अनंत सागर-अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज द्वारा अंतर्मुखी के दिल की बात(दसवां भाग)
"मानवीयता की उपेक्षा- प्रलय को निमंत्रण’

“मानवीयता की उपेक्षा- प्रलय को निमंत्रण’
एक इंसान इतनी बर्बरता का काम कैसे कर सकता है ??? क्या उसके अंदर से मानवीयता, करूणा, ममता चली गई है। मानवता स्वार्थ के प्रति इतनी समर्पित हो चुकी है कि अन्य जीवों का जीवन नगण्य बन चुका है !!
जानवरों की प्रकृति के संरक्षण में कितनी अहम भूमिका है कोई इससे अपरिचित नहीं है। आज अन्तर्मुखी के दिल की बात में हम बात करेंगे इसी हिंसक तांडव की। केरल में एक गर्भवती हथनी को अनानास में बम रख कर मार दिया गया। जंगल से जानवरों का खेतों और आवासीय क्षेत्रों में आवागमन न हो इसलिए वहाँ के लोग इस तरह उन मूक प्राणियों का अंत कर रहे हैं। जानवर कितना भी जंगली क्यों न हो क्या इन्सान उसे इतनी निर्मम मृत्यु देने का अधिकारी है??
इस भयानक कृत्य के घट जाने के उपरांत संवेदना तो दूर पुनः राजनीति शुरु की जा रही है। यह सृष्टि और इसकी सुरक्षा किसी भी राजनीति से परे है। सृष्टि संरक्षित रहेगी तभी जीवन संभव होगा और जीवन होगा तभी राजनीति को स्थान मिलेगा। वोट की राजनीति में आकर इस हिंसा के तांडव को रोकने के लिए कोई एक साथ एक मंच पर नहीं आना चाहता। क्या संवेदनशीलता जैसे किसी मानवीय गुण का हमारे मानसपटल पर छाप भी बाकी है? ? जिनके अंदर मनावता नहीं उन्हें मानव कहलाने का अधिकार ही नहीं है। केरल की वो हथनी मुद्दा तो बन गई है, किंतु इसके पश्चात भी जानवरों के साथ जो मानवजाति हिंसा का तांडव कर रही है वह थमा नहीं है। सारी राजनैतिक पार्टियों को एक मंच पर बैठकर निर्णय लेना होगा की कैसे देवताओं, सभ्यताओं, संस्कारों के देश में मांसाहार, शिकारी शौक रखने वालों पर कैसे प्रतिबन्ध लगाया जाए। सवाल यह है कि इसकी पहल कौन सी पार्टी करे ? क्योंकि यह भी सत्य है कि राजनैतिक पार्टी के आगे आए बिना निर्णय नहीं हो सकता है, बस बहस हो सकती है। जो पार्टी सत्ता में हो उसे इस ओर कदम बढ़ाना चाहिए। जरुरत है मानवीय मूल्यों को राजनीति में स्थान देने की। प्रकृति का संरक्षण किसी भी मज़हबी संरक्षण से परे है। इस वर्ष प्राकृतिक आपदाओं का प्रलयंकारी होना कितनी बड़ी चेतावनी है इसे समझने की आवश्यकता है। प्रकृति के संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी ही होगी। इस मुद्दे पर राजनैतिक स्वार्थ और मजहबी सोच का परित्याग करना ही होगा। प्रतिदिन लगभग हजारों और लाखों की संख्या में जानवरों की हत्याएँ होती हैं। कारण है – फैशन के संसाधन बनाने में, मांसाहार और दवाइयों के निर्माण इत्यादि। जनता जिस तरह चाइना के समान नहीं खरीदने पर बल दे रही है उन्हें उससे अधिक विरोध इस बात के लिए करना होगा कि हम अब हिंसा से बने समान का इस्तेमाल नहीं करेंगे। यह संकल्प लेना होगा कि मांसाहार नहीं करूँगा और जानवरों की हिंसा से बनी वस्तुओं का उपयोग अब नहीं करूँगा। इस तरह के अभियानों को एक व्यापक गति देने की आवश्यकता है। सरकार बदलती है तो काम का तरीका और उद्देश्य भी बदल जाते हैं। कोई भी सरकार आवे जावे पर सभ्यता और संस्कृति के संरक्षण के बचाव के लिए बनाए गए कोई भी उद्देश्य नहीं बदले जाने का संकल्प यथावत रखना होगा। इसके लिए आम जनता को आगे आना होगा और सजग होना होगा। जनता जनार्दन उन नियमों और कानूनों का विरोध करे, जो हमारी संस्कृति को घात पहुँचाने वाले हो। ज्यादातर लोग मांसाहार इसलिए करते हैं कि उन्हें अनाज औऱ शरीर को मजबूत करने वाले पौष्टिक खाद्य साम्रगी नहीं मिलती है या खाने को भोजन ही नहीं मिल रहा है। फैशन के नाम पर लोग जो हिंसा से बनी साम्रगी का उपयोग करते हैं वह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ के लिए हानिकारक ही है। दवाइयों के नाम पर हिंसा से बनी दवाईयों का उपयोग धडल्ले से हो रहा है। आज नहीं तो कल आगे जाकर शरीर के अलग अलग अंगों को यह कमजोर कर ही देगी। पौप्ष्टिक खाने के नाम पर जो मांसाहार का प्रचलन बढ़ा है, जनता को यहाँ जागरुकता लानी होगी और समझना होगा कि मांसाहार से अधिक पौप्ष्टिक सात्विक भोजन होता है। चलो हथनी के नाम पर ही सही, पर मूक प्राणियों के प्रति हिंसा के इस तांडव को रोकने के लिए समय रहते आवाज़ उठाना ही मानवजाति के लिए श्रेयस्कर है।