संवाद

बलात्कार की सजा ऐसी हो डॉ. वेदप्रताप वैदिक

हाथरस की दलित कन्या के साथ चार नर-पशुओं ने जो कुकर्म किया है, उसने निर्भया कांड के घावों को हरा कर दिया है। यह बलात्कार और हत्या दोनों है।

हाथरस की दलित कन्या के साथ चार नर-पशुओं ने जो कुकर्म किया है, उसने निर्भया कांड के घावों को हरा कर दिया है। यह बलात्कार और हत्या दोनों है। 14 सितंबर को अपने गांव की दलित कन्या के साथ उच्च जाति के चार नरपशुओं ने बलात्कार किया, उसकी जुबान काटी और उसके दुपट्टे से उसको घसीटा। हाथरस के अस्पताल में उसका ठीक से इलाज नहीं हुआ। आखिरकार 29 सितंबर को उसने दिल्ली के एक अस्पताल में दम तोड़ दिया। हाथरस की पुलिस ने लगभग एक हफ्ते तक इस जघन्य अपराध की रपट तक नहीं लिखी। और अब पुलिस ने आधी रात को उस कन्या का शव आग के हवाले कर दिया। उसके परिजन ने इसकी कोई अनुमति नहीं दी थी और उनमें से वहां कोई उपस्थित नहीं था। पुलिस ने यह क्यों किया ? जाहिर है कि पुलिस को अपनी करनी का जरा भी डर नहीं है। दूसरे शब्दों में पुलिस विभाग के उच्चाधिकारियों ने इस जघन्य अपराध की अनदेखी की। अब यदि हाथरस के स्थानीय पुलिस थाने के थानेदार का तबादला कर दिया गया है तो यह मामूली कदम है। उ.प्र. के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपेक्षा है कि वे इन पुलिसवालों पर इतनी कठोर कार्रवाई करेंगे कि वह सारे देश के पुलिसवालों के लिए एक मिसाल बन जाए। जहां तक उन चारों बलात्कारियों का प्रश्न है, उन्हें पीड़िता ने पहचान लिया था और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है। अब उन पर मुकदमा चलेगा और उसमें, हमेशा की तरह, बरसों लगेंगे। जब तक उन्हें सजा होगी, सारे मामले को लोग भूल जाएंगे, जैसा कि निर्भया के मामले में हुआ था। उन अपराधियों को मौत की सजा जरुर हुई लेकिन वह लगभग निरर्थक रही, क्योंकि जैसे अन्य मामलों में सजा-ए-मौत होती है, वैसे ही वह भी हो गई। लोगों को प्रेरणा क्या मिली ? क्या भावी बलात्कारियों के दिलों में डर पैदा हुआ ? क्या उस सजा के बाद बलात्कार की घटनाएं देश में कम हुई ? क्या हमारी मां-बहनें अब पहले से अधिक सुरक्षित महसूस करने लगीं ? नहीं, बिल्कुल नहीं। निर्भया के हत्यारों को जेल में चुपचाप लटका दिया गया। जंगल में ढोर नाचा, किसने देखा ? इन हत्यारों, इन नर-पशुओं, इन ढोरों को ऐसी सजा दी जानी चाहिए, जो भावी अपराधियों की हड्डियों में कंपकंपी दौड़ा सके। अब इस दलित कन्या के बलात्कारियों और हत्यारों को मौत की सजा अगले एक सप्ताह में ही क्यों नहीं दी जाती? उन्हें जेल के अंदर नहीं, हाथरस के सबसे व्यस्त चौराहे पर लटकाया जाना चाहिए। उनकी लाशों को कुत्तों से घसिटवाकर जंगल में फिंकवा दिया जाना चाहिए। इस सारे दृश्य का भारत के सारे टीवी चैनलों पर जीवंत प्रसारण किया जाना चाहिए, तभी उस दलित कन्या की हत्या का प्रतिकार होगा। उसे सच्चा न्याय मिलेगा और भावी बलात्कारियों की रुह कांपने लगेगी।

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