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“एक भारत, श्रेष्ठ भारत” के विजन को साकार करने के उद्देश्य से काशी-तमिल संगमम 2025 का भव्य आयोजन 15 से 24 फरवरी को

वाराणसी-

शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” के विजन को साकार करने के उद्देश्य से काशी-तमिल संगमम 2025 का भव्य आयोजन 15 से 24 फरवरी के मध्य किया जा रहा है। यह ऐतिहासिक आयोजन काशी और तमिलनाडु के प्राचीन सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक संबंधों को पुनर्जीवित करने का प्रयास है, जिसमें दोनों संस्कृतियों के बीच पारंपरिक कला, भाषा, साहित्य और परंपराओं के सेतु को और अधिक मजबूत किया जा रहा है।

इस आयोजन की सांस्कृतिक संध्याएं विशेष आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं, जो हर शाम नमो घाट स्थित मुक्त आकाश मंच पर आयोजित की जाती हैं। आज के इस भव्य श्रृंखला की शुरुआत सुप्रसिद्ध बांसुरी वादक आशीष कुमार जी के मधुर बांसुरी वादन से हुई, जिसने उपस्थित दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इसके पश्चात, कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पंडित कोविनूर नारायण स्वामी ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में हिंदी और तमिल परंपराओं के गहरे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों पर प्रकाश डाला। उन्होंने भारत की सांस्कृतिक विविधता में एकता के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि यह आयोजन हमारी साझी विरासत को समझने और उसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने का एक सशक्त माध्यम है।

सांस्कृतिक संध्या में तमिलनाडु के विभिन्न पारंपरिक नृत्यों की आकर्षक प्रस्तुतियां देखने को मिलीं। थपत्तम नृत्य ने अपनी ऊर्जावान प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। यह नृत्य विशेष रूप से ढोल (थप्पू) के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है और तमिलनाडु के लोक उत्सवों तथा अनुष्ठानों का अभिन्न अंग है। इसके बाद कोल्लाटम (छड़ी नृत्य) की अद्भुत प्रस्तुति हुई, जिसमें नर्तकों ने छड़ियों के तालमेल के साथ नृत्य कर एक लयबद्ध समरसता का प्रदर्शन किया। यह नृत्य तमिलनाडु की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है और समूह समन्वय की उत्कृष्ट मिसाल पेश करता है। सांस्कृतिक संध्या का प्रमुख आकर्षण कंबरामायण पर आधारित नाट्य मंचन रहा, जिसमें संत कंबन द्वारा रचित तमिल रामायण के प्रसंगों को सजीव अभिनय और नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। इस नाट्य मंचन ने दर्शकों को तमिल साहित्य की समृद्धि और उसकी गहरी सांस्कृतिक जड़ों से परिचित कराया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में शिक्षा मंत्रालय ने भारतीय संस्कृति के विभिन्न आयामों को समाहित करने और उसे वैश्विक पटल पर प्रस्तुत करने की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किए हैं। काशी-तमिल संगमम इस दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है, जो भारत की सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित करने के साथ-साथ हिंदी और तमिल भाषी समुदायों के बीच आपसी सहयोग और समन्वय को भी बढ़ावा देगा। वाराणसी, जो स्वयं एक प्राचीन सांस्कृतिक राजधानी रही है, इस आयोजन के माध्यम से दक्षिण और उत्तर भारत की परंपराओं को जोड़ने का माध्यम बन रही है।

यह आयोजन भारतीय संस्कृति की विविधता में एकता का संदेश देता है और “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” की भावना को सशक्त बनाता है। शिक्षा मंत्रालय द्वारा आयोजित यह महोत्सव न केवल हमारी सांस्कृतिक जड़ों को मजबूत कर रहा है, बल्कि नई पीढ़ी को अपनी समृद्ध विरासत से जोड़ने का भी कार्य कर रहा है।

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