स्वास्थ्य

कोरोना संक्रमण काल में टीबी को दिया मात, अब टीबी मरीजों को कर रही है जागरूक

-आईसीयू में जीवन की लड़ाई लड़ सुधा ने समझा टीबी की गंभीरता
-टीबी मुक्त वाहिनी से जुड़कर समुदाय को कर रहीं जागरूक
-लगातार रह रही खांसी को नहीं करें नजरंदाज

पटना-

इधर वैश्विक महामारी कोविड की चपेट में आने का खतरा मंडरा रहा था। तो उधर टीबी बीमारी से जान गंवाने का डर। इस मुसीबत की घड़ी में धरती के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टरों ने भी इलाज करने से हाथ खड़े कर दिये थे। उपचार के लिए कई अस्पतालों के दहलीज तक तो पहुंची। पर किसी ने दर्द पर मरहम लगाने की जहमत नहीं उठाई। बेशक, मैं थक चुकी थी। लेकिन हार नहीं मानी थी। क्योंकि मैंने भी दृढ़ निश्चय कर लिया था टीबी बीमारी को हरा कर ही दम लूंगी। यह दर्द भरी दास्तां व सफलता की कहानी है उस सुधा देवी की। जो सात दिनों तक आईसीयू में भर्ती रही। इस दौरान काफी परेशानियां झेलीं। पर अपने दृढ़ निश्चय से कभी विचलित नहीं हुई। बीमारी को हराकर अब वह टीबी चैंम्पियन बन गई हैं। अब टीबी मुक्त वाहिनी से जुड़कर लोगों को टीबी बीमारी से बचाव के प्रति जागरूक कर रहीं हैं।
बीमारी के दौरान काफी जद्धोजहद भरी जिंदगी जी सुधा
जब इंसान किसी बीमारी से ग्रसित होता है। तब उन्हें जीवन बचाने के लिए उसे कितनी जद्दोजहद करनी पड़ती है। यह हर कोई सुधा के जज्बा और जुनून को जानकर समझ सकता है। सुधा कहतीं है कि अगर कोई भी व्यक्ति को लगातार खांसी या कमजोरी हो रहा हो। और उसे वह अनदेखा करता है। यही लापरवाही उसके लिए जानलेवा साबित हो सकता है। मेरे साथ शायद ऐसी ही हुआ। 29 वर्षीय सुधा मार्च वर्ष 2020 में टीबी बीमारी से ग्रसित हुई थी। उन्हें ठीक होने में आठ माह का समय लगा। सुधा यह स्वीकार करती हैं कि टीबी बीमारी से जंग जीतने के लिए न जाने उन्होंने जीवन में कितनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। एक समय तो ऐसा लगा कि अब वह काल के गाल में समा जाएगी। इन विपरीत परिस्थितियों में भी वह विचलित नहीं हुई। बशर्ते, कोरोना जैसी वैश्विक महामारी में भी टीबी जैसी जानलेवा बीमारी से उनके संघर्ष ने उन्हें समझाया कि सतर्कता ही सर्वोत्तम सुरक्षा है।
जांच एवं उपचार के लिए करना पड़ा संघर्ष
सुधा ने भावुक होते हुए बताया कि लगातार कमजोरी का अनुभव करनाए खांसी और किसी भी तरह का काम करते समय हांफना मेरे जीवन का हिस्सा बन गया था| एक बार मैं चक्कर खाकर गिर पड़ी तो घरवालों ने अस्पताल का रुख किया| कोरोना संक्रमण का समय होने के कारण उपचार एवं जांच टेढ़ी खीर साबित हो रही थी| नामी चिकित्सीय संस्थानों में मुझे चिकित्सकों ने छूना भी जरुरी नहीं समझा और किसी दुसरे जगह जाने की सलाह दी| काफी मशक्कत के बाद एक निजी अस्पताल में जांच के बाद टीबी की पुष्टि हुई और चिकित्सकों ने बताया कि मेरे फेफड़ों में पानी भरा है| सुधा ने बताया कि यह उनके लिए किसी सदमे से कम नहीं था और अस्पताल के चिकित्सकों ने उन्हें आईसीयू में भर्ती कर उनका उपचार शुरू किया|
दवा के पूरे कोर्स का किया सेवन
सुधा ने बताया कि उन्हें एक हफ्ते तक आईसीयू में रखने के बाद वार्ड में शिफ्ट किया गया| करीब 15 दिनों बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिली और दवा के पूरे कोर्स के सेवन की हिदायत दी गयी| दवा सेवन के साथ सुधा ने अपने खान पान में भी सुधार किया और करीब 8 महीने बाद वह अक्टूबर 2020 में टीबी से उबर सकीं| सुधा मानती हैं कि लक्षणों को नजरंदाज करना उन्हें भारी पड़ा और टीबी से लड़ाई के उनके अनुभव ने समझाया कि पौष्टिक खान पान स्वस्थ रहने की कुंजी है|
जगा रही हैं समुदाय में जागरूकता की अलख
सुधा बताती है कि लक्षणों की पहचान कर ससमय जांच एवं उपचार से टीबी को मात दिया जा सकता है| समुदाय में लक्षणों की गंभीरता को समझने को लेकर उदासीनता व्याप्त है जो खतरनाक है| दो हफ्ते से अधिक खांसी का रहनाए बलगम में खून आना, कमजोरी का अहसास एवं हांफने की शिकायत टीबी के संक्रमण के सूचक हैं जिसे जन साधारण को समझने की जरुरत है| सुधा नवंबर 2021 से टीबी मुक्त वाहिनी से जुड़कर एक टीबी चैंपियन के रूप में लोगों को जागरूक कर रही हैं| अपने व्यक्तिगत अनुभव को टीबी मरीजों के साथ साझा कर उन्हें प्रोत्साहित करती हैं और जागरूकता के महत्त्व के बारे में बताती हैं| टीबी रोगियों की जांच, उनके लिए ससमय दवा की उपलब्धता, मरीज दवा के पूरे कोर्स का सेवन करें, यह सब सुधा सुनिश्चित करती हैं| मरीजों को नियमित अंतराल पर फोन कर उनका हाल लेती हैं और उनके घरवालों का भी मनोबल बढ़ाती हैं|

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