स्वास्थ्य

शुरुआत में ही इलाज कराया तो समय से हो गईं ठीक

-बांका पुरानी बस स्टैंड की रहने वाली प्रेमलता देवी ने टीबी को दी मात
-सरकारी अस्पताल में जांच और इलाज के साथ मुफ्त में दवा भी मिली

बांका-

शहर के पुरानी बस स्टैंड की रहने वाली प्रेमलता देवी साल के शुरुआत में टीबी की चपेट में आ गई थीं, लेकिन शुरुआत में ही इलाज कराने पर समय से ठीक भी हो गईं। अब वह पूरी तरह से स्वस्थ हैं। दरअसल, ऐसा देखा जाता है कि लोग पहले बीमारी को स्वीकार नहीं करते हैं और जांच करने से कतराते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि बीमारी लंबे समय तक चलती है और मरीज को ठीक होने में काफी समय लग जाता है। कभी-कभी तो ऐसी लापरवाही से रोग असाध्य हो जाता है। इसलिए ऐसी लापरवाही करने से बचें और टीबी के अगर लक्षण दिखाई दे तो तत्काल जांच कराएं। जांच में अगर टीबी होने की पुष्टि हो जाती है तो तुरंत इलाज शुरू कर लें। इससे आप जल्द स्वस्थ हो जाएंगे।
प्रेमलता देवी कहती हैं कि जनवरी में जब बीमार पड़ी तो मैं भागलपुर के एक नामी-गिरानी डॉक्टर के पास गयी या। वहां जांच के बाद मुझे टीबी होने की पुष्टि हो गई। इसके बाद उन्होंने सलाह दी कि बांका जिला यक्ष्मा केंद्र चले जाइए। वहां पर बेहतर इलाज भी होगा और वह भी मुफ्त में। इसके बाद मैं बांका में जिला यक्ष्मा केंद्र आ गई। यहां पर मेरी मुलाकात वरीय यक्ष्मा पर्यवेक्षक शिवरंजन जी से हुई। उन्होंने मेरी जांच करवाई। जांच में एक बार फिर से टीबी होने की पुष्टि हुई। फिर मेरा इलाज शुरू हुआ। मैं नियमित तौर पर दवा लेती रही तो अब ठीक हो गई हूं। अब मुझे कोई परेशानी नहीं है। अगर कोई परेशानी होगी भी तो मैं जिला यक्ष्मा केंद्र पर आकर ही सलाह लूंगी। यहां पर सभी तरह की बेहतर व्यवस्था है।
जांच से लेकर दवा तक मुफ्तः प्रेमलता देवी कहती हैं कि सबसे अच्छी बात यह है कि जिला यक्ष्मा केंद्र में जांच से लेकर इलाज तक में कोई पैसा नहीं लगता है। साथ में दवा भी मुफ्त में दी जाती है। इतना कुछ के बाद भी जब तक इलाज चलता है, तब तक पांच सौ रुपये प्रतिमाह की राशि भी पोषण के लिए दी जाती है। यह बहुत ही अच्छी बात है। अगर कोई गरीब है और उसके पास पैसे भी नहीं हैं तो वह आसानी से अपना इलाज करवा सकता है और टीबी को मात दे सकता है।
सरकारी अस्पताल में इलाज कराने से मरीज की ही भलाईः जिला ड्रग इंचार्ज राजदेव राय कहते हैं कि यह अच्छी बात है कि अब बड़े-बड़े डॉक्टर भी टीबी के मरीजों को सरकारी अस्पताल में इलाज कराने की सलाह देते हैं। इसमें मरीज की भी भलाई है। उनके पैसे भी बचते हैं और समय पर ठीक भी हो जाते हैं। मैं तो टीबी को मात दे चुके लोगों से यही अपील करना चाहता हूं कि वह भी समाज में लोगों को जागरूक करें कि टीबी का इलाज सरकारी अस्पतालों में बिल्कुल मुफ्त और बेहतर होता है। उनके पास सरकारी अस्पतालों का अनुभव भी रहता है, इसलिए उनकी बातों को लोग मानेंगे भी। इससे लोगों में जागरूकता बढ़ेगी और टीबी जड़ से समाप्त होगा।

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