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दिखने लगा माकन का जलवा, पदभार संभालते ही कांग्रेस के समीकरण बदले

 – कब तक प्रभारी महासचिवों की होगी घोषणा, कयासों का दौर जारी

रितेश सिन्हा-

कांग्रेस में बदलाव की नई शुरूआत हो चुकी है। लगभग 8 महीने के बाद कांग्रेस की संचालन समिति को कांग्रेस कार्यसमिति ने पलट दिया। इसमें कांट-छांट के बाद मनमोहन, सोनिया, राहुल, प्रियंका के अलावा 80 लोगों को जगह दी गई। महिला आरक्षण के नाम पर कांग्रेस अपनी पीठ खुद थपथपा रही है। जनता को कांग्रेस अध्यक्ष और वर्किंग कमिटी में बैठे सिपाहसलार अब तक ये बताने में नाकामयाब रहे हैं कि इस बिल को लाने की शुरूआत पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने की थी। हालांकि राजीव गांधी के नजदीकी व आल इंडिया पंचाचत परिषद् से जुड़े पूर्व सांसद डी पी राय और पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर जोर देकर अपनी बात रखते हैं कि पंचायत स्तर तक महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए दिवंगत प्रधानमंत्री प्रयासरत थे। इसमें महिलाओं में विशेषकर दलित और ओबीसी के लिए पंचायत और निकाय चुनावों के लिए सीटें आरक्षित की गई थीं। आज भी उसी फार्मूले पर  पूरे देश में पंचायत और निकाय चुनाव होते हैं। कांग्रेस में अधोघोषित रूप से दो धड़े अपना असर दिखा रहे हैं। हालांकि खड़गे और राहुल गांधी में कोई मतभेद सार्वजनिक रूप से अब तक सामने नहीं आया है। खड़गे की सभी समितियों में कांग्रेस अध्यक्ष और उनके मंत्री पुत्र का खासा दखल देखने को मिल रहा है। अजय माकन के कोषाध्यक्ष बनने के बाद टीम राहुल और प्रियांक की अगुवाई में टीम खड़गे के बीच विवाद थोड़ा थमा है। माकन दोनों की पसंद हैं। इससे पहले खड़गे ने कोषाध्यक्ष पवन कुमार बंसल को दबाने की भरपूर कोशिश की थी, मगर टीम राहुल का वरदहस्त होने के अलावा निर्विवाद छवि होने के कारण बंसल उन्हें चुनौती देते आ रहे थे। खड़गे के अध्यक्ष बनने से अध्यक्ष पद के लिए फार्म खरीदने में पहल बंसल ने की थी, लेकिन राजस्थान विवाद के बीच अशोक गहलोत का बचाव करने में खड़गे अपना खेल कर गए। कर्नाटक चुनाव देखते हुए गहलोत दिल्ली में सोनिया और राहुल को ये समझाने में कामयाब रहे कि खड़गे के नाम पर दलित कार्ड चुनाव में मजबूती दे सकता है। उनकी ये रणनीति कामयाब रही।माकन और खड़गे के बीच विवाद उन दिनों गहरा गया था। अजय माकन ने सार्वजनिक रूप से मल्लिकार्जुन खड़गे को इस विवाद से दूर रहने की सलाह भी दी थी। खड़गे कोषाध्यक्ष के पद पर अपने चहेते अशोक चव्हान और आनंद शर्मा को बिठाने चाहते थे। पर टीम राहुल ने पवन कुमार बंसल पर डटी रही। यही वजह रही कि बंसल कोषाध्यक्ष पद से हटाने की पहली किश्त में उन्हें कार्यसमिति की मुख्य सूची से हटाते हुए स्थायी आमंत्रित की सूची में डाल दिया। इस पर बंसल आहत थे और उन्होंने आफिस तक आना छोड़ दिया था। तेलंगाना की सीडब्लूसी की पहली मीटिंग से भी बंसल ने खुद को अलग कर लिया था। डेढ़ महीने तक चले मान-मनोव्वल के बाद भी टीम राहुल बंसल को पदमुक्त किए जाने के खिलाफ डटी रही। खड़गे टीम राहुल की बगावत के आगे झुके जिसमें सुलह का फार्मूला तैयार कर माकन के नाम को मंजूरी दी गई। अजय माकन एनएसयूआई में भी कोषाध्यक्ष रह चुके हैं। इसके अलावा कांग्रेस तिवारी में भी उन्हें दिल्ली का कार्यकारी अध्यक्ष का दर्जा दिया गया था, साथ ही वे कोषाध्यक्ष का पद भी संभाल रहे थे। माकन के दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष बनने के बाद टीम राहुल ने एआईसीसी पर अपना झंडा फिर से गाड़ दिया। एआईसीसी के एडमिनिस्ट्रेशन का सारा प्रबंध कोषाध्यक्ष के पास होता है। अब तक अहमद पटेल के दायें-बायें के नाम पर मनीष चतरथ केंद्रीय कार्यालय में खासी हवाबाजी करते रहे, जिस पर माकन ने आते की पंजा जमा दिया। माकन की नजर जवाहर लाल नेहरू युवा केंद्र के विवाद को भी निबटाने की जवाबदेही है। पहले ही दिन उन्होंने युवा केंद्र के पदाधिकारियों को बुलाकर अपने व्यस्त कार्यक्रम के बावजूद भी तफसील से वर्तमान वस्तुस्थिति की जानकारी ले ली जिस पर तीन परिवारों का कब्जा है। इसमें फर्जी तौर पर पदाधिकारी बताने वाले पूर्व सांसद प्रवीन सिंह ऐरन जो सपा में हैं जिन पर नोएडा, बरेली, कानपुर, मुरादाबाद और लखनऊ मे बारातघर बनाने का गंभीर आरोप है, जिसकी मोटी कमाई ऐरन और उनके खास लोगों में बंटती रही है। ताजा मामला नोएडा में स्कूल और हरिद्वार में पूर्व विधानसभा स्पीकर पुरूषोत्तम गोयल द्वारा जेएनएनवाईसी सोसाइटी की 5 एकड़ जमीन को अपने व्यवसायिक हितों के साथ स्थानीय समिति पर दवाब डालते हुए एक संस्था के साथ एग्रीमेंट है जिस पर खासा बवाल मचा हुआ है। माकन के कोषाध्यक्ष ग्रहण समारोह के दौरान अब तक का पिछले एक दशक में सबसे बड़ा शो माना जा रहा है। आपको बता दें कि खड़गे का पदभार शपथ समारोह पर माकन का पदभार संभालना भारी पड़ा है। माकन दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री, दिल्ली विधानसभा के सभापति, पूर्व केंद्रीय मंत्री सहित अनेक पदभारों को संभाल चुके हैं। आने वाले विधानसभा चुनावों में पैसे का इंतजाम करना, एआईसीसी के प्रबंधन को संभालना, एआईसीसी से जुड़ी संस्थाओं और ट्रस्ट का बेहतर और वित्तीय प्रबंधन करना उनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता है। अहमद पटेल के जाने के बाद लूंज-पुंज वित्तीय प्रबंधन को पवन बंसल ने पटरी पर लाने का प्रयास किया था, मगर सप्ताह में चार दिन केंद्रीय कार्यालय में उपलब्धता की वजह से इसमें थोड़ी अड़चन पैदा हो रही थी, जिस पर गुरदीप सिंह सपल और मनीष चतरथ के अलावा आनंद शर्मा अपनी नजरें गड़ाए हुए थे। कांग्रेस संविधान के अनुसार अध्यक्ष पद के बाद कोषाध्यक्ष सबसे शक्तिशाली पद होता है। उसके बाद महासचिव और अन्य पदाधिकारियों की गिनती शुरू होती है। कोषाध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस अध्यक्ष के करीब रहना व कांग्रेस की धुरी गांधी परिवार के बीच समन्वय स्थापित करना भी होता है। माकन इसमें छात्र राजनीति के दौर से इस मामले में सिद्धहस्त हैं। वे दिल्ली के उन नेताओं में स्थापित हैं जिनकी हर विधानसभा में बड़े नेताओं से सीधा संपर्क है। आने वाले राजनीति में माकन एआईसीसी में अब तक जमे फर्जी नेताओं की लंबी फौज को बाहर का रास्ता दिखवाने में अपनी भूमिका में नजर आएंगे। माकन को हवा-हवाई बड़े नेताओं को हड़काने का भी खास तर्जुबा है जो सोनिया गांधी कैंप के नाम पर अपनी दुकानदारी चलाते आए हैं। एआईसीसी में एक जमाने में शक्तिशाली महासचिव और सोनिया गांधी को हिन्दी पढ़ाने के नाम पर सांसद बनने और अपनी दुकान चलाने वाले जनार्दन द्विवेदी को भी माकन ने केंद्रीय कार्यालय में उनके बयान की वजह से काफी लताड़ा था जो मीडिया में भी चर्चा का विषय बना था। मिलनसार माकन का जलवा एआईसीसी में अब दिखने लगा है। बदलते समीकरणों में राहुल और खड़गे के बीच माकन कितना तालमेल बिठा पाते हैं, इस पर राजनीतिक विश्लेषकों की नजर बनी रहेगी।

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