फिल्म पायरेसी रोकने के लिए सूचना प्रसारण मंत्रालय की बड़ी कार्रवाई
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने जानकारी दी है कि पायरेसी के कारण फिल्म उद्योग को हर वर्ष 20,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है और इसकी रोकथाम के लिए इस वर्ष मानसून सत्र के दौरान संसद द्वारा सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) कानून, 1952 को पारित होने के बाद, सभी डिजिटल कंपनियों को पायरेटेड कंटेंट हटाने के निर्देश दिए गये हैं. इस दिशा में मंत्रालय द्वारा नोडल अधिकारियों का एक संस्थागत तंत्र भी स्थापित किया है.
कॉपीराइट कानून और आईपीसी के तहत अभी तक कानूनी कार्रवाई को छोड़कर पायरेटेड फिल्मी सामग्री पर सीधे कार्रवाई करने के लिए कोई संस्थागत तंत्र नहीं है. इंटरनेट के प्रसार और लगभग प्रत्येक व्यक्ति द्वारा नि:शुल्क में फिल्मी सामग्री देखने में रुचि रखने के साथ, पायरेसी में तेजी देखी गई है. उपरोक्त कार्रवाई से पायरेसी के मामले में सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा तुरंत कार्रवाई की जा सकेगी और उद्योग को राहत मिलेगी.
विधेयक के बारे में संसद में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि इस कानून का उद्देश्य फिल्म पायरेसी पर अंकुश लगाने की फिल्म उद्योग की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करना है. इस कानून में 40 वर्ष बाद संशोधन किया गया, ताकि 1984 में अंतिम महत्वपूर्ण संशोधन किए जाने के बाद डिजिटल पायरेसी सहित फिल्म पायरेसी के खिलाफ प्रावधानों को इसमें शामिल किया जा सके. संशोधन में न्यूनतम 3 महीने की कैद और 3 लाख तक रुपये के जुर्माने की सख्त सजा शामिल है, सजा को 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है और ऑडिटेड सकल उत्पादन लागत का 5 प्रतिशत तक जुर्माना लगाया जा सकता है.
बता दें कि मूल कॉपीराइट धारक या इस उद्देश्य के लिए उनके द्वारा अधिकृत कोई भी व्यक्ति पायरेटेड सामग्री को हटाने के लिए नोडल अधिकारी को आवेदन कर सकता है. यदि कोई शिकायत किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाती है जिसके पास कॉपीराइट नहीं है या कॉपीराइट धारक द्वारा अधिकृत नहीं है, तो नोडल अधिकारी निर्देश जारी करने से पहले शिकायत की वास्तविकता तय करने के लिए मामले दर मामले के आधार पर सुनवाई कर सकता है.
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