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कांग्रेस की हार पर समीक्षा- नैतिक जिम्मेदारी से भागे, क्षेत्रीय नेताओं पर गाज गिराने में जुटे खड़गे

-रितेश सिन्हा
महाराष्ट्र, हरियाणा, छत्तीसगढ़, जम्मू-कश्मीर और झारखंड में खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी से कांग्रेस सुप्रीमो मल्लिकार्जुन खड़गे अब भागते नजर आ रहे हैं। संसद के शीतकालीन सत्र के बीच हार की समीक्षा के लिए बुलाई गई सीडब्ल्यूसी की बैठक में पार्टी अध्यक्ष खड़गे, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल, सांसद प्रियंका गांधी और मीडिया प्रभारी जयराम रमेश सहित 81 नेताओं ने भाग लिया था। इस बैठक के बाद अपने नकारा नेतृत्व पर उठ रही अंगुलियों से बौखलाए खड़गे क्षेत्रीय नेताओं को पद से इस्तीफा देने के लिए मान-मनौव्वल कर रहे हैं।
एनएसयूआई, यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय व केरल प्रदेश के अध्यक्ष रहे और अब तक महाराष्ट्र के प्रभारी रहे रमेश चेन्नीतला ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए नैतिकता के आधार पर अपने पद से इस्तीफा दे दिया। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष और वर्तमान में लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी के बाद विगत 10 सालों में वे दूसरे ऐसे नेता हैं जिन्होंने नैतिकता के आधार पर अपना पद छोड़ा है। जबकि महाराष्ट्र के ही दोनों महासचिव मुकुल वासनिक और अविनाश पांडे बेशर्मी के साथ आज भी अपने पद से चिपके हुए हैं। ये दोनों कागजी नेता आज सीडब्लूसी में हैं जो अपने-अपने विधानसभा में ही जीतने की स्थिति में नहीं हैं। कभी अहमद भाई और अब खड़गे को लाभार्थी बनाकर ये दोनों पद पर बरकरार हैं। खड़गे की टीम में उत्तर-पूर्व राज्यों को देख रहे प्रभारी डॉ अजय कुमार झारखंड में बुरी तरह से पराजित हुए, मगर नैतिक जिम्मेदारी के नाम पर पदचिपकू बने हुए हैं।
छत्तीसगढ़ का बंटाधार करने के बाद, हरियाणा के चुनावों में पूरी उछल-कूद कर कांग्रेस की जीत को हार में बदलने की जिम्मेदारी निभाते हुए कुमारी शैलजा और मध्य प्रदेश में हार सुनिश्चित कर हरियाणा को हुड्ड़ा को सीएम न बनने देने की कसम खाए रणदीप सुरजेवाला आज भी अपने पदों पर डटे हुए हैं। खड़गे में इतना दम नहीं कि इन नेताओं की जवाबदेही तय कर सकें। गु्रप 23 के नेताओं को लेकर खुलेआम घूमने वाले बिहार के अखिलेश सिंह आज भी अपने पद पर कायम हैं। बिहार में सदाकत आश्रम के जमीन घोटालों के आरोपों की जांच करने के राजू खुद पहुंचे थे और अपनी रिपोर्ट कांग्रेस अध्यक्ष को सौंपी थी। अखिलेश इन तमाम शिकायतों के बाद खड़गे के प्यारे बने हुए हैं।
बिहार-यूपी में सहयोगी दलों के साथ टिकटों की कमतर हिस्सेदारी तय कराने वाले मोहन प्रकाश भी अपने पद पर बरकरार हैं। खड़गे अपने इन सिपाहसलारों को नैतिकता के नाम पर न तो पदमुक्त कर सकते हैं, न ही इनसे जवाब-तलबी कर सकते हैं। दिल्ली कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष और पंजाब प्रभारी बने हुए देवेंद्र यादव के साथ खड़गे का खास रिश्ता है। दो बार के विधायक रहे देवेंद्र यादव तो दिल्ली में कांग्रेस को समेटने में लग गए हैं। दिल्ली के तमाम वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर जहां खड़गे ने देवेंद्र को सीडब्लूसी में जगह दी है, वहीं तमाम बड़े नेताओं में नजरंदाज करते हुए पंजाब की जिम्मेदारी भी सौंपी हुई है। देवेंद्र यादव का जलवा खड़गे दरबार में बरकरार है। अपने खास काजी निजामुद्दीन को दिल्ली का प्रभारी बनवाकर उन्होंने सबको चौंका दिया है। इससे पहले काजी निजामुद्दीन और देंवेंद्र यादव की जोड़ी कई राज्यों में टिकट बांटकर कांग्रेस की हार सुनिश्चित की है। दिल्ली के विधानसभा चुनाव से ऐन पहले आम कांग्रेसजनों से मिलने-जुलने वाले दीपक बावरिया की छुट्टी देवेंद्र यादव करवा चुके हैं। रास्ता अब साफ है। दिल्ली में तो स्क्रिनिंग कमिटी भी बना दी गई है जिसमें प्रदीप नरवाल जैसे नेता भी शामिल हैं। इनका बुलंदशहर वाला वसूली कांड की चर्चा अभी थमी नहीं है।
खड़गे अपने और अपनी टीम की जान और खाल बचाने के लिए संगठन में समितियों का गठन कर हार की समीक्षा की लीपापोती करने में जुट गए हैं। यही वजह है कि लगभग साढ़े चार घंटे तक चली सीडब्लूसी की बैठक में पार्टी ने हार के कारणों पर माथापच्ची की और सारा ठीकरा ईवीएम पर फोड़ दिया। आपको बता दें कि हरियाणा के हार के बाद खड़गे के निवास पर हुई समीक्षा बैठक में वहां भी ईवीएम पर हार का ठीकरा फोड़ा जा रहा था। तब राहुल गांधी ने माइक खीचकर सभी नेताओं को अच्छी-खासी डांट पिलाई थी। राहुल ने उन 17 सीटों पर जवाब-तलबी की थी जिस पर प्रदेश कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था। खड़गे हैं कि ’हम नहीं सुधरेंगे’ की धुन पर अब भी थिरक रहे हैं।
हालिया लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में 13 लोकसभा सीटें जीतने वाली कांग्रेस विधानसभा चुनाव में महज 15 सीटें जीत सकी हैं। इसमें भी दो सीटें प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले व नेता सदन विजय वडेतीवार की है। इन दोनों की जीत के पीछे देवेंद्र फडनवीस की रणनीतिक जीत बताया जा रहा है। स्थानीय नेताओं का यहां तक मानना है कि पटोले और वडेतीवार ने फडनवीस के साथ तय करके टिकटों का बंटवारा किया था जिस पर खड़गे ने मोहर लगाई थी। रही सही कसर सुशील कुमारी शिंदे ने अपने दो साथियों के साथ मिलकर विदर्भ से कांग्रेस को साफ कर दिया। शिंदे के साथ उनके ये दोनों दिग्गज साथी कभी 10 जनपथ के खास माने जाते थे।
अंदर की बात कहें तो प्रभारी महासचिव रमेश चेन्नीतला को टिकट बंटवारे से लेकर चुनावी प्रचार तक कभी विश्वास में ही नहीं लिया गया। उनके ऊपर जिन दो नेताओं की जिम्मेदारी लगाई गई थी, उनमें मुकुल वासनिक और अविनाश पांडे थे। चेन्नीतला इन दोनों नेताओं की छात्र राजनीति से ही सुपर बॉस रहे हैं। मौका देखते ही संगठन के खिलाड़ी चेन्नीतला ने इस्तीफा देकर खड़गे एंड टीम को खड़का दिया। कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे की मीडिया टीम अब ये खबर फैलाने में जोर-शोर से जुट गई है कि हार की जिम्मेदारी तय करते हुए प्रभारी महासचिवों को बदला जाएगा। कांग्रेसजनों का मानना है कि खड़गे के रहते कांग्रेस अपने बूते किसी प्रदेश में चुनाव जीत सकेगी, इसमें संदेह बना हुआ है।

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