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प्यार और अमन का प्रतीक ईद

-सरफराज अहमद सिद्दीकी, एडवोकेट व डेलीगेट, दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी

नईदिल्ली-

त्योहार ईद रमजान का चांद डूबने और ईद का चांद नजर आने पर उसके अगले दिन चांद की पहली तारीख को मनाई जाती है। ईद उल फितर पैगम्बर ने सन 624 ईस्वी में जंग ए बदर के बाद मनाया था। यह चांद ईद का पैगाम लेकर आता है। इस चांद रात को अल्फा कहा जाता है। उपवास की समाप्ति की खुशी के अलावा इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते है कि उन्होंने महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी। ईद के दौरान बढिया खाने के अतिरिक्त नए कपड़े भी पहने जाते हैं। परिवार और दोस्तों के बीच तोहफों का आदान-प्रदान होता है। सेवाइयां इस त्योहार की सबसे जरूरी खाद्य पदार्थ है, जिसे सभी बड़ी चाव से खाते हैं। सेवइयों से मुंह मीठा करने के बाद छोटे-ब़डे, अपने पराए दोस्त सभी गले मिलते हैं, तो चारों तरफ मोहब्बत ही मोहब्बत नजर आती है एक पवित्र खुशी से दमकते सभी चेहरे इंसानियत का पैगामा माहौल में बिखेर देते हैं।  ईद के दिन मस्जिदों में सुबह की प्रार्थना से पहले हर मुसलमान का फर्ज है कि वे दान या भिक्षा दें। इस दान को कात उलफितर कहते हैं। रमजान माह की इबादतों और रोजे के बाद जलवा अफरोज हुआ ईद उल फितर का त्योहार खुदा का ईनाम, मुस्कुराहटों का मौसम और रौनक का जश्न है इसलिए ईद का चांद नजर आते ही माहौल में एक गजब का उल्लास छा जाता है। कुरान के अनुसार पैंगंबर इस्लाम ने कहा है कि जब अहले ईमान रमजान के पवित्र महीने के एहतेरामों से फारिंग हो जाते हैं और रोजों नमाजों तथा उसके तमाम कामों को पूरा कर लेते हैं तो अल्लाह एक दिन अपने उक्त इबादत करने वाले बंदों को बख्शीश व इनाम से नवाजता है। इसलिए इस दिन को ईद कहते हैं और इसी बख्शीश व ईनाम के दिन को ईद उल फितर का नाम देते हैं।

रमजान इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना है। इस पूरे माह में रोजे रखे जाते हैं। इस महीने के खत्म होते ही दसवां माह शव्वाल शुरू होता है। इस माह की पहली चांद रात ईद की चांद रात होती है। इस रात का इतंजार वर्ष भर खास वजह से होता है, क्योंकि इस रात को दिखने वाले चांद से ही इस्लाम के बड़े त्योहार ईद उल फितर का ऐलान होता है।

 

इस्लाम का पैगाम

रमजान माह के रोजे को एक फर्ज करार दिया गया है, ताकि इंसानों को भूख प्यास का महत्व पता चले। भौतिक वासनाएं और लालच इंसान के वजूद से जुदा हो जाएं और इंसान कुऱान के अनुसार अपने को ढाल लें। इसलिए रमजान का महीना इंसान का अशरफ और आला बनाने का मौसम है। अगर कोई सिर्फ अल्लाह की ही इबादत करे और उसके बंदों से मोहब्बत करने व उनकी मदद करने से हाथ खींचे, तो ऐसी इबादत को इस्लाम ने खारिज करिया है। असल में इस्लाम का पैगाम है-अगर अल्लाह की सच्चा इबादत करनी है तो उसके सभी बंदों से प्यार करो और हमेशा सबके मददगार बनो। यह इबादत ही सही इबादत है। यहीं नहीं, ईद की असल खुशी भी इसी में है।

इतिहास

ईद की सबसे पहले अल्लाह के आखिरी नबी हजरत मोहम्मद ने अपनी जान न्यौछावर करने वाले साथियों हन्नान के अनुसार हिजात के दूसरे साल जब अल्लाह के रसूल मोहम्मद बद्र की लड़ाई में विजय प्राप्त करने के बाद महीना तशरीफ लाए, तो उसके आठ दिन बाद ईद मनाई गई थी, क्योंकि रमजान के रोजे उसी साल मुसलमानों पर फर्ज किए गए थे।

ईद का उद्देश्य

दुनिभा भर के मुस्लिम इस त्योहार को मिश्रित अनुभव दिल में लेकर देखते हैं उनका ह्दय पूरी आशा, सच्चाई का वादा, अल्लाह की दी हुई खुशी, अल्लाह के दूरद्वारा दिए गए आशीर्वाद से भरा रहता है। जो पूरे नियम से पूरे महीने उपवास करते हैं, उनका उपवास सच्चाई, नियमतता और खुदा के रहम के लिए होता है। वे पूरे महीने हर रात प्रार्थना करते हैं। जो इन नियमों का पालन करके उपवास करते हैं, उनका मानना है कि खुदा उन्हें अपना रहम प्रदान करते हैं और पिछले साल के सारे पाप धुल जाते हैं।

बड़ा पर्व है ईद

ईद के लोगों को तहर की खुशी होती है। एक तो रुहानी या आध्यात्मिक होती है, क्योंकि सभी पूरा महीना रोजा करते हैं और इबादत करते हैं। दूसरी त्योहार की खुशी होती है जिसे लोग दोस्तो, रिश्तेदारों के साथ मिलकर मनाते हैं। इसे हम भौतिक खुशी कह सकते हैं। दोनों तरह की खुशियां मिलकर यह एक बड़ा पर्व बन जाता है। हजारों लोग मक्का शरीफ में इकट्ठा होते थे। वहां मेले का माहौल रहता था। लेकिन उसके अलावा कोई बड़ा त्योहार नहीं था। इस्लाम के आने के बाद से ही तीस रोजे फर्ज हुए। इससे यह बहुत बड़ा त्योहार बन गया।

ईद की खुशी  के मायने-

ईद की खुशी का एक कारण यह है कि मुसलमान अपनी हैसियत के अऩुसार जकात, फित्रा या खैरात देकर उन गरीब मुसलमानों को भी ईद की खुशी में शामिल करता है, जो बेहद गरीब हैं। ऐसे में गरीब लोग भी ईद पर खुशी मना लेते हैं और खुद को ईद की नमाज में बड़े लोगों केसाथ खड़ा पाता है। हालांकि किसी भी नमाज में छोटे, बड़े, अमीर, गरीब का फर्क नहीं होता,  लेकिन ईद की खुशी अलग मायने रखती है। ईद की नमाज उस खुदा के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना है, जिसकी बदौलत उसने उसकी आज्ञा का पालन किया, मुझे याद किया और रोके रखा।

इसलिए है ईद का महत्व

ईद और ईद के महीने का इसलिए भी महत्व है, क्योंकि इसी महीने कुरान अवतरित हुआ था जो लोग साल भर तक दुश्मनी रखते हैं, वे भी अपनी रंजिश भूलकर ईद पर गले मिल लेते हैं। इसलिए इसे प्यार और अमन का त्योहार माना गया है। दरअसल, ईद का संदेश वही है जो इस्लाम का है। इस्लाम कहता है कि इंसानों के मार्गदर्शन का हक और इंसान के मालिक होने का हक केवल उसे हासिल है जिसने उसे पैदा किया है, जो सारे संसार का रब है। खुदा ही हर गलती से खाली और कमी से पाक है। खुदा में व्यक्तित्व हित नहीं है, इसलिए उसका मार्गदर्शन हर कौन, देश और व्यक्ति के लिए समान रूप से हितकारी है। उसके मार्गदर्शन से ही जन्नत की प्राप्ति संभव है।

इंद्रियों पर जीत का प्रतीक है ईद

ईद से पहले रमजान का महीना होता है। इस महीने में खुदा की तरफ से रहमतों के द्वार खोल दिए जाते हैं। दो तरफ के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और जन्नत के द्वार खोल दिए जाते हैं। क्योंकि इस महीने में बुरे आचरण वाला मुसलमान भी खुदा से डरने लगता है और बुराई का रास्ता छोड़ मस्जिद की राह पकड़ लेता है। यानी जो मसुलमान कभी-कभी नमाज पढ़ते हैं, वे भी मस्जिद जाने लगते हैं। रोजे इंद्रियों पर जीत का प्रतीक है। तमाम जटिलताओं और दुश्वारियों के बावजूद मुसलमान रोजे रखता है और ईद का इंतजार करता है। यह इतजार ठीक उसी तरह होता है जैसे कोई छात्र सालभर की पढ़ाई के बाद अपने परीक्षा परिणाम का इंतजार करता है। जब उसे पता चलता है कि वह पास हो गया है तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता। ठीक इसी तरह मुसलमान 30 रोजे रखने के बाद ईद का इंतजार करता है। रोजे रखकर वह इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर चुका होता है और इस खुशी में वह ईद का मनाता है।

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