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नवादा लोकसभा सीट- जातीय गणना ने बढ़ायी भूमिहारों की सक्रियता 

-डॉ बुद्धसेन

 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सामने आये बिहार सरकार द्वारा करायी गयी जातीय गणना के आंकड़े ने राजनीतिक हलकों में हलचल पैदा कर दिया है. हालांकि, आंकड़े सामने आने से पहले ही भूमिहार समाज यह मानकर चल रहा था कि आबादी के मामले में नवादा लोकसभा क्षेत्र में वह यादवों की अपेक्षा बीस है, फिर भी नये आंकड़े ने उनके उत्साह को और अधिक बढ़ा दिया है. हालांकि, लोकसभा चुनाव में अभी कुछ महीने बाकी हैं, फिर भी उनकी सक्रियता काफी बढ़ गयी है. स्वाभाविक तौर पर इस समाज से टिकट के दावेदारों की भी सक्रियता बढ़ गयी है. कुछ पटना और दिल्ली तक जुगाड़ बैठाने की कोशिश करते देखे जा रहे हैं तो कुछ को भरोसा है कि पार्टी के शीर्ष नेताओं से उनकी नजदीकी उन्हें टिकट दिलाने में मददगार साबित होगी. यह स्थिति राजग और इंडिया दोनों गठबंधनों से जुड़े दलों में देखी जा रही है. फिलहाल, नवादा संसदीय सीट राजग के पास है और लोजपा रामविलास के चन्दन सिंह यहां से सांसद हैं. वह पूर्व सांसद और अविभाजित लोजपा के राष्ट्रीय महासचिव रहे सूरजभान सिंह के भाई हैं. उनकी कोशिश रहेगी कि इस बार भी उन्हीं को नवादा की उम्मीदवारी मिले. सामान्य तौर पर सिटिंग सांसद होने के कारण उनका दावा बनता भी है. लेकिन, लोजपा में विभाजन के समय सूरजभान सिंह जिस तरह चिराग पासवान की नजरों पर चढ़ गये उससे थोड़ा संशय की स्थिति बनी हुई है. चर्चा है कि सूरजभान के प्रति नाराजगी बनी रही और नवादा सीट पर लोजपा का दावा बरकरार रहा तो इस बार भूमिहार समाज से ही ऐसे शख्स को चुनाव मैदान में उतारने की कोशिश की जायेगी जिसका बैकग्राउंड मजबूत और छवि स्वच्छ रहे हों. एक चर्चा राजेश कुमार सिंह की भी हो रही है.  पेशे से पत्रकार और समाजसेवी राजेश कुमार सिंह प्रखर स्वतंत्रता सेनानी और सुभाष चन्द्र बोस के करीबी रहे रामायण सिंह के पौत्र हैं. लगभग दो दशक से दिल्ली की पत्रकारिता में हैं. संसद, प्रधानमंत्री कार्यालय और प्रमुख राजनीतिक पार्टियों को देखते रहे हैं. कई न्यूज चैनलों में राजनीतिक सम्पादक रह चुके राजेश कुमार सिंह फिलहाल, बी4यू में ग्रुप हेड मीडिया एण्ड प्लानिंग एडवाइजर के पद पर हैं. नौकरी में व्यस्तता के बावजूद वह सामाजिक कार्याे को बखूबी समझने और उसके समाधान की कोशिश करते रहे?. खास तौर से बिहार के सम्मान और उसके गौरवशाली इतिहास को हर प्लेटफार्म पर उठाने का काम किया. बिहार की समस्याएं और उससे जुडे़ महत्वपूर्ण कार्य को सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुंचाने की ही नहीं बल्कि समाज के हर वर्ग को उस कड़ी से जोड़ने की कोशिश की. इसके लिए उन्हें यंग जर्नलिस्ट अवार्ड भी मिल चुका है. रामायण सिंह फॉरवर्ड ब्लॉक यूथ विंग के 1939 में राष्ट्रीय सचिव हुआ करते थे. बाद में उन्हें फॉरवर्ड ब्लॉक का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया और वह आजीवन उस पद पर रहे. बाद में स्वामी सहजानंद सस्वती के किसान आन्दोन से जुडे़ और अखिल भारतीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय महासचिव बने. उनके नेतृत्व में किसानों की समस्याओं को राष्ट्रीय पटल पर रखकर एक बड़ा जनआन्दोन खडा किया गया था. देश के कई राष्ट्रीय आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले रामायण सिंह की पहचान उर्दू आन्दोलन के जनक के रूप में भी रही है. भारत में उर्दू को संवैधानिक रूप से 22 भाषाओं में से एक भाषा के रूप में मान्यता दिलाने में उनकी भूमिका को लोग आज भी याद करते हैं.  हालांकि, राजग से उम्मीदवारी के लिए भाजपा के भी अनेक नेता पंक्ति में हैं. उनका मानना है कि नवादा सीट पर भाजपा का दावा रहा है. भाजपा के भोला सिंह, संजय पासवान और गिरिराज सिंह जैसे दिग्गज नेताओं को यहां के मतदाताओं ने बतौर प्रतिनिधि संसद भेजा भी है. उसी आधार पर विवेक ठाकुर खुद को मजबूत दावेदार के तौर पर देख रहे हैं. उनके समर्थकों का मानना है कि भाजपा के चाणक्य कहे जानेवाले केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह से विवेक ठाकुर की खूब छनती है. यही करीबी उनकी उम्मीदवारी का मजबूत दावा है. इसी उम्मीद में वह पिछले कुछ वर्षों से नवादा लोकसभा क्षेत्र का भ्रमण करते आ रहे हैं. विवेक ठाकुर पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ सीपी ठाकुर के पुत्र हैं. डॉ सीपी ठाकुर दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी रहे हैं. वैसे, भाजपा के सचेतक रहे हिसुआ के पूर्व विधायक अनिल सिंह और वारिसलीगंज की विधायक अरुणा देवी के पति अखिलेश सिंह भी किस्मत आजमाने की सोच रहे हैं. अनिल सिंह तो इसके लिए दिल्ली तक की दौड़ लगाते नहीं थक रहे. उन्हें उम्मीद है कि नित्यानन्द राय से निकटता उन्हें टिकट दिलाने में मुख्य भूमिका निभायेगी. हालांकि, जानकारों का मानना है कि पार्टी फंड में पैसे देने के मामले में अनिल सिंह पर विवेक ठाकुर भारी पड़ सकते हैं. इस मामले में अखिलेश सिंह भी पीछे नहीं हैं. उनकी पत्नी अरुणा देवी तीन बार से विधायक हैं. फिलहाल बिहार विधानसभा में बाल विकास एवं महिला कल्याण समिति की अध्यक्ष हैं. हालांकि, राजेश कुमार सिंह समर्थकों का कहना है कि लोजपा से टिकट के दावेदार राजेश कुमार सिंह का भी संघ प्रमुख मोहन भागवत से अच्छी पहचान है. मोहन भागवत उन्हें सम्मानित भी कर चुके हैं. मोहन भागवत का हस्तक्षेप हुआ तो राजेश कुमार सिंह सभी पर भारी पड़ जा सकते हैं.  भाजपा टिकट का दावा व्यवसायी वर्ग से आनेवाले नवीन केशरी भी कर रहे हैं. नवीन केशरी भाजपा के नालन्दा जिला प्रभारी हैं. विधानसा चुनाव में वह नवादा से भाजपा उम्मीदवार भी रह चुके हैं. भाजपा के संस्थापक सदस्य गौरी शंकर केशरी के पुत्र हैं. पूर्व विधायक गौरी शंकर केशरी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बहुत करीबी थे. इतने थे कि भाजपा के अस्तित्व में आने के बाद दोनों ने नवादा में आमसभा के लिए साइकिल रिक्शा पर एक साथ प्रचार भी किया था. देखना यह है कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व भाजपा के संस्थापक सदस्य के इस बेटे को कितनी तरजीह देते हैं.  हालांकि, नवगठित ‘इंडिया’ ने अभी आधिकारिक तौर पर स्पष्ट नहीं किया है कि नवादा संसदीय सीट से किस सहयोगी दल का उम्मीदवार होगा, परन्तु इस सीट पर कब्जा जमाने के लिए उससे जुड़े नेताओं, खासकर राजद नेताओं की सक्रियता बढ़ी हुई है. राजद समर्थक तो सोशल मीडिया पर दावा भी करने लगे हैं कि नवादा सीट राजद के कोटे में आयी है और नवादा से राजद विधायक विभा देवी को उम्मीदवार घोषित कर दिया गया है. इससे पहले विभा देवी के देवर और पूर्व राज्यमंत्री राजवल्लभ प्रसाद के भाई विनोद यादव की चर्चा जोर पकड़ रही थी. समर्थकों के साथ उन्होंने जनसम्पर्क अभियान भी शुरू कर दिया था. इसे हवा देने में राजद नेता प्रिन्स तमन्ना की बड़ी भूमिका रही. कहा जाता है कि अपनी बीमार को देखने जेल से बेल पर अपने घर पहुंचे राजवल्लभ प्रसाद ने न केवल अपने भाई को इसके लिए फटकार लगायी थी बल्कि प्रिन्स तमन्ना को भी झाड़ लगायी थी. तभी से प्रिन्स तमन्ना ने सोशल मीडिया पर विनोद यादव को भावी राजद उम्मीदवार बताना बद कर दिया है. फिर भी उनकी इच्छा अभी मरी नहीं है. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में राजवल्लभ प्रसाद बतौर राजद उम्मीदवार चुनाव लड़े थे. दूसरे स्थान पर रहे थे. कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता मुकेश कुमार दिनकर कहते हैं कि इंडिया ने अभी तय ही नहीं किया है कि नवादा सीट पर किस सहयोगी दल का उम्मीदवार उतारा जायेगा तो ऐसे में किस आधार पर कोई दावा कर सकता है. वैसे भी नवादा भूमिहार बहुल सीट है. यादव यहां दूसरे और मुसलमान उससे थोड़ा कम रहकर तीसरे स्थान पर है. जदयू की तरफ से लोकसभा टिकट के दावेदार माने जानेवाले  कौशल यादव भी कुछ ऐसा ही कहते हैं. कौशल यादव के मुताबिक, पहली बात यह कि पहले तय हो जाये कि किस दल का उम्मीदवार होगा और दूसरे यह कि दल तय होने के बाद उस दल की कमिटी तय करेगी कि किस शख्स को उम्मीदवार बनाया जाये कि नवादा सीट पर ‘इंडिया’ का कब्जा हो. इसलिए पहले से यह दावा करना कि उम्मीदवार तय कर दिया गया है, एक मजाक ही होगा.बहुजन समाज पार्टी की टिकट पर नवादा से उम्मीदवार रहे सैयद मसीह उद्दीन कहते हैं कि किसी भी समाज का सामाजिक, आर्थिक और बौद्धिक विकास तभी सम्भव है जब उसकी सत्ता में हिस्सेदारी हो. इसी के निर्धारण के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जातीय गणना करा बहुत अच्छा काम किया है. लेकिन, इसमें कुछ चूक रह गयी है. ईराकी जाति के लोगों की गणना मुसलमान में नहीं की गयी है. ईराकी को कलाल भी कहते हैं. बिहार में इसकी लगभग डेढ़ प्रतिशत आबादी है. इसको जोड़ दिये जाने पर बिहार में मुसलमानों की आबादी उन्नीस प्रतिशत से अधिक हो जाती है. उसी हिसाब से मुसलमानों को सत्ता में भागीदारी दी जानी चाहिए. सभी राजनीतिक दलों को इसपर गम्भीरता से विचार करना चाहिए. जहां तक नवादा लोकसभा सीट की बात है, यहां भूमिहार समाज की सबसे अधिक आबादी है. दूसरे स्थान पर यादव और उससे थोड़ी कम आबादी रहने के कारण मुसलमान तीसरे स्थान पर है. इसलिए स्वाभाविक तौर पर नवादा सीट पर भूमिहार का पहला हक बनता है. साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि उसके साथ और कौन-कौन सी जातियां हैं, जिनके बूते वह संसद की सीढ़ियों को चूम सकता है.

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