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बीपाल्म रेजिमेन से 6 महीने में हो सकेगा ड्रग रेसिस्टेंट टीबी रोगियों का उपचार

• बीपाल्म रेजिमेन पर प्रशिक्षण देने वाला पहला राज्य बना बिहार- डॉ. बी.के.मिश्र


पटना-

ड्रग रेसिस्टेंट टीबी रोगियों के लिए अच्छी खबर है. राज्य में बीपाल्म (B पाम Regimen) रेजिमेन से 6 महीने में ड्रग रेसिस्टेंट टीबी से ग्रसित मरीजों के रोग का प्रबंधन एवं उपचार संभव हो सकेगा. इस बाबत राज्य स्तर पर सभी जिलों के संचारी रोग पदाधिकारी, ड्रग रेसिस्टेंट टीबी सेंटर के मेडिकल ऑफिसर, सांख्यिकी सहायक, लैब तकनीशियन एवं इंटरमिटेंट रेफेरेंस लेबोरेटरी के कर्मियों का दो दिवसीय प्रशिक्षण 23 एवं 24 जनवरी को संपन्न हुआ. प्रशिक्षण कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए अपर निदेशक सह राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी, यक्ष्मा, डॉ. बी.के.मिश्र ने कहा कि बिहार पहला राज्य है जिसने स्वास्थ्यकर्मियों एवं पदाधिकारियों का प्रशिक्षण बीपाल्म रेजिमेन पर किया है. उन्होंने उपस्थित सभी लोगों का प्रशिक्षण कार्यशाला में भाग लेने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया.
डॉ. मल्लिक परमार, विश्व स्वास्थ्य संगठन के नेशनल प्रोग्राम ऑफिसर एवं ड्रग रेसिस्टेंट टीबी एक्सपर्ट ने मुख्य प्रशिक्षक की भूमिका निभाते हुए प्रशिक्षण कार्यशाला में शामिल प्रतिभागियों को बीपाल्म रेजिमेन से संबंधित सारी जानकारी दी एवं पूरे रेजिमेन के सभी बिन्दुओं पर चर्चा की. उन्होंने कहा कि इस रेजिमेन से ड्रग रेसिस्टेंट टीबी से ग्रसित मरीजों का उपचार 6 महीने में संभव हो सकेगा. इस रेजिमेन को राज्य में ड्रग रेसिस्टेंट टीबी रोगियों के उपचार के लिए आरंभ किया जाना है. एमडीआर टीबी गाइडलाइन के मुताबिक इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के अनुसार बीपाम रेजिमेन से उपचार पर ड्रग रेसिस्टेंट टीबी के प्रबंधन एवं उपचार में होने वाले खर्च में कटौती होगी तथा इससे ट्रीटमेंट सक्सेस रेट में भी वृद्धि होगी.
इस अवसर पर राज्य आईईसी पदाधिकारी, यक्ष्मा, बुशरा अज़ीम, टीबीडीसी की अपर निदेशक, डॉ. माला श्रीवास्तव एवं डॉ. रविशंकर, राज्य यक्ष्मा सेल के पदाधिकारी सहित सभी जिलों के संचारी रोग पदाधिकारी, ड्रग रेसिस्टेंट टीबी सेंटर के मेडिकल ऑफिसर, सांख्यिकी सहायक, लैब तकनीशियन एवं इंटरमिटेंट रेफेरेंस लेबोरेटरी के कर्मी उपस्थित रहे.
क्या है मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी:
मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी टीबी संक्रमण का एक रूप है जो कम से कम दो सबसे शक्तिशाली प्रथम-लाइन की दवाओं के साथ इलाज के लिए प्रतिरोधी हो जाती है. इससे टीबी के इलाज के लिए दी जाने वाली प्रथम पंक्ति की दवाइयों का असर रोगी पर होना बंद हो जाता है जिससे मरीज की समस्याएँ बढ़ जाती हैं. ससमय इसका सटीक इलाज नहीं किये जाने पर मरीज की मृत्यु भी हो सकती है.

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