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ज्योतिष विज्ञान में आज “निर्जला एकादशी ” के बारे में

जाने प्रख्यात ज्योतिषी व कर्मकांड विशेषज्ञ ज्योतिषाचार्य जयकान्त शर्मा कौण्डिन्य जी से

निर्जला एकादशी
ज्योतिषाचार्य जयकान्त शर्मा कौण्डिन्य
(प्रख्यात ज्योतिषी व कर्मकांड विशेषज्ञ)
इस वर्ष यह एकादशी दिन मंगलवार दिनांक 2 जून 2020 को है I वर्ष के दोनों पक्षों की सभी एकादशियो में यह एकादशी सबसे कठिन है I इस दिन भोजन के साथ ही जल का भी त्याग किया जाता है I जो भक्त सभी एकादशी व्रत नहीं रख सकते, वो अगर इस एक एकादशी का व्रत कर ले तो उन्हें सभी एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त हो जाता है |एकादशी व्रत की समाप्ति को पारण कहते है I एकादशी व्रत के दूसरे दिन (द्वादशी को) सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है I एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना चाहिए I द्वादशी तिथि में पारण न करना पाप करने के समान है I यदि व्रत करते हुए द्वादशी सूर्योदय से पूर्व ही समाप्त हो जाती है तो उस स्थिति में भी पारण सूर्योदय के बाद ही किया जायेगा, तब ये पाप नहीं है I एकादशी व्रत का पारण हरी वासर के दौरान नहीं करना चाहिए I हरी वासर की समाप्ति के उपरान्त ही पारण करना चाहिए I हरी वासर द्वादशी तिथि की प्रथम चौथाई अवधि को कहते है I पारण प्रातकाल : के समय करना चाहिए,यदि किसी कारणवश प्रातकाल : में पारण नहीं कर पाए तो मध्यान में पारण करने से बचना चाहिए, फिर मध्यान के बाद ही पारण करना चाहिए I
कभी कभी एकादशी की तिथि सूर्योदय के बाद शुरू होती है और अगले दिन सूर्योदय के बाद ख़त्म हो जाती है I ऐसे में वैष्णव जन को सूर्योदय के समय वाली एकादशी का व्रत ही करना चाहिए I सन्यासी,विधवा और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक जन भी सूर्योदय के समय पड़ने वाली एकादशी को ही व्रत करते है I इसे दूजी एकादशी एवं वैष्णव एकादशी भी कहते है Iभगवान् विष्णु का स्नेह और भक्ति पाने के इच्छुक जन दोनों दिन की एकादशी का व्रत करते है I
——–निर्जला एकादशी व्रत कथा :–
पांडू पुत्र भीमसेन अपनी भूख पर नियंत्रण न रख पाने के कारण व्रत नहीं रख पाता था I बाकी सभी भाई,माँ कुंती एवं द्रोपती आदि व्रत करते थे I व्रत न रख पाने की दुविधा निवारण के लिए भीमसेन महर्षि व्यास के पास गया Iभीमसेन व्यासजी से कहने लगे कि हे पितामह – भ्राता युधिष्ठिर, माता कुंती, द्रोपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि सब एकादशी का व्रत करने को कहते हैं, परंतु महाराज मैं उनसे कहता हूँ कि भाई मैं भगवान की शक्ति पूजा आदि तो कर सकता हूँ, दान भी दे सकता हूँ परंतु भोजन के बिना नहीं रह सकता।
इस पर व्यासजी कहने लगे कि हे भीमसेन! यदि तुम नरक को बुरा और स्वर्ग को अच्छा समझते हो तो प्रति मास की दोनों एक‍ा‍दशियों को अन्न मत खाया करो। भीम कहने लगे कि हे पितामह! मैं तो पहले ही कह चुका हूँ कि मैं भूख सहन नहीं कर सकता। यदि वर्षभर में कोई एक ही व्रत हो तो वह मैं रख सकता हूँ, क्योंकि मेरे पेट में वृक नाम वाली अग्नि है सो मैं भोजन किए बिना नहीं रह सकता। भोजन करने से वह शांत रहती है, इसलिए पूरा उपवास तो क्या एक समय भी बिना भोजन किए रहना कठिन है।
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अत: आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताइए जो वर्ष में केवल एक बार ही करना पड़े और मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए। श्री व्यासजी कहने लगे कि हे पुत्र! बड़े-बड़े ऋषियों ने बहुत शास्त्र आदि बनाए हैं जिनसे बिना धन के थोड़े परिश्रम से ही स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। इसी प्रकार शास्त्रों में दोनों पक्षों की एका‍दशी का व्रत मुक्ति के लिए रखा जाता है।
व्यासजी के वचन सुनकर भीमसेन नरक में जाने के नाम से भयभीत हो गए और काँपकर कहने लगे कि अब क्या करूँ? मास में दो व्रत तो मैं कर नहीं सकता, हाँ वर्ष में एक व्रत करने का प्रयत्न अवश्य कर सकता हूँ। अत: वर्ष में एक दिन व्रत करने से यदि मेरी मुक्ति हो जाए तो ऐसा कोई व्रत बताइए।
यह सुनकर व्यासजी कहने लगे कि वृषभ और मिथुन की संक्रां‍‍ति के बीच ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी आती है, उसका नाम निर्जला है। तुम उस एकादशी का व्रत करो। इस
एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन के सिवा जल वर्जित है। आचमन में छ: मासे से अधिक जल नहीं होना चाहिए अन्यथा वह मद्यपान के सदृश हो जाता है। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है।
यदि एकादशी को सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक जल ग्रहण न करे तो उसे सारी एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है। द्वादशी को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करके ब्राह्मणों का दान आदि देना चाहिए। इसके पश्चात भूखे और सत्पात्र ब्राह्मण को भोजन कराकर फिर आप भोजन कर लेना चाहिए। इसका फल पूरे एक वर्ष की संपूर्ण एकादशियों के बराबर होता है।
व्यासजी कहने लगे कि हे भीमसेन! यह मुझको स्वयं भगवान ने बताया है। इस एकादशी का पुण्य समस्त तीर्थों और दानों से अधिक है। केवल एक दिन मनुष्य निर्जल रहने से पापों से मुक्त हो जाता है।
जो मनुष्य निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं उनकी मृत्यु के समय यमदूत आकर नहीं घेरते अपितु भगवान के पार्षद उसे पुष्पक विमान में बिठाकर स्वर्ग को ले जाते हैं। अत: संसार में सबसे श्रेष्ठ निर्जला एकादशी का व्रत है। इसलिए यत्न के साथ इस व्रत को करना चाहिए। उस दिन ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का उच्चारण करना चाहिए और गौदान करना चाहिए।
इस प्रकार व्यासजी की आज्ञानुसार भीमसेन ने इस व्रत को किया। इसलिए इस एकादशी को भीमसेनी या पांडव एकादशी भी कहते हैं। निर्जला व्रत करने से पूर्व भगवान से प्रार्थना करें कि हे भगवन! आज मैं निर्जला व्रत करता हूँ, दूसरे दिन भोजन करूँगा। मैं इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करूँगा, अत: आपकी कृपा से मेरे सब पाप नष्ट हो जाएँ। इस दिन जल से भरा हुआ एक घड़ा वस्त्र से ढँक कर स्वर्ण सहित दान करना चाहिए।
———निर्जला एकादशी का माहत्म्य :–
जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं उनको करोड़ पल सोने के दान का फल मिलता है और जो इस दिन यज्ञादिक करते हैं उनका फल तो वर्णन ही नहीं किया जा सकता। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णुलोक को प्राप्त होता है। जो मनुष्य इस दिन अन्न खाते हैं, ‍वे चांडाल के समान हैं। वे अंत में नरक में जाते हैं। वे अंत में नरक में जाते हैं। जिसने निर्जला एकादशी का व्रत किया है वह चाहे ब्रह्म हत्यारा हो, मद्यपान करता हो, चोरी की हो या गुरु के साथ द्वेष किया हो मगर इस व्रत के प्रभाव से स्वर्ग जाता है।
हे कुंतीपुत्र! जो पुरुष या स्त्री श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करते हैं उन्हें अग्रलिखित कर्म करने चाहिए। प्रथम भगवान का पूजन, फिर गौदान, ब्राह्मणों को मिष्ठान्न व दक्षिणा देनी चाहिए तथा जल से भरे कलश का दान अवश्य करना चाहिए। निर्जला के दिन अन्न, वस्त्र, उपाहन (जूIती) आदि का दान भी करना चाहिए। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस कथा को पढ़ते या सुनते हैं, उन्हें निश्चय ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है I

ज्योतिषीय विचार :-
सच्चाई क्या है ?स्वयं फैसला करें |
क्या शास्त्रों में कहीं भी काल सर्प का विवरण दिया है ?क्या मांगलिक कन्या का विवाह मांगलिक लड़के से ही होना आवश्यक है ?बेटे बेटी की उम्र बढ़ती जा रही है परंतु न व्यवसाय का चुनाव हुआ न विवाह ही हुआ? क्या ग्रहों का प्रभाव हमारे दैनिक जीवन पर पड़ता है?
[मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है ?]
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पंडित जी ने जन्मपत्री तो अच्छी मिलाई थी फिर भी मेरा विवाह क्यों टूटा? क्यों कलह क्लेश रहता है? मेहनत तो बहुत करता हूं मगर फिर भी सफलता नहीं आती? आत्महत्या करने का मन क्यों करता है ?वो मेरे से हर बात में कमजोर है फिर भी सफल है और मैं असफल|
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