देश

राहुल-दानिश की नजदीकियों के बाद घबराए ’मसूद’ कांग्रेस में

– बिना शर्त माफी के साथ मौकापरस्त ’इमरान’ की संदीप टीम ने करायी वापसी 

-रितेश सिन्हा-

यूपी की राजनीति अब फिर से करवट लेने लगी है। इसी कड़ी में दानिश अली एपिसोड के बाद पश्चिमी यूपी से एक बार पूर्व विधायक रहे इमरान मसूद अब फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। वे सपा, बसपा और पिछले सप्ताह तक संजीव बालियान के जरिए भाजपा में सेंधमारी में जुटे थे। टीम संदीप ने धीरज गुर्जर, नरवाल और तौकीर के जरिए अब यूपी प्रदेश अध्यक्ष व पुराने मित्र अजय राय के जरिए वापसी सुनिश्चित करवायी। मसूद की आनन-फानन कांग्रेस में पुनर्वापसी अर्चना गौतम मामले को दबाने की कोशिश कही जा सकती है। इससे पूर्व 3 अक्तूबर को केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान के साथ सुर में सुर मिलाते हुए उन्होंने पश्चिम यूपी को अलग प्रदेश बनाने की मांग की। भाजपा में घूसने की कोशिशों में पुलिस लाइन के मैदान से बालियान की बातों का समर्थन भी किया। वे इंडिया गठबंधन का हिस्सा बन रहे रालोद सुप्रीमो जयंत चौधरी के घर घुटने टेके हुए थे। संजीव बालियान के सुर में सुर मिलाने के बाद ही रालोद सुप्रीमो ने अपने दल के दरवाजे के साथ घर के दरवाजे बंद कर दिए थे। यूपी की कोई भी ऐसी पार्टी नहीं है जिसका वे हिस्सा नहीं रहे। ऐसा कोई सगा जिसको इमरान ने ठगा नहीं। बसपा सांसद दानिश अली के साथ पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष की बढ़ती नजदीकी से घबराए, अल्पसंख्यक राजनीति में पिछड़ चुके इमरान बिना शर्त कांग्रेस की मोहब्बत की दुकान का हिस्सा हो गए। कुछ दिन पूर्व देश भर के तमाम कांग्रेसियों ने राहुल और दानिश के गले मिलते हुए फोटो को शेयर किया था जिसे अजय राय ने भी शेयर किया था। बसपा से धकिया दिए जाने के बाद कांग्रेस में अपनी वापसी सुनिश्चित करने के बाद इमरान ने कहा कि मैं अपने पुराने घर कांग्रेस में वापसी कर रहा हूं, आखिरी सांस तक यहीं रहूंगा। इमरान लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए भी बेचैन हैं। कांग्रेस के केंद्रीय कार्यालय में उनकी वापसी के समय पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल, पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव शुक्ला, कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा, यूपी प्रदेश अध्यक्ष अजय राय के साथ संदीप के सिपाहसलार नरवाल भी मौजूद थे। बसपा में अपना कोई भविष्य न देखते व पार्टी से बाहर निकलने की सूरत में राहुल गांधी की तारीफों के पुल बांधने शुरू किए। इसके बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने उन्हें पार्टी से निकाल बाहर किया। इन बीतें महीनों में भाजपा, रालोद समेत अन्य राजनीतिक दलों के संपर्क में भी रहे। अल्पसंख्यकों में कांग्रेस के बढ़ते प्रभाव से डगमगाए इमरान पार्टी में घूसने की कोशिशों में आखिरकार सफल हो गए।बसपा से निष्कासित होने के बाद उनकी कोशिशों पर प्रियंका गांधी ने विराम लगा दिया था। उसके बाद दलित महिला अर्चना गौतम मामले जब संदीप बुरी तरह घिरे, कांग्रेस आलाकमान गंभीर हुआ तब आनन-फानन में 48 घंटे के भीतर संदीप, धीरज गुर्जर और नरवाल ने अपनी पीठ बचाने के लिए उनको पार्टी में दुबारा शामिल करवा लिया। इमरान हर हाल में किसी भी सदन का सदस्य बनने को बेचैन हैं। वे 2006 में सहारनपुर नगरपालिका के चेयरमैन चुने गए थे। 2007 में विधायक भी बने। अपने चाचा गाजी रसीद मसूद के नाम पर चुनाव निकालने में सफल रहे। 2012 में कांग्रेस में शामिल हुए और नुपुर विधानसभा से चुनाव लड़ा और हार का सामना करना पड़ा। जीत की ललक में फिर एक बार उन्होंने समाजवादी पार्टी की साइकिल पर बैठ गए, लेकिन वहां भी उनको मुंहकी खानी पड़ी। 2017 में फिर एक बार कांग्रेस में वापसी कर ली और राष्ट्रीय सचिव बनाए गए। यूपी की प्रभारी प्रियंका ने राहुल से कहकर इन्हें यूपी में कांग्रेस में अल्पसंख्यकों का बड़ा चेहरा बना दिया, लेकिन मौकापरस्त इमरान ने कांग्रेस को गच्चा देते हुए ऐन चुनाव से पहले सपा में बतौर कार्यकर्ता शामिल कर लिए गए। सपा ने इन्हें टिकट से ही वंचित नहीं किया, बल्कि कार्यकर्ताओं वाला सम्मान देते हुए जिस सीट की टिकट मांग रहे थे, वहां पुराने सपाई को टिकट थमाते हुए इनको साइकिल का पर्चा बांटने की जिम्मेदारी दी। ये नेता विधायक बनने की ललक में चौबे से छब्बे बनने की बजाए दुबे बनते हुए स्थानीय निकाय चुनाव से पूर्व बसपा की चौखट को ही चूमने लगे। मायावती ने इसे धोखेबाज और मौकापरस्त मानते हुए बसपा का कार्यकर्ता तो बना दिया लेकिन किसी भी चुनाव में हाथी की सवारी नहीं करने दी।यूपी में इमरान मसूद के जाने के बाद नसीमुद्दीन सिद्दिकी एक कद्दावर नेता के तौर पर स्थापित हो चुके हैं। दूसरी चुनौती अभी दानिश अली से मिलनी बाकी है। दानिश की राहुल से बढ़ती नजदीकियों से उबते हुए मायावती 2024 में उनका टिकट काटने की पूरी तैयारी कर चुकी है। दानिश भी 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद अपना नफा-नुक्सान देखते हुए कभी भी कांग्रेस का तिरंगा पकड़ सकते हैं। दानिश छात्र राजनीति से ऊपर उठकर आए और सधी हुई भाषा बोलने वाले व्यवहारकुशल इमरान के मुकाबले गंभीर राजनेता माने जाते हैं। उनका खासा प्रभाव संसद से लेकर सड़क तक एक संजीदा मुस्लिम नेता की छवि बना ली है। कांग्रेस की छवि में अपना जिताऊ चेहरा बताकर वे पार्टी में शामिल हो सकते हैं। पश्चिमी यूपी में मुस्लिम राजनीति में मसूद परिवार का खासा दबदबा रहा है जिसे बरकरार रखने में इमरान अब तक ना-काबिल ही साबित हुए हैं। कांग्रेस में वापसी से पहले इमरान मसूद ने अखिलेश पर भी काफी तंज कसा है। विगत दो सालों में ये तीसरी बार पार्टी बदल रहे हैं जिससे अल्पसंख्यकों में इनकी छवि मौकापरस्त नेता के तौर पर बनी। इमरान को सपा ने भी सहारानपुर में जीत के लिए शामिल किया था, मगर खुद को भी साबित करने में नाकामयाब रहे। बसपा ने यह सोच कर इन्हें दाखिल होने दिया कि अगर मुस्लिम और दलित वोट बैंक साथ आए तो निकाय चुनाव में अपनी सीट जीत सकती है। मसूद के बसपा में आने के बाद ये समीकरण बनाने में भी वे नाकामयाब रहे और मुस्लिम वोट कांग्रेस और सपा में बंट गया। इसका फायदा भाजपा ने जमकर उठाया। जिन सीटों पर बसपा पहले से मौजूद थी, वहां भी इमरान के भरोसे बसपा हार गई।बसपा से निकाले जाने के बाद अपने समर्थकों के साथ एक मीटिंग की थी जहां समर्थकों ने एक सुर से कांग्रेस के पक्ष में जाने का मशविरा दिया जो कांग्रेस के पक्ष में खुद के लिए माहौल बनाने का एक प्रकार का प्रायोजित कार्यक्रम था। इमरान ने जयंत चौधरी के मना करने के बाद कांग्रेस के बड़े नेताओं के चक्कर काट रहे थे, मगर संदीप-अर्चना गौतम वाले प्रकरण ने उन्हें ये मौका दे दिया। अल्पसंख्यकों की राजनीति में यूपी में कई चेहरे उभर चुके हैं। पहले से स्थापित नेताओं में पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद सीडब्लूसी और संसदीय बोर्ड के सदस्य बनाए गए हैं। सांसद इमरान प्रतापगढ़ी अल्पसंख्यक विभाग के अध्यक्ष हैं। नसीमुद्दीन सिद्दिकी बड़ी खामोशी के साथ अल्पसंख्यकों के इतर ब्राह्मण, ओबीसी और दलितों के बीच अपनी पैठ मजबूत कर रहे हैं। इन तीनों नेताओं की शालीनता इमरान मसूद पर भारी है। नसीमुद्दीन सिद्दिकी और सलमान खुर्शीद के अलावा इमरान प्रतापगढ़ी और इमरान किदवई भी हैं जिनकी राजनीतिक समझ और सियासी कद बड़बोले इमरान मसूद से बड़ा है। कुछ भी बोल देने वाले मसूद अपनी नफरती बोल बच्चन से कांग्रेस की मोहब्बत की दुकान में अपनी जगह बना पाएंगे, इसमें कांग्रेसियों को ही संदेह है। देखना है कि इनको कोई पार्टी से पुराना सम्मान वापस मिलता है या फिर लोकसभा सीट के झांसे में लाकर छोड़ दिया जाएगा। वे कब तक कांग्रेस में बने रहते हैं, कब तक टिकेंगे, इस पर राजनीतिक विश्लेषकों की नजरें टिकी हैं।

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