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कोरोना काल में भी प्री-मेच्योर नवजात की सुरक्षा से नहीं करें कोई समझौता

• कमजोर नवजात की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करना बेहद जरूरी

 

 

• अधिकाधिक स्तनपान कमजोर शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता करता है मजबूत

 

 

जमुई / 3 जून: कोरोना संक्रमण के इस संकटकाल में यह स्पष्ट हो गया है कि मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता स्वस्थ्य जीवन के महत्वपूर्ण कारकों में से एक है. रोग से लड़ने की क्षमता ही हमें स्वस्थ्य रखने में मदद करती है. यदि बचपन से ही रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत रहे तो यह कई बीमारियों से भी आपकी रक्षा स्वत: करता है. इसके लिए यह भी जरूरी है कि एक शिशु को बचपन में वह सभी आवश्यक देखभाल मुहैया करायी जाये जिससे उसका रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो सके. ताकि व पूरी उम्र बीमारियों से लड़ने की अपनी क्षमता को बरकरार रख सके.  ऐसे में यह भी ध्यान रखना बेहद जरूरी है कि यदि परिवार में कमजोर नवजात शिशु है तो उसकी देखभाल किस प्रकार करनी होगी. कमजोर नवजात शिशु की श्रेणी में वैसे बच्चे आते हैं जिनका जन्म के समय 2 किलो से कम वजन रहा है. साथ ही 9 माह पूरा होने से पहले ही 37 सप्ताह में जन्म लेने वाले बच्चे भी इसी श्रेणी में आते हैं. ऐसे प्री मैच्योर नवजात को गहन देखभाल की जरूरत होती है.

 

 

शिशु के जन्म के बाद का 2 साल बहुत महत्वपूर्ण:

शिशु के जन्म के बाद का 2 साल बहुत अधिक महत्वपूर्ण है. बिहार राज्य में नवजात शिशुओं की कुल संख्या का एक तिहाई हिस्सा प्रसव के समय से ही काफी कमजोर होते हैं. समय पर कमजोर नवजात शिशुओं को संपूर्ण देखभाल उनका जीवनकाल बढ़ा देता है

मजबूत करें कमजोर नवजात की रोग प्रतिरोधक क्षमता: 

मां कई सकारात्मक कदम उठाकर अपने कमजोर नवजात की बेहतर देखभाल कर सकतीं हैं.

• कमजोर नवजात शिशु शरीर का तापमान बनाये रखने में असमर्थ होते हैं. और ऐसे शिशुओं के लिए कंगारू मदर केयर यानी केएमसी काफी असरदार होता है. इस विधि में मां नवजात को छाती से चिपकाकर रखें. इस प्रक्रिया में नवजात को प्राकृतिक तौर से आवश्यक उर्जा व उष्मा प्राप्त होता है. इसके मां का दूध का जल्दी उतरने के साथ, नवजात का वजन बढ़ना व शारीरिक विकास तेजी से होना व मां के साथ मानसिक व भावनात्मक जुड़ाव आदि फायदे होते हैं.

 

 

• शिशु को अधिक से अधिक स्तनपान करायें. नियमित और अधिकाधिक स्तनपान शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है. शिशु को छह माह तक अन्य तरल पदार्थ बिल्कूल भी नहीं दें, यहां तक की पानी भी नहीं देना है.

 

• अपने शिशु की नियमित स्वास्थ्य जांच करायें. इससे शिशु की समस्या की पहचान शुरूआती समय में ही चिकित्सक कर बेहतर इलाज मुहैया करा सकते हैं.

 

• शिशु के छह माह होने के बाद अनुपूरक आहार दिया जाये. ठोस व पौष्टिक आहार शिशु के शारीरिक विकास में मददगार होगा

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