देशराज्य

आधुनिक भारत के निर्माण में राजीव जी का योगदान अहम

सूचना-तकनीक से देश को किया सशक्त राजीव गांधी ने

— सरफराज अहमद सिद्दीकी, एडवोकेट व डेलीगेट, दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी

 

आज देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी जी का 29 वीं पुण्यतिथि है। आधुनिक भारत के निर्माता राजीव गांधी जी को श्रंद्धाजलि। कुछ लोग ज़मीन पर राज करते हैं और कु्छ लोग दिलों पर। मरहूम राजीव गांधी एक ऐसी शख़्सियत थे, जिन्होंने ज़मीन पर ही नहीं, बल्कि दिलों पर भी हुकूमत की। वे भले ही आज इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन हमारे दिलों में आज भी ज़िंदा हैं। राजीव गांधी ने उन्नीसवीं सदी में इक्कीसवीं सदी के भारत का सपना देखा था।

पारिवारिक पृष्ठभूमि और परिस्थितियों के बीच पायलट से प्रधानमंत्री तक की राजीव गांधी की जीवन-यात्रा, क्षितिज पर एक युवा संभावना के उदय और उसके असमय अवसान की त्रासदी की गाथा है। देश में आर्थिक उदारीकरण तथा सूचना-तकनीक के व्यापक उपयोग का पहला अध्याय उनके नेतृत्व में ही लिखा गया था। शीर्ष पदों पर भ्रष्टाचार की भयावहता के प्रारंभिक रुझानों का सामने आना भी उनके खाते में ही है, जिसके कारण उन्हें भारी जीत के बाद एक बड़ी हार का भी सामना करना पड़ा। राजनीतिक तात्कालिकता से परे अगर राजीव गांधी का मूल्यांकन किया जाये, तो एक ऐसे राजनेता की छवि उभरती है, जिसने नये भारत की प्रस्तावना लिखी थी।
स्वभाव से गंभीर लेकिन आधुनिक सोच और निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता वाले श्री राजीव गांधी देश को दुनिया की उच्च तकनीकों से पूर्ण करना चाहते थे। वे बार-बार कहते थे कि भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखने के साथ ही उनका अन्य बड़ा मकसद इक्कीसवीं सदी के भारत का निर्माण है। अपने इसी सपने को साकार करने के लिए उन्होंने देश में कई क्षेत्रों में नई पहल की, जिनमें संचार क्रांति और कंप्यूटर क्रांति, शिक्षा का प्रसार, 18 साल के युवाओं को मताधिकार, पंचायती राज आदि शामिल हैं। वे देश की कंप्यूटर क्रांति के जनक के रूप में भी जाने जाते हैं।

राजीव गांधी युवाओं के लोकप्रिय नेता थे। उनका भाषण सुनने के लिए लोग घंटों इंतजार किया करते थे। उन्होंने अपने प्रधानमंत्री काल में कई ऐसे महत्वपूर्ण फैसले लिए, जिसका असर देश के विकास में देखने को मिल रहा है। आज हर हाथ में दिखने वाला मोबाइल उन्हीं फैसलों का नतीजा है।
प्रधानमंत्री के रूप में राजीव गांधी अपनी माता इंदिरा गांधी से अधिक व्यावहारिक और उदार थे तथा इसका प्रभाव उनकी पहलों में दृष्टिगोचर होता है।

राजीव गांधी ने पंजाब समस्या के समाधान को प्राथमिकता देते हुए 24 जुलाई, 1985 को अकाली दल के अध्यक्ष संत हरचंद सिंह लोंगोवाल के साथ एक अहम समझौता किया।
राजीव गांधी ने आर्थिक नीतियों को जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी की परंपरागत समाजवादी नीतियों के प्रभाव से मुक्त करते हुए आर्थिक उदारीकरण की शुरूआत की। उन्होंने अमेरिका से भी संबंधों को बेहतर करते हुए आर्थिक और वैज्ञानिक-तकनीकी सहयोग की दिशा में कदम बढ़ाया। लालफीताशाही पर लगाम लगाकर और नीतिगत बदलाव के जरिये उन्होंने निजी क्षेत्र को औद्योगिक और वाणिज्यिक गतिविधियों के विस्तार की अनुमति दी। कालांतर में यही दिशा 1990 के दशक में व्यापक आर्थिक उदारवाद और मुक्त व्यापार का आधार बनी। 1986 में उन्होंने उच्च शिक्षा के आधुनिकीकरण और विस्तार के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा की. ग्रामीण भारत में शिक्षा की बेहतरी के लिए जवाहर नवोदय विद्यालयों की श्रृंखला स्थापित करने का काम शुरू हुआ। सूचना तकनीक और टेलीकॉम के व्यापक प्रसार पर उनके जोर ने देश में सूचना क्रांति का सूत्रपात किया तथा संचार-व्यवस्था गांवों तक पहुंचनी शुरू हुई।
वर्ष 1985 में पंचायती राज अधिनियम के द्वारा राजीव गांधी सरकार ने पंचायतों को महत्वपूर्ण वित्तीय और राजनीतिक अधिकार देकर सत्ता के विकेंद्रीकरण तथा ग्रामीण प्रशासन में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल किया था। यह उनकी सरकार की अन्यतम उपलब्धि थी। वर्ष 1986 में मिजोरम में लालडेंगा के नेतृत्व में दशकों से चल रहे अलगाववादी हिंसक आंदोलन को मिजोरम समझौते के द्वारा खत्म कर राज्य में लोकतांत्रिक व्यवस्था की बहाली राजीव गांधी की बड़ी सफलता मानी जाती है। पूर्वोत्तर में भारतीय राज्य के प्रति भरोसे की बहाली में इस समझौते का उल्लेखनीय योगदान है।
देश में पीढ़ीगत बदलाव के अग्रदूत श्री राजीव गांधी को देश के इतिहास में सबसे बड़ा जनादेश हासिल हुआ था। 31 अक्टूबर1984 को वे कांग्रेस अध्यक्ष और देश के प्रधानमंत्री बने थे। उन्होंने अपनी हर जिम्मेदारी को बखूबी निभाया। आम चुनाव के दौरान महीने भर की लंबी चुनावी मुहिम के दौरान उन्होंने पृथ्वी की परिधि के डेढ़ गुना के बराबर दूरी की यात्रा करते हुए देश के तकरीबन सभी हिस्सों में जाकर 250 से ज्यादा जनसभाएं कीं और लाखों लोगों से रूबरू हुए। उस चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला और पार्टी ने रिकॉर्ड 401 सीटें हासिल कीं।
सात सौ करोड़ भारतीयों के नेता के तौर पर इस तरह की शानदार शुरूआत किसी भी हालत में काबिले-तारीफ मानी जाती है। यह इसलिए भी बेहद खास है, क्योंकि वे उस सियासी खानदान से ताल्लुक रखते थे, जिसकी चार पीढ़ियों ने जंगे-आजादी के दौरान और इसके बाद हिन्दुस्तान की खिदमत की थी। इसके बावजूद श्री राजीव गांधी सियासत में नहीं आना चाहते थे। इसीलिए वे सियासत में देर से आए।
श्री राजीव गांधी का जन्म 20 अगस्त, 1944 को मुंबई में हुआ था। वे सिर्फ तीन साल के थे, जब देश आजाद हुआ और उनके नाना आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। उनके माता-पिता लखनऊ से नई दिल्ली आकर बस गए। उनके पिता फिरोज गांधी सांसद बने, जिन्होंने एक निडर तथा मेहनती सांसद के रूप में ख्याति अर्जित की।

राजीव गांधी ने अपना बचपन अपने नाना के साथ तीन मूर्ति हाउस में बिताया, जहां इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री की परिचारिका के रूप में काम किया। वे कुछ वक़्त के लिए देहरादून के वेल्हम स्कूल गए, लेकिन जल्द ही उन्हें हिमालय की तलहटी में स्थित आवासीय दून स्कूल में भेज दिया गया। वहां उनके कई दोस्त बने, जिनके साथ उनकी ताउम्र दोस्ती बनी रही।
बाद में उनके छोटे भाई संजय गांधी को भी इसी स्कूल में भेजा गया, जहां दोनों साथ रहे। स्कूल से निकलने के बाद श्री राजीव गांधी कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज गए, लेकिन जल्द ही वे वहां से हटकर लंदन के इम्पीरियल कॉलेज चले गए। उन्होंने वहां से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की।
उनके सहपाठियों के मुताबिक उनके पास दर्शन, राजनीति या इतिहास से संबंधित पुस्तकें न होकर विज्ञान एवं इंजीनियरिंग की कई पुस्तकें हुआ करती थीं. हालांकि संगीत में उनकी बहुत दिलचस्पी थी। उन्हें पश्चिमी और हिन्दुस्तानी शास्त्रीय और आधुनिक संगीत पसंद था। उन्हें फोटोग्राफी और रेडियो सुनने का भी खासा शौक था। हवाई उड़ान उनका सबसे बड़ा जुनून था। इंग्लैंड से घर लौटने के बाद उन्होंने दिल्ली फ़्लाइंग क्लब की प्रवेश परीक्षा पास की और व्यावसायिक पायलट का लाइसेंस हासिल किया। इसके बाद वे 1968 में घरेलू राष्ट्रीय जहाज कंपनी इंडियन एयरलाइंस के पायलट बन गए।
कैम्ब्रिज में उनकी मुलाकात इतालवी सोनिया मैनो से हुई थी, जो उस वक़्त वहां अंग्रेजी की पढ़ाई कर रही थीं। उन्होंने 1968 में नई दिल्ली में शादी कर ली। वे अपने दोनों बच्चों राहुल और प्रियंका के साथ नई दिल्ली में श्रीमती इंदिरा गांधी के निवास पर रहे। वे खुशी खुशी अपनी जिन्दगी गुजार रहे थे,  लेकिन 23 जून 1980 को एक जहाज हादसे में उनके भाई संजय गांधी की मौत ने सारे हालात बदल कर रख दिए। उन पर सियासत में आकर अपनी मां की मदद करने का दबाव बन गया। फिर कई अंदरूनी और बाहरी चुनौतियां भी सामने आईं। पहले उन्होंने इन सबका काफी विरोध किया, लेकिन बाद में उन्हें अपनी मां की बात माननी पड़ी और इस तरह वे न चाहते हुए भी सियासत में आ गए। उन्होंने जून 1981 में अपने भाई की मौत की वजह से खाली हुए उत्तर प्रदेश के अमेठी लोकसभा क्षेत्र का उपचुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें जीत हासिल हुई। इसी महीने वे युवा कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बन गए। उन्हें नवंबर 1982 में भारत में हुए एशियाई खेलों से संबंधित महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई, जिसे उन्होंने बखूबी अंजाम दिया। साथ ही कांग्रेस के महासचिव के तौर पर उन्होंने उसी लगन से काम करते हुए पार्टी संगठन को व्यवस्थित और सक्रिय किया।
अपने प्रधानमंत्री काल में राजीव गांधी ने नौकरशाही में सुधार लाने और देश की अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के लिए कारगर कदम उठाए, लेकिन पंजाब और कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन को नाकाम करने की उनकी कोशिश का बुरा असर हुआ। वे सियासत को भ्रष्टाचार से मुक्त करना चाहते थे, लेकिन यह विडंबना है कि उन्हें भ्रष्टाचार की वजह से ही सबसे ज्यादा आलोचना का सामना करना पड़ा। उन्होंने कई साहसिक कदम उठाए, जिनमें श्रीलंका में शांति सेना का भेजा जाना, असम समझौता, पंजाब समझौता, मिजोरम समझौता आदि शामिल हैं।
इसकी वजह से चरमपंथी उनके दुश्मन बन गए. नतीजतन, श्रीलंका में सलामी गारद के निरीक्षण के वक़्त उन पर हमला किया गया, लेकिन वे बाल-बाल बच गए. साल 1989 में उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन वह कांग्रेस के नेता पद पर बने रहे। वे आगामी आम चुनाव के प्रचार के लिए 21 मई, 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेराम्बदूर गए, जहां एक आत्मघाती हमले में उनकी मौत हो गई। देश में शोक की लहर दौड़ पड़ी। आजाद भारत राजीव जी के महत्वपूर्ण योगदान के लिए हमेशा उनका ऋणी रहेगा। राजीव जी की पुण्यतिथि आज 21 मई को बलिदान दिवस के रूप में मनाई जाती है।

 

 

Show More

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button