं विश्व के अन्य देशों में ध्रुव तारा मानिंद चमक रही हैं। संघर्षो के बीच साहित्याकाश में चमकी डा.मानसी के अब तक दो काव्य संग्रह समेत चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। दो पुस्तकें विभिन्न विश्वविधालय में शिक्षक प्रशिक्षण कक्षाओं के कोर्स में भी पढ़ाई जाती हैं। उत्कृष्ट साहित्य सृजन के लिए सरस्वती दुहिता डा. मानसी को बीते जनवरी माह में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने डा. रांगेय राघव पुरस्कार से सम्मनित कर अवध क्षेत्र संग देश की आधी आबादी को सम्मानित किया। डा. मानसी का कहना है साहित्य में ही जगती हूँ, साहित्य में ही सोती हूँ।क्योंकि साहित्य ही जीवन है, स्वरूप भले ही कैसा भी हो। कहती हैं कि काव्य का प्रेत बनने की जरूरत नहीं लेकिन भाषा, भाव, शैली को जो नजर लगी हुई है, दल बन चुके हैं। कुछ मठाधीश भी हैं। चाटुकारिता चरम पर है। जो उच्चकोटि की चाटुकारिता करने में सक्षम हैं या बहुतायत में मंच देते है। उन्हें ही आजकल पसंद किया जाता है। ऐसे मठाधीशों को साहित्यिक मंत्र से झाड़ने की जरूरत है। फिर भी यूपी में बेहतर साहित्य सृजन हो रहा है। डॉ निर्मल दर्शन उनके प्रिय गीतकार हैं।गुनवीर राणा की पंक्तियों की जबरदस्त प्रशंसक हैं।प्रस्तुत है डा. मानसी से विशेष बातचीत:

1.- लेखन के सफर की शुरुआत कब और कैसे हुई।
– साहित्यिक प्रतिभा पिता से विरासत के तौर पर मिली। मैं मूलत: फैजाबाद जिले के मिल्कीपुर तहसील बांसगाँव की निवासी हूँ। पिता पंडित खुशीराम द्विवेदी जी फैजाबाद के साहित्यसेवियों में ओज के नामचीन कवि हैं। उन्हे राष्ट्रपति पुरस्कार से भी नवाजा गया है। पिता ने ही साहित्य सृजन की बारीकियों से परिचय कराया।

2:- किस तरह आपने संघर्ष कर अल्प समय में साहित्य जगत की ऊँचाइयां हासिल की।
– मैं प्रारम्भ से ही स्वाभिमानी,स्वावलंबी रही होस्टल में एम.ऎड. के साथ -2 आकाशवाणी उद्घोषिका का कार्य भी करती थी ,सिविल भी दे रही थी .. मैंने 4 परास्नातक किये।अव्वल श्रेणी की पढ़ाई रही ,हर वक़्त बस ये सनक रहती थी कि मैं मिल्कीपुर,फैजाबाद के छोटे से गांव से निकल कर आई हूं आस-पास की लड़कियों की आंखों में सपने जगाना है कि तुम यहीं कैद मत रहो कुछ करो। बेसिक शिक्षा विभाग में सहायक शिक्षिका के पद पर श्रावस्ती जिले से नई शुरुआत थी फिर बहराइच में विवाह और फिर जीवन में सुनामी जैसी दस्तक…।इन सबके बीच कुछ बहुत मजबूती से मेरे साथ रहा तो मेरा हौसला ।जिंदगी की जिजीविशा ने बंदिशो को तोड़ने की हिम्मत दी। फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। बस हमारे बजरंगबली और मेरी मां सूर्यवती दुबे ने सब आसान कर दिया।बेटा “हनु” भी कुछ न समझने की उम्र में बहुत कुछ समझ लेता था मुझे।मैंने अपने जीवन और माता सीता के जीवन में बड़ा साम्य पाया तो सीता जैसा मन लेकर कई छंद और गीत भी लिखा जिसने अलग पहचान दी मंच पर।

3:- क्या हिंदी साहित्य गुटबाजी का शिकार है?
– बेशक दल बन चुके हैं। कुछ मठाधीश भी हैं। चाटुकारिता चरम पर है। जो उच्चकोटि की चाटुकारिता कर सकने में सक्षम हैं या बहुतायत में मंच देते है। उन्हें ही आजकल पसंद किया जाता है। पर सूरज को बहुत देर तक ढका नहीं जा सकता। अगर हमारा लेखन मौलिक है तो समाज के बीच जाएगा और लोगों की दृष्टि उस पर पड़ेगी जरूर।

4:- हिंदी काव्य लेखन की वर्तमान दशा और दिशा के प्रति आपका नजरिया क्या है।
– हिंदी का भविष्य बहुत अच्छा है। अंग्रेजी भाषा को महत्व दिया जा रहा है। यूपी बोर्ड भी अंग्रेजी की दौड़ में शामिल है। लेकिन सुखद यह है कि जो नई युवा पीढ़ी है उसमें विशुद्ध हिंदी लिखने वाले मिलेंगे। मंचो पर जो नवोदित कवि आ रहे हैं उनमें सब नहीं लेकिन कुछ युवा बेहतर लेखन कर रहे हैं। बात करें राष्ट्रीय स्तर पर तो यूपी के युवा कवियों का कोई तोड़ नहीं है। यूपी के साथ ही मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी युवाओं के बलबूते हिंदी समृध्दता की ओर बढ़ रही है।

5:- हिंदी साहित्य लेखन में आज भी आधी आबादी की विशेष सक्रियता नहीं दिखती, क्या कारण है।
– आधी आबादी की दुश्वारियां किसी से छिपी नहीं हैं। लेकिन जब कोई महिला किसी विशेष प्रतिभा से संपन्न हो तो उसकी मुसीबतें और भी बढ़ जाती हैं। जिम्मेदारियां भी होती हैं। अपनी प्रतिभा को सहेजते हुए जिम्मेदारियों संग उसे समाज की विद्रूपताओं से संघर्ष करना पड़ता है। पहले की अपेक्षा महिलाएं काव्य और गद्य लेखन में अधिक सामने आ रहीं। लेकिन साहित्य में संघर्ष अधिक है। ऐसे उचित प्लेटफार्म का अभाव समस्याओं को जन्म देता है।

6:- आपके जीवन की सबसे बड़ी चाहत क्या है ?
– सबसे बड़ी चाहत में अपने आदर्श अभिभावक तुल्य आदरणीय ए पी मिश्रा(पूर्व निदेशक पावर कॉर्पोरेशन) जैसा विशाल हृदय चाहती हूं वो इस युग के कर्ण हैं मेरी दृष्टि में ,और गद्य,अध्यात्म लेखन में उनका सानी नहीं।मुख्य मुद्दे की बात करूं तो ये कि जो भी महिला या जो भी लड़कियां हैं सभी को अधिकार मिलना चाहिए। लिखने-पढ़ने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। बेटियों को स्वावलंबी बनने में मदद करें, न कि बाधक बनें। मायका हो या ससुराल दोनों का यह दायित्व है कि बेटी/बहू के अधिकारों का हनन न हो। क्योंकि बेटी दो कुलों को जोड़ने की कड़ी कहलाती है, बेटी सृजन कर्ता है। लेकिन जहां पर सृजन है वहीं विनाश भी है। बेटी/बहू को इतना न परेशान किया जाए कि वह भूमिका को छोड़कर उपसंहार लिखने बैठ जाए।

7:- समाज को क्या संदेश देना चाहेंगी, विशेषकर युवा पीढ़ी एवं महिलाओं को ?
– चाहे आरक्षण हो या उपेक्षा युवा कतई निराश न हों। मैने जिंदगी को बेहद करीब से देखा है। जिन पर दंभ होता है वह रिश्ते पल भर में टूट जाते हैं। महिलाएं अपने आत्मबल को पहचाने अधिकार स्वयं मिल जाएगा। महिला आंगन की शोभा है तो वह रण की मतवाली भी है। अब ऐसा समय है जब किताबों के पन्नों में रानी लक्ष्मी बाई अच्छी नहीं लगती। उसे पन्नों से निकल कर अपने अस्तित्व का परिचय देना होगा।आत्मबल को पहचानना होगा वरना उपेक्षा, संत्रास सताते रहेंगे। युवाओं को यही संदेश देना चाहूंगी –
“अंगद हो तुम पांव जमा लो भय दुत्कारो गड़े रहो
जनमत में बहुमत होगा अपनी शर्तों पर अड़े रहो
तुम अखंड भारत की छवि हो मत टूटो मत बिखरो तुम
रेत निचोड़ो पानी लो मत उस पनघट पर खड़े रहो

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