स्वास्थ्य

शुरुआत में लगता था डर, जिम्मेदारी समझी तो 20 मरीजों को पहुंचा दी अस्पताल

-भोरसार भेलवा की रहने वाली आशा फैसिलिटेटर टीबी को लेकर लोगों को कर रहीं जागरूक
-मरीजों को चिह्नित करने से लेकर अस्पताल में इलाज कराने तक की उठा रहीं जिम्मेदारी

बांका, 16 नवंबर-

तमाम जागरूकता कार्य़क्रम के बावजूद टीबी जैसी बीमारी को लेकर समाज में एक बंधन है, जिसे तोड़ना किसी चुनौती से कम नहीं है। इस चुनौती का सामना आमलोगों से लेकर स्वास्थ्यकर्मियों और फ्रंटलाइन वर्करों तक को करना पड़ता है। यह बंधन घर से ही शुरू हो जाता और समाज के कई हिस्सों में रहता है, लेकिन जिसे अपनी जिम्मेदारी का अहसास रहता है वह किसी भी बंधन को तोड़कर समाज के लिए एक नजीर पेश करता है। कटोरिया प्रखंड की भोरसार भेलवा गांव की आशा फैसिलिटेटर ललिता देवी को भी शुरुआत में टीबी मरीजों को जागरूक करने के काम में कठिनाई का सामना करना पड़ता था। घर से लेकर समाज तक के लोगों से निपटना पड़ता था। एक बार तो उनके मन में भी डर घर कर गई, लेकिन जिम्मेदारी का अहसास हुआ तो वही डर ताकत बन गई और आज 20 टीबी मरीजों का इलाज करवाकर क्षेत्र में नजीर बन गई हैं।
पूरी ईमानदारी और मेहनत से काम कियाः ललिता देवी कहती हैं, मैं 2006 से काम कर रही हूं। बहुत पहले लोग टीबी को लेकर इतने जागरूक नहीं थे। लगता था इनके साथ काम करने के कारण कहीं समाज के लोगों की नाराजगी का तो सामना नहीं करना पड़ेगा। क्या पता मेरे घरवाले भी इसकी चपेट में न आ जाएं। यह सोचकर मन में डर लगता था, लेकिन कटोरिया रेफरल अस्पताल के डॉक्टर और वहां के लैब टेक्नीशियन ने जब मुझे एक बार समझाया तो उसके बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपने काम में मन से लग गई। क्षेत्र के लोगों को जागरूक करने का काम किया। लोग जब जागरूक हो गए तो टीबी मरीजों को चिह्नित कर अस्पताल पहुंचाने के काम में लग गई। पूरी ईमानदारी और मेहनत से काम करने का ही नतीजा है कि अभी तक मैं 20 टीबी मरीजों को चिह्नित कर उनका इलाज भी करवा दिया है। सभी लोग पूरी तरह से ठीक भी हैं। अब समाज की तस्वीर भी बदल गई है। लोगों का नजरिया बदल गया है।
समय के साथ सभी कुछ बदल गयाः कटोरिया रेफरल अस्पताल के लैब टेक्नीशियन सुनील कुमार कहते हैं कि टीबी जैसी बीमारी के प्रति पहले समाज के लोगों में भय जरूर था, लेकिन समय के साथ सभी कुछ बदल गया है। अब तो आमलोग भी टीबी मरीजों को इलाज के लिए अस्पताल लेकर आते हैं। निश्चित तौर पर इसके पीछे स्वास्थ्यकर्मियों और फ्रंटलाइन वर्करों की मेहनत है। आशा फैसिलिटेटर ललिता देवी ने तो कमाल ही कर दिया है। क्षेत्र के लोगों का नजरिया ही बदलकर रख दिया है। लोगों से मेरी यही अपील है कि अगर किसी को लगातार दो हफ्ते तक खांसी हो, बलगम के साथ खून आए, शाम के वक्त लगातार पसीना आए या फिर लगातार बुखार रहे तो सरकारी अस्पताल आ जाएं। यहां पर आपका बिल्कुल ही मुफ्त में इलाज होगा। टीबी अब छुआछूत की बीमारी नहीं रही। इसे जड़ से खत्म करने में समाज के लोग अपनी जिम्मेदारी निभाएं।

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