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पूर्वोत्तर में बीजेपी की वापसी मोदी की मेहनत के परिणाम

नॉर्थ ईस्ट राज्यों में हुए चुनावों के नतीजे सामने आ चुके हैं, जिसमें सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन को त्रिपुरा और नागालैंड में बहुमत हासिल हुआ है।

नॉर्थ ईस्ट राज्यों में हुए चुनावों के नतीजे सामने आ चुके हैं, जिसमें सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन को त्रिपुरा और नागालैंड में बहुमत हासिल हुआ है।

एक ओर, नागालैंड में भाजपा गठबंधन को 37 सीटें मिली है, तो दूसरी ओर त्रिपुरा में 33 सीटें। त्रिपुरा में भाजपा अकेले सत्ता में होगी और नागालैंड में उसे एनडीपीरी का सहयोग मिलेगा। हालांकि, मेघालय में पार्टी के प्रदर्शन में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ।

इस जीत के बाद, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नई दिल्ली स्थित भाजपा मुख्यालय पहुँचे और सभी विपक्षी दलों पर जमकर निशाना साधा। अपने संबोधन के दौरान उन्होंने कहा, “हमारी जीत से घबराए कुछ कट्‌टर विरोधी कहते हैं मर जा मोदी, लेकिन मेरे देशवासी कहते हैं मत जा मोदी। इस नतीजे के बाद टीवी पर वोटिंग मशीन को गाली पड़नी शुरू हुई या नहीं।”

साथ ही उन्होंने कहा, “आज हम एक नई दिशा में चल पड़े पूर्वोत्तर को देख रहे हैं। यह दिलों की दूरियां समाप्त होने का ही नहीं, बल्कि नई सोच का प्रतीक है। अब पूर्वोत्तर न दिल्ली से दूर है न दिल से दूर है। यह इतिहास रचे जाने का समय है। मैं इस क्षेत्र की समृद्धि और विकास का समय देख रहा हूँ।”

प्रधानमंत्री मोदी से इस बयान से साफ है कि अब वह चुनावी मोड में आ चुके हैं और आने वाले समय में विपक्ष पर और अधिक हमलावर होंगे।

यह तथ्य जगजाहिर है कि पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा जैसे राज्य आज़ादी के बाद से ही काफी संवेदनशील रहे हैं और सरकार के ढीली रवैये के कारण यह दिनोंदिन शेष भारत से दूर होता जा रहा था। लेकिन प्रधानमंत्री ने बीते 8 वर्षों में, यहाँ शांति और समृद्धि की एक नई गाथा लिखी है और इसे भारत के विकास के ‘प्रवेश द्वार’ के रूप में पहचान दिलाते हुए लोगों के विश्वास को हासिल किया। उनके इस प्रयास में केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह की भी उल्लेखनीय भागीदारी रही।

खैर, त्रिपुरा और नागालैंड में जीत के साथ ही, भाजपा देश के 16 राज्यों में सत्ता में स्थापित हो चुकी है। जनसांख्यिकीय दृष्टिकोण से देखा जाए, तो इन राज्यों में देश की करीब आधी आबादी का वास है। वहीं, भाजपा की सबसे बड़ी विरोधी पार्टी यानी कांग्रेस केवल छह राज्यों में सरकार में है।

आँकड़े बताते हैं कि 2014 में जब नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री का पदभार संभाला था, तो उस समय केवल सात ही राज्यों में भाजपा और उसके सहयोगियों की सरकार थी। वहीं, कांग्रेस और उसके सहयोगी 14 राज्यों में सत्ता में थे। इन आँकड़ों से स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री मोदी के जनकल्याणी नीतियों और संकल्पों को जनमानस द्वारा एक अभूतपूर्व स्वीकार्यता मिली है।

2024 के आम सभा चुनाव से पूर्व कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान और तेलंगाना जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में, भाजपा का इरादा यही होगा कि वह जिन राज्यों में पहले से ही सरकार में है, उसे कायम रख जाए और जिन राज्यों में सहयोगी की भूमिका में है, वहाँ अपने जनाधार को और अधिक व्यापक किया जाए।

यदि हम त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय के विधानसभा चुनाव का आँकलन आगामी लोकसभा चुनाव के परिप्रेक्ष्य में करें, तो यह कहना मुश्किल है कि इसका कोई विशेष असर होगा। क्योंकि, इन राज्यों में केवल पाँच लोकसभा सीटें हैं। वहीं, विधानसभा चुनावों में स्थानीय मुद्दों का महत्व अधिक होता है, तो लोकसभा चुनावों में राष्ट्रीय मुद्दे मायने रखते हैं।

इसके बावजूद, आज उत्तर से लेकर दक्षिण तक जिस तरह से भाजपा की स्वीकार्यता बढ़ रही है, उस लिहाज से सभी विपक्षी दलों को एक कठोर संदेश तो जाएगा ही। इसमें कोई संदेह नहीं है। ये नतीजे विरोधियों को आत्म-मंथन के लिए विवश करेंगे, तो भाजपा को जनसेवा की और अधिक प्रेरणा मिलेगी।

लेखक – विवेकानंद शांडिल्य

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