
एकीकृत चिकित्सा पद्धति की दिशा में मंडाविया का प्रयास ऐतिहासिक
– डॉ. विपिन कुमार (लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीते 9 वर्षों में भारतीय संस्कृति और परंपरा को संरक्षित और संवर्धित करने के लिए अथक प्रयास किये गये हैं। इस कड़ी में, हमने अपनी पारम्परिक चिकित्सा पद्धतियों को पुनर्जीवित करने की दिशा में भी सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर कार्य किया है।
यही कारण है कि आज भारत, पारंपरिक चिकित्सा के वैश्विक केन्द्र के रूप में अपनी एक बेहद ही मजबूत पहचान स्थापित कर चुका है।
वैसे तो इस दिशा में, आयुष मंत्रालय के गठन, अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की शुरुआत, गुजरात के जामनगर में पारंपरिक चिकित्सा वैश्विक केंद्र की स्थापना जैसे कई प्रयास किये गये हैं। लेकिन अब इस कड़ी में, एक और नया अध्याय जुड़ गया है।
दरअसल, बीते दिनों भारत के पारम्परिक चिकित्सा पद्धति के दायरे को और अधिक व्यापक बनाने के उद्देश्य के साथ आयुष मंत्रालय और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के बीच एक ऐतिहासिक समझौता हुआ।
इस समझौते के अंतर्गत, दोनों मिलकर वैसे बीमारियों के विषय में शोध करेंगे, जो हमारे लिए एक राष्ट्रीय समस्या है। इसकी एक सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ पारंपरिक चिकित्सा उपायों को, एम्स की मदद से वैज्ञानिक मानदंडों पर निर्धारित किया जाएगा। इस प्रयास से हमारे पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक अनुसंधान से जोड़ने और आयुर्वेद को वैज्ञानिक प्रमाण के आधार पर अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाने में ऐतिहासिक मदद मिलेगी। हमें इसमें कोई संदेह नहीं है।
इस समझौते के लिए हमारे आयुष मंत्री सर्बानंद सोनोवाल, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री मनसुख मांडविया के साथ ही, आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा और आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. राजीव बहल धन्यवाद के पात्र हैं।
आयुर्वेद विश्व का सबसे प्राचीन चिकित्सा प्रणाली है और यह हमारी एक अमूल्य विरासत है। हालांकि, आधुनिक काल में इसके समक्ष वैज्ञानिक साक्ष्य सृजित करने की एक बड़ी चुनौती है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी सोच से हमने इस दिशा में काफी हद तक सफलता अर्जित कर ली है और अब हमें एक एकीकृत चिकित्सा व्यवस्था की पहुँच को और अधिक गति देने और व्यापक बनाने के लिए प्रयास करने की आवश्यकता है, जो निःसंदेह इस प्रकार के प्रयासों से पूर्ण होगा।
बहरहाल, पारंपरिक चिकित्सा, ज्ञान, कौशल और प्रथाओं का एक ऐसा संयोग है, जो शारीरिक एवं मानसिक बीमारी को रोकने, निदान और उपचार करने में सक्षम है। हमारे यहाँ इन प्रथाओं को योग, आयुर्वेद, होम्योपैथी और सिद्ध के रूप में परिभाषित किया गया है।
इस दिशा में अपने संकल्पों की सिद्धि के लिए अब हमें राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियों और रणनीतियों को एकीकृत करने के अलावा, अपनी जैव विविधिता के संरक्षण के लिए भी अतिरिक्त प्रयास करने की आवश्यकता है। क्योंकि, आज अनुमोदित औषध उत्पादों में से लगभग 40 प्रतिशत संसाधन हमें प्राकृतिक पदार्थों से ही प्राप्त होते हैं। उदाहरण के लिए, यदि आपको कोई हृदय संबंधित रोग है, तो उसके लिए अर्जुन का छाल उपयुक्त है।
ऐसे में, यदि हम अपने पारंपरिक औषधियों को मोबाइल एप्स, ऑनलाइन कक्षाएं और अन्य तकनीकों के माध्यम से व्यापक रूप से अद्यतन करते हुए, लोगों को जागरूक करें, तो हमें अपनी पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को प्रोत्साहन देने के साथ ही, अपनी जैव विविधता को भी बढ़ावा देने में उल्लेखनीय रूप से मदद मिलेगी।
आज जब भारत आज़ादी के अमृत काल में स्वयं को एक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहा है, तो हमें इस दिशा में हमें अपने पारंपरिक ज्ञान और व्यवहार से एक अभूतपूर्व सफलता मिलेगी। बस 130 करोड़ लोग अपनी शक्तियों को पहचानें और उसे अपने जीवन में आत्मसात करें।