
विश्व व्यवस्थाओं का संचालन भावनाओं से नहीं होता। क्योंकि राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय हित और राष्ट्र की महत्वाकांक्षाएँ राष्ट्रों-राष्ट्रों के मध्य और राष्ट्र की जनता के मध्य संबंधों को निर्धारित करते हैं। आज हम जिस युग में रह रहे हैं वहां राष्ट्रों की सर्वाधिकार्रवादी महत्वाकांक्षाओं ने तनाव, टकराव, हिंसा, आतंक, युद्ध की जीवंत स्थितियों को निर्मित किया है। राष्ट्रों को न तो दूसरे राष्ट्रों की संप्रभुता का सम्मान है और ना ही मानवता के संरक्षण और सम्मान की चिंता। कोरोना महामारी इन प्रतिस्पर्धाओं और एकाधिकारवादी बनने की महत्वाकांक्षाओं की ही परिणीति है। कोरोना काल में आज विश्व राजनीति में जिन तीन राष्ट्रों की चर्चा प्रधान है। उनमें चीन, अमेरिका और भारत है। चीन इसलिए कि वुहान से ही कोरोना संक्रमण पूरी दुनिया में फैला, अमेरिका विश्व में कोरोना से सर्वाधिक प्रभावित हुआ देश है और भारत इसलिए कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत सर्वाधिक लोकप्रिय एवं सन्तुलित, शांत और संपूर्ण मानवता की चिंता करने वाले राष्ट्र के रूप में उभरकर सामने आया है। सच्चा नेतृत्व संस्थागत सुधारों को प्रेरित और प्रोत्साहित करता है। परन्तु परिवर्तनकारी नेतृत्व तात्कालिक परिस्थितियों की नकारात्मकता से न सिर्फ जूझता है अपितु देश को पहले से और अधिक मजबूत बनाने के लिए योजनागत ढांचा तैयार करता है। कोरोना संकट काल में यह प्रमाणित करना कि आज भारत में ऐसा नेतृत्व है जो न सिर्फ प्रतिकूलता से निपट रहा है, अपितु साथ ही साथ भविष्य के लिए एक दृष्टि प्रस्तुत कर रहा है।
आज कोरोना संक्रमण काल में चीन, अमेरिका और भारत की योजनाओं और उनके कोरोनोत्तर विश्व की रूपरेखा का विश्लेषण किया जाना आवश्यक है तभी विश्व का रूप समझ सकेंगे। भविष्य में विश्व के स्वरूप चीन, अमेरिका और भारत की मूलभूत प्रवृृत्तियों के अनुुरूप विकसित होता दृष्टिगोचर हो रहा है। स्वरूप मूलतः भारत, चीन और अमेरिका की सोच और अंतरराष्ट्रीय दृष्टि में मूलभूत एवं मौलिक अंतर है। इस दृष्टि से विचार करें तो चीन के चरित्र की एकाधिकारवादी, विस्तारवादी और पूर्णतः शंकास्पद और विरोधाभाषी राष्ट्र के रूप में प्रमाणित हुआ है। अमेरिका का चरित्र पूँजीवादी, व्यापार प्रधान, प्रतिस्पर्धी और सर्वाधिकारवादी राष्ट्र के रूप में स्पष्ट हुआ है। भारत अपने चरित्र और व्यवहार में “उदारचरितानांतु वसुधैव कुटुम्बकम्” के विचार को चरितार्थ करते हुए एक विश्वसनीय और अनुकरणीय राष्ट्र के रूप में उभरा है। विश्व की कोई भी व्यवस्था भारत को साथ लेकर ही चलेगी। आज की स्थिति में भारत की उपेक्षा करना दुनिया में किसी व्यवस्था और राष्ट्र को संभव नहीं होगा।
आज भारत, चीन और अमेरिका के संबंधों को पूर्णतः नई दृष्टि से समीक्षा करने की आवश्यकता है। समसामयिक वैश्विक परिस्थितियों में जो बदलाव आ रहे हैं, उसमें भारत की अहमियत दुनिया भर में बढ़ रही है। भारत और चीन के मध्य चीन की दृष्टि में एशिया के प्रतिनिधित्वकर्ता, नेतृत्वकर्ता के विषय को लेकर जो मनोवैज्ञानिक प्रतिद्वंद्विता प्रतिस्थापित थी आज वह धूमिल होती नजर आ रही है क्योंकि भारत आज एशिया का ही नहीं अपितु विश्व नेतृत्वकर्ता के रूप में उभर रहा है। इतना ही नहीं चीन की ओर उन्मुख देश भी आज भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं। यद्यपि भारत और चीन एक पुरानी संस्कृति और सभ्यता के देश है और परस्पर संबंधों में उतार-चढ़ाव, खटास–मिठास आती रही है। परंतु वर्तमान में चीन की एकाधिकारवादी, विस्तारवादी और रहस्यमयी कूटनीतिक मनोवृत्ति अधिक ही नकारात्मकता हो गई है। यह तत्कालीन घटनाओं में प्रमाणित हुआ है। फलतः चीन के विरुद्द विश्व में वातावरण बना हुआ है। अमेरिका और यूरोपीय देश चीन से नाराज है। वे मानते हैं कि वर्तमान संकट के लिए चीन ही दोषी है। इसी प्रकार अमेरिका और भारत के संबंध अब तक के इतिहास में सबसे उत्कृष्ट स्तर पर है। आर्थिक संबंध बहुत मजबूत रहे हैंं। परंतु बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था में यदि अमेरिका का चीन के साथ आर्थिक संबंध खराब होते हैंं तो भारत का संबंध भी अछूता नहीं रहेगा। आज जब विश्व में कोरोना महामारी के लिए चीन संदेह के घेरे में है, ऐसे समय में दो रास्ते हैं एक तो विश्व के देश स्वयं अपने को इन संपूर्ण घटनाक्रमों से पृथक करने अथवा सक्रिय भूमिका का निर्वहन करते हुए दोषी राष्ट्र के विरुद्ध सभी राष्ट्र साथ मिलकर कार्य करें। इन परिस्थितियों में भारत को चीन की तरह आत्मनिर्भर बनने की दिशा में आगे बढ़ना होगा।यद्यपि यह इतना आसान नहीं है।
प्रस्तुत आलेख में समसामयिक अंतरराष्ट्रीय बाध्यताओं की समुचित समीक्षा की गई है। भारत-चीन-अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों के साथ-साथ सामूहिक रूप से विश्व स्तर पर इन राष्ट्रों के संबंधों पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण किए जाने का विनम्र प्रयास किया है। आलेख में भारत-चीन के मध्य आयात-निर्यात की वस्तुस्थिति का चित्रण किया गया है। आलेख भारत, चीन, अमेरिका के मध्य व्यापार तथा आयात और निर्यात की स्थिति के विश्लेषण पर आधारित है। लेख में समीक्षा के मुख्य बिंदुओं में, भारत में चीनी उत्पादों का आयात; चीन से भारत में प्रभावित होने वाले क्षेत्र; भारत और चीन के बाजार की स्थिति; कोरोना का भारत के आयात पर असर; भारत को चीन से व्यापार में घाटा; चीन को भारत से व्यापार में फ़ायदा; चीन का विकल्प ढूंढ रहे भारत में मोदी सरकार ने नई FDI नीति; कोरोना और अमेरिका-चीन व्यापार; अमेरिकी 8-सूत्रीय योजना, चीन और भारत विषयों के साथ ही साथ इस दृष्टि से विवेचना का प्रयास किया है कि क्या कारण है कि आज विश्व के देशों को, विशेषतः अमेरिका को भारत की आवश्यकता क्यों है??
:::: भारत-चीन के मध्य आयात-निर्यात ::::
भारत और चीन के बाजार की वस्तुस्थिति को विश्लेषित करते हुए दोनों देशों के मध्य आयात-निर्यात की विवेचना करें तो स्पष्ट होता है कि व्यापारिक असंतुलन ज्यादा है। अधिकारिक आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2015-16 में भारत का चीन को निर्यात 7.56 अरब डॉलर और भारत का चीन से आयात 52.26 अरब डॉलर रहा अर्थात् भारत का व्यापार घाटा 44.7 अरब डॉलर का था। वर्ष 2014-15 में दोनों देशों के बीच व्यापार घाटा 48.48 अरब डॉलर पर पहुंच गया था। वर्तमान में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय कारोबार लगभग 65.16 अरब डॉलर का है। भारत में चीन के उत्पाद भारत में अधिक पसंद किये जाते हैं क्योंकि चीनी उत्पाद सस्ते दामों पर उपलब्ध होते हैं। जो भारतीय जनमानस के लिए उपयोगी एवं लाभकारी होते हैंं। चीन उत्पाद, कम उत्पादन लागत के कारण सस्ते होते हैं और इसी कारण से चीनी सामान भारत सहित पूरी दुनिया के बाजार में छाए हुए हैं। भारत में बने उत्पादों की लागत अधिक होने के कारण भारत, चीन के बाजारों में अपनी पकड़ नहीं बना पा रहा है। वित्त वर्ष 2015-16 में भारत का चीन को निर्यात $2,390 मिलियन था जो कि भारत के कुल निर्यात का केवल 3.59% था। दूसरी तरफ चीन की तरफ से भारत को निर्यात $14,704 मिलियन था, जो कि भारत के कुल आयात का 15% रहा। स्पष्ट होता है कि व्यापारिक असंतुलन ज्यादा है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2015-16 में भारत का चीन को निर्यात 7.56 अरब डॉलर और भारत का चीन से आयात 52.26 अरब डॉलर रहा अर्थात् भारत का व्यापार घाटा 44.7 अरब डॉलर का था। वर्ष 2014-15 में दोनों देशों के बीच व्यापार घाटा 48.48 अरब डॉलर पर पहुंच गया था। वर्तमान में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय कारोबार लगभग 65.16 अरब डॉलर का है। भारत में चीन के उत्पाद भारत में अधिक पसंद किये जाते हैं क्योंकि चीनी उत्पाद सस्ते दामों पर उपलब्ध होते हैं। जो भारतीय जनमानस के लिए उपयोगी एवं लाभकारी होते हैं। चीन उत्पाद, कम उत्पादन लागत के कारण सस्ते होते हैं और इसी कारण से चीनी सामान भारत सहित पूरी दुनिया के बाजार में छाए हुए हैं। भारत में बने उत्पादों की लागत अधिक होने के कारण भारत, चीन के बाजारों में अपनी पकड़ नहीं बना पा रहा है । वित्त वर्ष 2015-16 में भारत का चीन को निर्यात $2,390 मिलियन था जो कि भारत के कुल निर्यात का केवल 3.59% था। दूसरी तरफ चीन की तरफ से भारत को निर्यात $14,704 मिलियन था, जो कि भारत के कुल आयात का 15% रहा।
भारत-चीन के मध्य आयात-निर्यात को देखें तो भारत चीन को जितना सामान बेचता है यानी कि निर्यात करता है उसका लगभग चार गुना अधिक माल आयात करता है, यानी खरीदता है। भारत का व्यापार घटता बढ़ता जा रहा है। 2019 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 56.77 अरब डॉलर था, जबकि 2018 में भारत का यह घाटा 58.04 अरब डॉलर था। वर्ष 2019 के अगर आंकड़े देखें तो चीन-भारत का द्विपक्षीय व्यापार पिछले साल 639.52 अरब युआन (करीब 92.68 अरब डॉलर) का रहा था। जो कि वार्षिक आधार पर 1.6 प्रतिशत अधिक है। वहीं दूसरी ओर चीन का भारत को निर्यात पिछले भारत और चीन के बाजार की स्तिथि ::::
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2015-16 में भारत का चीन को निर्यात 7.56 अरब डॉलर और भारत का चीन से आयात घटकर 123.89 अरब युआन रहा। भारत का व्यापार घाटा 2019 में 391.74 अरब युआन रहा। 2018 में द्विपक्षीय व्यापार 95.7 अरब डॉलर था। 2019 में इसके 100 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद थी, यह 3 अरब डॉलर कम होकर 92.68 अरब डॉलर रहा। साल-2019 में चीन से भारत को निर्यात 74.72 अरब डॉलर रहा। 2018 में चीन ने भारत को 76.87 अरब डॉलर का निर्यात किया था। इसी दौरान भारत का चीन को निर्यात घटकर 17.95 अरब डॉलर के बराबर रहा। यह इससे पिछले वर्ष 18.83 अरब डॉलर था। साल 2019 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 56.77 अरब डॉलर रहा। जबकि यही घाटा 2018 में 58.04 अरब डॉलर था।
::::भारत में चीनी उत्पादों का आयात ::::
भारत-चीन के मध्य व्यापार असंतुलन को देखते हुए चीन के साथ निर्भरता को कम करने और भारत में ही निर्मित वस्तुओं के उपयोग न करने के वैचारिक अभियान समय-समय पर चलते रहते हैंं। परन्तु यदि वस्तुस्थिति पर विचार किया जाए तो क्या चीनी उत्पाद का आयात भारत में बंद हो जाने की स्थिति ही समाधान है? इसका विश्लेषण करते हुए कुछ बिंदुओं पर समीक्षा किया जाना जरूरी है :-
(1) भारतीय अपने दैनिक जीवन में जिन वस्तुओं का प्रयोग करतेहैं, उसमें से 80 फीसदी सामान चीन से आयात होता है अथवा भारतीय कंपनियां इनको बेचती हैं। यदि भारत ने चीनी उत्पादों के आयात को प्रतिबन्धित किया तो एक आम भारतीय के जीवन में काफी मुश्किलें आ सकती हैं। ऐसे उत्पादों में मोबाइल फोन, लैपटॉप, डेस्कटॉप,स्टेशनरी का सामान, बैटरी, बच्चों के खिलौने, फुटपाथ पर बिकने वाला सामान, गुब्बारे, चाकू और ब्लेड आदि आते हैं।
(2) दिवाली के समय भारतीय बाजारों में चीनी उत्पादों की अधिकता रहती है। चीनी उत्पादों को बहिष्कृत करने के अभियान चले हैं। हरियाणा के रेवाड़ी जिले के दुकानदारों ने चीन के उत्पादों को बेचने से मना कर दिया है (इससे चीन को करीब 300 करोड़ रुपए का नुकसान होने का अनुमान लगया गया)। परंतु क्या यह व्यापक और सामूहिक स्तर पर बिना किसी विकल्प के चीनी वस्तुओं का आयात बंद किया जा सकता है?
(3) क्या भारत-पाकिस्तान की तरह चीन से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा समाप्त कर आयात होने वाले चीनी सामान पर 200 फीसदी की ड्यूटी लगा सकता है? विश्व व्यापार संगठन के प्रावधानों के अनुसार कोई भी देश बिना किसी कारण के दूसरे देश से अपने यहां आयात या फिर निर्यात होने वाले उत्पादों पर पूरी तरह से रोक नहीं लगा सकते हैं। इसके साथ ही भारत से चीन को निर्यात होने वाले सामान की मात्रा काफी कम है। अगर सरकार चीनी उत्पादों पर ड्यूटी को बढ़ाने का फैसला भी लेती है, तो इसका असर सबसे ज्यादा आम भारतीयों पर ही पड़ेगा??
(4) भारत, चीन से खिलौने, बिजली उत्पाद, कार और मोटरसाइकिल के कलपुर्जे, दूध उत्पाद, उर्वरक, कम्प्यूटर, एंटीबायोटिक्स दवाई, दूरसंचार और ऊर्जा क्षेत्र से जुड़े विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादों का आयात करता है और इसी प्रकार भारत चीन को कृषि उत्पाद, सूती वस्त्र, हस्तशिल्प उत्पाद, कच्चा लेड, लौह अयस्क, स्टील, कॉपर, टेलीकॉम सामाग्री तथा अन्य पूंजीगत वस्तुएं इत्यादि का निर्यात करता है। ऐसे में भारत आयात बंद करेगा तो चीन को भारत से निर्यात के विकल्प खोजने होंगे?
(5) जब कभी चीन-भारत तनाव की स्थित होती है तब चीन ‘सिन्धु जल समझौते’ को तोड़ने की बात करता है। तो चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी की एक सहायक नदी को बंद करने की धमकी दी थी। चीन के इस कदम से भारत के असम, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में पानी की आपूर्ति में कमी आ सकती है जिससे इन राज्यों में पानी की कमी होने से आम जन-जीवन, कृषि और उद्योग बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं।
(6) चीन से प्रभावित होने वाले भारतीय क्षेत्रों के अंतर्गत बच्चों के चीन खिलोने हैं। भारत में चीन के खिलौनों की सर्वाधिक मांग है। चीनी खिलौनों की लागत इतनी कम होती है कि कोई भी भारतीय कंपनी चीन की प्रतियोगिता का मुकाबला करने में असमर्थ है। पिछले वर्ष भारतीय खिलौनों के केवल 20% बाजार पर भारतीय कंपनियों का अधिकार था बाकी के 80% बाजार पर चीन और इटली का कब्ज़ा था। भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंडल-एसोचैम-के एक अध्ययन के अनुसार पिछले 5 साल में 40% भारतीय खिलौना बनाने वाली कम्पनियां बंद हो चुकी है और 20% बंद होने की कगार पर हैं। भारत में ऐसे 6 स्थान जहाँ भारतीयों को जाने की अनुमति नहीं है! चीन ने भारत के इलेक्ट्रॉनिक उद्योग की भी कमर तोड़ दी है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण दिवाली के मौके पर घर-घर में इस्तेमाल होने वाली “बिजली की लड़ी” है। इसके अलावा बिजली का लगभग हर सामान भारत के बाजारों में भरा पड़ा है।
:::कोरोना का भारत के आयात पर असर:::
चीन में कोरोना वायरस संक्रमण का भारत के आयात पर काफी असर पड़ा है। सबसे ज्यादा असर कंस्ट्रक्शन, ऑटो, केमिकल्स और फार्मा सेक्टर पर पड़ता दिख रहा है। अगर चीन में हालात जल्द सामान्य नहीं हुए तो इन उद्योगों को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। भारत में इलेक्ट्रिकल मशीनरी, मैकेनिकल अपलायंसेज, ऑर्गेनिक केमिकल्स, प्लास्टिक और सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट का चीन से बड़े पैमाने पर आयात होता है। देश के कुल आयात में इन चीजों की 28 फीसदी हिस्सेदारी है। विश्लेषकों का कहना है कि अगर चीन में स्थिति नहीं सुधरती है तो इन चीजों की सप्लाई पर असर पड़ेगा। निर्माण, यातायात, परिवहन, रसायन और मशीन का उत्पादन प्रभावित हो सकता है। हालांकि देश के व्यापार पर इसका ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। भारत के निर्यात पर भी ज्यादा असर पड़ने की संभावना नहीं है। इसकी वजह यह है कि भारत के कुल निर्यात में चीन की हिस्सेदारी महज 5 फीसदी है। हालांकि, ऑर्गेनिक केमिकल्स और कॉटन के निर्यात पर असर पड़ सकता है। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में ऑर्गेनिक केमिकल्स की उपलब्धता पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा। आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत करीब 40 फीसदी ऑर्गेनिक केमिकल्स चीन से आयात करता है। अमेरिका और सिंगापुर जैसे इसके दूसरे स्रोत भी कम या ज्यादा चीन पर निर्भर करते हैं। भारत करीब 40 फीसदी इलेक्ट्रिक मशीनरी का आयात भी चीन से करता है। अगर इसमें हांगकांग को शामिल कर दे तो यह हिस्सेदारी 57 फीसदी तक पहुंच जाती है।
::::भारत को चीन से व्यापार में घाटा:::
भारत और चीन के मध्य व्यापार असंतुलन की स्थिति है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भारत को अगर किसी देश के साथ सबसे ज़्यादा कारोबारी घाटा हो रहा है तो वह चीन ही है। यानी भारत, चीन से सामान ज़्यादा खरीद रहा है और उसके मुक़ाबले बेच बहुत कम रहा है। 2018 में भारत को चीन के साथ 57.86 अरब डॉलर का व्यापारिक घाटा हुआ। दोनों देशों के बीच का यह व्यापारिक असंतुलन भारत के लिए गम्भीर समस्या है। भारत चाहता है कि वो इस व्यापारिक घाटे को किसी ना किसी तरह से कम करे। इस संबंध में भारत ने चीन से चर्चा भी की है और कहा है कि भारत अपने कुछ अन्य उत्पादों को चीन के बाज़ार में और अधिक स्थान पाना चाहता है। भारत चीन को निम्नलिखित क्षेत्रों में अपनी सेवाएं दे सकता है, जैसे कि :-(अ) भारत चीन को दवाइयां बेच सकता है (ब) आईटी सेवाएं दे सकता है (स) इंजीनियरिंग की सेवाएं दे सकता है (द) इसके अलावा चावल, चीनी, कई तरह के फल और सब्ज़ियां, मांस उत्पाद, सूती धागा और कपड़ा भी बेच सकता है। व्यापार असंतुलन की इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए जिनपिंग की 2014 में भारत यात्रा के दौरान प्रयास हुए थे। दोनों देशों के बीच कारोबारी सहयोग को बढ़ाने के लिए पांच साल का विकास कार्यक्रम बनाया गया था। उस समय यह बात भी हुई थी कि कैसे भारत के सामान को चीन के बाज़ार में और ज़्यादा पहुंच बढ़ाया जाए? फिर 2018 में तय हुआ कि अब कुछ और चीज़ें भारत चीन को बेचेगा। इसमें ग़ैर बासमती चावल, फ़िश मील यानी मछली का खाना और मछली के तेल जैसी कुछ चीज़ें शामिल हैं। इस वर्ष यह तय हुआ है कि भारत चीन को मिर्च और तंबाकू के पत्ते भी निर्यात करेगा। चीन के वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार 2017 के आखिर तक चीन ने भारत में 4.747 अरब डॉलर का निवेश किया। चीन भारत के स्टार्ट-अप्स में काफ़ी निवेश कर रहा है। हालांकि, भारत का चीन में निवेश तुलनात्मक रूप से कम है। सितंबर 2017 के आखिर तक भारत ने चीन में 851.91 मिलियन डॉलर का निवेश किया है। अब दोनों देश यह कोशिश कर रहे हैं कि वो आपसी निवेश को बढ़ाए।
::::चीन को भारत से व्यापार में फ़ायदा::::
भारत और चीन के बीच कारोबार में किस तरह बढ़ोतरी हुई है, इसका अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि इस सदी की शुरुआत यानी साल 2000 में दोनों देशों के बीच का कारोबार केवल तीन अरब डॉलर का था जो 2008 में बढ़कर 51.8 अरब डॉलर का हो गया। इस तरह सामान के मामले में चीन अमरीका की जगह लेकर भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया। वर्ष 2017-18 में भारत ने 507 अरब डॉलर का आयात किया था। इसमें चीन की हिस्सेदरी 14 फीसदी यानी 73 अरब डॉलर थी। चीन में कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते फैक्ट्रियों में 17 फरवरी 2020 के बाद भी उत्पादन शुरू होने की उम्मीद नहीं है। वहां कोरोना वायरस पर पूरी तरह नियंत्रण के बाद ही हालात सामान्य होने की उम्मीद है। 2018 में दोनों देशों के बीच कारोबारी रिश्ते नई ऊंचाइयों पर पहुंच गए और दोनों के बीच 95.54 अरब डॉलर का व्यापार हुआ। चीन में भारत के राजदूत ने जून में दावा किया था कि इस साल यानी 2019 में भारत-चीन का कारोबार 100 बिलियन डॉलर पार कर जाएगा। कारोबार बढ़ रहा है, इसका यह मतलब नहीं है कि फ़ायदा दोनों को बराबर हो रहा है। भारतीय विदेश मंत्रालय के वेबसाइट के मुताबिक, 2018 में भारत-चीन के बीच 95.54 अरब डॉलर का कारोबार हुआ, लेकिन इसमें भारत ने जो सामान निर्यात किया उसकी क़ीमत 18.84 अरब डॉलर थी। इसका मतलब है कि चीन ने भारत से कम सामान खरीदा और उसे पांच गुना ज़्यादा सामान बेचा। ऐसे में इस कारोबार में चीन को फ़ायदा हुआ।
:::: चीन का विकल्प ढूंंढ रहा है भारत :::
प्रधानमंत्री मोदी ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के लिए 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज की घोषणा की है। इसका व्यापक ढांचा भी प्रस्तुत किया है। यह पैकेज कोरोना वायरस से जूझ रही भारतीय अर्थव्यवस्था और भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए दिया है। सरकार को उम्मीद है कि 20 लाख करोड़ रुपए के इस आर्थिक पैकेज की घोषणा से स्थानीय कारोबारों को प्रोत्साहन मिलेगा। साथ ही इस फैसले से भारत चीन की तरह आत्मनिर्भर बनने की दिशा में आगे बढेगा। परन्तु यह इतना आसान नहीं है? भारत चीन को जितना सामान बेचता है यानी कि निर्यात करता है उसका लगभग चार गुना अधिक माल आयात करता है, खरीदता है। ऐसे में भारत के सामने ना सिर्फ इस गैप को भरने की चुनौती होगी। भारत सरकार द्वारा चीन से आयातित एक हजार से भी अधिक वस्तुओं का विकल्प खोजा जा रहा है। क्योंकि कोरोना वायरस के कारण चीन में कई फैक्ट्रियां बंद पड़ी हैं और उन सामानों का आयात नहीं हो पा रहा है। अतः भारत ने अब इन वस्तुओं के लिए चीन का विकल्प ढूंढना शुरू कर दिया है। केंद्र सरकार टेक्सटाइल फैब्रिक, रेफ्रीजिरेटर और सूटकेस से लेकर एमोक्सिसिलिन एरिथ्रोमाइसिन और मेट्रोनिडाजोल जैसे एंटीबायोटिक्स, विटामिन और कीटनाशक सहित 1050 सामानों के लिए चीन का ऑप्शन ढूंढ रही है। सरकार पूरी दुनिया से इन सामानों की आपूर्ति करने पर ध्यान दे रही है। भारत चीन से बड़ी मात्रा में आयात करता है, जो कोरोना वायरस की वजह से प्रभावित हुआ है।
ारत में चीन से और भी बहुत सारे प्रोडक्ट्स का आयात किया जाता है, जिनमें स्वचालित डेटा, प्रोसेसिंग मशीन, डायोड और सेमीकंडक्टर डिवाइस, ऑटो पार्ट्स और कई स्टील और एल्यूमीनियम आइटम और मोबाइल फोन शामिल हैं। इस मामले में वाणिज्य विभाग दुनिया भर में इन सामानों के संभावित आपूर्तिकर्ताओं की पहचान करने के लिए दुनिया भर में भारतीय मिशनों को पत्र भेज दिये हैं। संभावित बाजारों, जो चीन की जगह ले सकते हैं, की जानकारी अन्य मंत्रालयों और विदेशी मिशन के साथ साझा की गयी है। भारत को अपनी इस कोशिश में कुछ देशों से सकारात्मक जवाब मिला है। एंटीबायोटिक्स की आपूर्ति के लिए इटली और स्विटजरलैंड की पहचान की गयी है। ये दोनों देश चीन के साथ प्रमुख निर्यातकों में से हैं। वहीं इलेक्ट्रॉनिक्स, मोबाइल फोन और इनके इनपुट के लिए विकल्प ढूंढना बहुत मुश्किल हो रहा है, क्योंकि इस सेक्टर में चीन का दबदबा और हिस्सेदारी बहुत अधिक है। इसके अलावा बात यह भी है कि केवल भारत ही नहीं बल्कि और भी देश इसी तरह की समस्या का हल तलाशने में लगे हुए होंगे, जिसकी स्थिति आसान नहीं है। वाणिज्य विभाग की तरफ से की गयी विस्तृत चर्चा के बाद एक शुरुआती विश्लेषण से पता चला है कि फार्मा और रसायन, स्मार्टफोन, इलेक्ट्रॉनिक्स और सफेद वस्तुओं और प्लास्टिक के मामले में स्थिति विशेष रूप से गंभीर है। इनके लिए भारत आयात के लिए चीन पर निर्भर करता है। वहीं कपड़ा यार्न, कुछ कार्बनिक रसायन और रत्न और आभूषण जैसे अन्य क्षेत्रों में निर्यात पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, क्योंकि चीन और हांगकांग इन उत्पादों के प्रमुख खरीदार हैं।
:::: मोदी सरकार की नई FDI नीति ::::
परिवर्तन के इस क्रम में मोदी सरकार ने FDI नीति में भी परिवर्तन कर दिया है। इसका संकेत प्रधानमंत्री मोदी जी ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश-FDI-के संबंध में नीति परिवर्तित करते निर्दिष्ट किया कि भारत की भौगोलिक सीमा के साथ लगे देशों से प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश से पहले केंद्र सरकार की मंजूरी लेनी होगी। सरकार की अधिसूचना यद्यपि किसी देश का नाम नहीं लिया गया है परन्तु यह साफ है कि सरकार ने चीन और पाकिस्तान को ध्यान में रखकर यह निर्णय लिया है। चाहे कुछ अर्थ विशेषज्ञों ने देश की कथित खराब अर्थव्यवस्था के चलते सरकार के इस फैसले पर किंतु परन्तु किया है लेकिन इसमें संदेह नहीं है कि सरकार ने एक मजबूत व दूरदृष्टिपूर्ण कदम उठा कर देश की आर्थिकता में चीन जैसे देश के बढ़ने वाले हस्तक्षेप की आशंका को निर्मूल करने का प्रयास किया है।
:::: कोरोना और अमेरिका-चीन व्यापार :::
चीन अमेरिका में परस्पर व्यापार युध्द पहले से ही है उलझा हुआ है। इसका प्रभाव संपूर्ण विश्व पर पड़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रमुख बुल्गारिया की अर्थशास्त्री क्रिस्टालिना जार्वीवा के अनुसार 2019-20 वित्तीय वर्ष में दुनिया के 90% हिस्से में आर्थिक मंदी दिखेगी जिसका मुख्य कारण अमेरिका चीन में चल रही कारोबारी युद्ध है। इसका असर भारत की अर्थव्यवस्था पर भी बुरा पड़ेगा, जो अभी से दिखने लगा है।
2020 के आरंभ में अमेरिका और चीन ने जब व्यापार समझौते के पहले चरण का समझौता किया तब माना गया कि अब दो वर्ष से चल रहे व्यापार युद्ध का अंत हो गया। परन्तु कोरोना वायरस संकट काल में अमेरिका और चीन के मध्य तनाव दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। चीन के प्रति अमेरिका का रवैया लगातार सख्त होता जा रहा है। अमेरिका चीन से जो सामान ख़रीदता है, उनमें से कई पर अमेरिका ने आयात शुल्क बेतहाशा बढ़ा दिए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के साथ व्यापार समझौते पर फिर बातचीत करने से इनकार कर दिया है। राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि चीन ने हमेशा अमेरिका से बौद्धिक संपदा (आईपी) की चोरी की है। बमरिक ने चीन को कभी रोका नहीं गया परन्तु अब चीन को रोका जाएगा। कोरोना के कारण ट्रंप पर चीन के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव बढ़ रहा है। यह माना जा रहा है कि चीन की निष्क्रियता की वजह से वुहान से दुनियाभर में कोरोना वायरस फैला है। ट्रंप ने कहा कि चीन ने अमेरिका को निराश किया है। क्योंकि अमेरिका ने चीन से बार-बार कहा है कि कोरोना वायरस की उत्पत्ति की जांच के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को वुहान की प्रयोगशाला जाने की इजाजत दी जाए, लेकिन चीन ने इसे नहीं माना। अमेरिकी प्रशासन ने चीन से अरबों डॉलर के अमेरिकी पेंशन निधि निवेश निकालने के लिए कहा है और इसी तरह के अन्य कदमों पर विचार किया जा रहा है।
:::: अमेरिकी 18-सूत्रीय योजना, चीन और भारत :::
कोरोना वायरस के प्रकोप के आरंभ काल से ही अमेरिका कहता आया है कि चीन इस महामारी को रोकने में कामयाब नहीं हुआ है। यदि चीन इस संक्रमण को रोक लेता तो पूरी दुनिया में इतनी तबाही नहीं होती। क्योंकि आज विश्व में कोरोना के कुल 4,801,532 संक्रमित हैंं। कुल 316,660 व्यक्तियों की मौत हुई और कुल 1,858,106 व्यक्ति ठीक हुए। अकेले अमेरिका में कुल 15,14,320 कोरोना संक्रमित हैंं और कुल 90,246 की मृत्यु हुई है। दुनिया के देश इन संक्रमणों और मौतों के लिए चीन को उत्तरदायी ठहराते हैं। इसी कारण दुनिया में चीन को लेकर नाराजगी बढ़ती जा रही है। अमेरिकी सेनेटर थॉम टिलिस (Thom Tillis) ने एक 18-सूत्रीय योजना प्रस्तुत की है, जिसका उद्देश्य क्षेत्रीय सहयोगियों की मदद से चीनी सरकार को COVID-19 पर उसके झूठ, धोखे और जानकारी गुप्त रखने के लिए जिम्मेदार ठहराना है। टिलिस ने अपनी इस योजना में भारत के साथ सैन्य संबंध बढ़ाने पर जोर दिया है। अतः चीन के खिलाफ योजना में अमेरिका भारत का साथ चाहता है। तिलिस का आरोप है कि* चीनी सरकार ने पने ही नागरिकों को डिटेंशन कैंपों में कैद कर रहा है,* अमेरिका की तकनीक और नौकरियां चुरा रहा है *जिससे अमरीकी सहयोगियों की संप्रभुता के लिए खतरा उत्पन्न कर रहा है। अमेरिका की यह योजना COVID -19 के बारे में झूठ बोलने के लिए चीनी सरकार ने विश्व को झूठ बोलकर गुमराह करने के कारण चीन की जवाबदेही तय करेगी। इस योजना के माध्यम से अमेरिकी अर्थव्यवस्था और लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा के साथ ही चीन पर प्रतिबंध भी लगाया जाएगा। चीन कोरोना के नुकसान और खतरे को अच्छी तरह जानता था, लेकिन वह इसे छिपाता रहा। यदि चीन सरकार ने सही समय पर जानकारी मुहैया कराई होती, तो लाखों लोगों को बचाया जा सकता था।
सीनेटर थॉम टिलिस ने जो ’18 प्वाइंट प्लान’ में चीन के विरुद्ध अमेरिका को जो सुझाव मिले हैं उसमें चीन से कंपनियों को अमेरिका से हटाना और चीन के विरुद्ध भारत, ताइवान और वियतनाम के साथ सैनिक साझेदारी करना है। सीनेटर टिलिस ने कहा, “चीन की सरकार ने इस महामारी पर पर्दा डालने की पूरी कोशिश की जिससे यह वैश्विक महामारी बन गया है जिससे कई अमेरिकियों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। कई इलाकों में अमेरिकी नागरिकों को लेबर कैंप में बंद करना पड़ रहा है। चीन द्वारा अमेरिकी तकनीक और नौकरियां चुराई जा रहीं है। जो अमेरिकी संप्रभुता को चुनौती देना है। अतः यह प्रस्ताव अमेरिका और दुनिया के लिए स्वागत अयोग्य आव्हान है। अमेरिका चाहता है कि कोरोना वायरस के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराया जाए। अमेरिकी इकोनॉमी, पब्लिक हेल्थ और देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए चीन पर पाबंदी लगानी चाहिए।
टिलिस के प्लान में शामिल ये सुझाव—
(1) इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी से अपील की जाए कि चीन से 2022 के विंटर ओलंपिक की मेजबानी छीन ले। (2) जापान को उसकी मिलिट्री मजबूत बनाने के लिए प्रेरित किया जाए। जापान और दक्षिण कोरिया को अमेरिका से रक्षा उपकरण खरीदने का प्रस्ताव दिया जाए। (3) चीन में मैन्युफैक्चरिंग कर रही अमेरिकी कंपनियों को वापस लाया जाए। सप्लाई चेन के लिए चीन पर निर्भरता धीरे-धीरे खत्म की जाए। (4) चीन ने अमेरिकी तकनीक की चोरी की है तथा टेक्नोलॉजी में हमारी क्षमताओं को फिर से हासिल करने के लिए अमेरिकी कंपनियों को इन्सेंटिव दिया जाए। चीन से होने वाली हैकिंग को नाकाम करने के लिए साइबर सुरक्षा मजबूत की जाए। (5) ऐसे इंतजाम किए जाए कि अमेरिका की जनता के पैसे को चीन अपना कर्ज चुकाने में इस्तेमाल नहीं कर पाए। (6) चीन की टेक कंपनी हुवावे पर बैन लागू किया जाए। सहयोगी देशों से भी ऐसे ही बैन लगाने के लिए कहा जाए। (7) कोरोना पर चीन के झूठ से जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई की मांग की जाए, साथ ही चीन पर प्रतिबंध लगाए जाएं। (8) योजना में सैन्य साजोसामान के लिए 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर की फंडिंग को तत्काल मंजूर करने की मांग की गई है। (9) क्षेत्रीय सहयोगियों के साथ रिश्तों को मजबूत करने, भारत, ताइवान और वियतनाम के साथ सैन्य उपकरणों की बिक्री को बढ़ाने की चर्चा है। (10) चीन में मौजूद सभी मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों को अमेरिका वापस लाया जाए। साथ ही अमेरिका धीरे-धीरे सामान के मामले में चीन पर निर्भरता कम करे।
—————————-